“जो साथ निभाए वह है दोस्त” – ऋतु अग्रवाल 

“सुनो जी! यह प्रभाकर भैया तो आपके साथ ही नौकरी करते हैं। फिर इनके और हमारे जीवन स्तर में इतना अंतर, मुझे समझ नहीं आता। इनके पास हमारी ही तरह कोई पुश्तैनी जमीन जायदाद भी नहीं है।” आभा ने चाय का कप विवेक को पकड़ते हुए कहा।

   “हाँ! पहले मैं भी यही सोचता था पर फिर मैंने प्रभाकर से पूछा तो उन्होंने बताया कि उनकी  पत्नी मधु दिन में तीन चार घंटे के लिए किसी पार्लर में काम करने जाती है। बस वहीं से कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाती है।” विवेक ने अखबार में आँखें गड़ाए हुए ही कहा।

   “अच्छा!”कह कर आभा कुछ सोचते हुए चाय की चुस्कियां लेने लगी।

  विवेक तो ऑफिस चले गए और आभा अपने घर के काम निपटाने लगी। आज उसके हाथ कुछ जल्दी जल्दी चल रहे थे। काम निपटा कर वह प्रभाकर जी के घर पर पहुँची।आभा ने डोरबेल बजाई तो दरवाजा मधु ने ही खोला।

   “नमस्ते,मधु भाभी,कैसी हो आप?” आभा ने मुस्कुराकर मधु से पूछा।

  “अरे,आभा! तुम!आओ!आओ! कैसी हो?”मधु ने उसका अभिवादन किया।

औपचारिक बातचीत के बाद आभा ने मधु से पूछा “भाभी, अगर आप बुरा ना माने तो आपसे एक बात पूछूँ?” आभा अपनी जिज्ञासा को रोक नहीं पा रही थी।

   “हाँ ! हाँ! आभा,इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है? तुम बेझिझक पूछो।:मधु ने मुस्कुरा कर कहा।


  “भाभी, विवेक बता रहे थे कि आप पार्ट टाइम जॉब करती हैं, मैं भी अपने घर के लिए पैसे कमाना चाहती हूँ। क्या आप मेरी मदद करेंगी?” आभा ने अपनी इच्छा बताइ।

   हाँ! हाँ !क्यों नहीं? मैं पार्लर में काम करती हूँ। पूरा दिन तो मैं नहीं दे सकती इसलिए सुबह 11:00 बजे पार्लर के लिए निकल जाती हूं और 2:00 बजे तक बच्चों के आने से पहले वापस आ जाती हूँ। इस तरह घर और बच्चे दोनों सँभाल लेती हूँ और कुछ कमाई भी हो जाती है।अभी 10:30 हुए हैं, तुम चाहो तो आज से चल सकती हो।अभी आधा घंटा है।” मधु ने कहा।

  “पर भाभी, मुझे तो पार्लर का काम हीआता नहीं है।” आभा की आवाज में संकोच था।

“अरे, तो क्या हुआ? मुझे भी तो नहीं आता था पर लगन से करोगी तो वह सब सीख जाओगी।”मधु ने कहा।

   “ठीक है, भाभी! मैं तैयार होकर आती हूँ।”आभा  घर लौट आई।

  आधे घंटे बाद मथु और आभा पार्लर पहुँचे।

“मैडम,यह मेरी सहेली है। इसको काम की जरूरत है। क्या इसे यहाँ काम मिल सकता है?”मधु ने पार्लर की संचालिका से पूछा।

पार्लर की संचालिका ने आभा को ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा। उसकी आँखों की शैतानियत देख कर एक बार तो आभा डर गई पर खामोश ही रही।

“देखते हैं, अगर यह ठीक से काम सीखेगी और करेगी तभी कुछ फाइनल होगा।” संचालिका ने कहा “जाओ पहले तुम लोग तैयार हो जाओ।”

  “आभा,आओ! पहले चेंज करके तैयार हो जाते हैं।यह पार्लर का नियम है।” मधु,आभा का हाथ पकड़ कर अंदर ले गई।


   थोड़े चटक रंग की ड्रेस और कुछ मेकअप करा कर जब दोनों बाहर आईं तो मैडम ने उन्हें पार्लर के भीतरी भाग में जाने को कहा। आभा को  कुछ अजीब लग रहा था। हर वह इसे पार्लर का नियम समझ कर चुप बैठी रही। थोड़ी ही देर में रईस सा दिखने वाला एक आदमी  भीतर आया। वहाँ तीन चार लड़कियाँ और भी थी। उस आदमी ने वहाँ पर बैठी एक लड़की का हाथ पकड़ा और

अंदर की तरफ ले जाने लगा। वह लड़की मुस्कुराते हुए उसके साथ चल दी। आभा को यह सब माजरा समझते देर न लगी।

   थोड़ी देर में एक आदमी आया और आभा का हाथ पकड़ने लगा।आभा ने  चक्कर आने का अभिनय किया और तबीयत खराब होने का बहाना बना कर घर आ गई। उसने घर आकर सबसे पहले विवेक को फोन पर सारी बात बता दी। विवेक ने तत्क्षण ही पुलिस स्टेशन जाकर सारी बात बताई। पुलिस हरकत में आई और उन्होंने पार्लर पर रेड मारी।

     पता चला कि वहाँ की संचालिका पार्लर के नाम पर सेक्स रैकेट चला रही थी। गहन तहकीकात से पता चला कि उसने विभिन्न शहरों में अपनी शाखाएँ खोली हुई थी। धरपकड़ जारी थी।

   आभा की समझदारी और दूरदर्शिता से एक अनैतिक व्यापार का भंडाफोड़ हो गया था। प्रभाकर जी ने मधु को घर छोड़ने का आदेश दिया तब उसने बताया कि वह गलती से वहाँ फँस गई थी और मैडम वहाँ आने वाली लड़कियों के वीडियो बनाकर उन्हें ब्लैकमेल करती थी ताकि वे काम न छोड़ दें ।

      आभा और विवेक ने प्रभाकर जी को समझाया कि मधु मजबूर थी,उसे  माफ कर दीजिए। तब मधु ने कहा,” मैंने तुम्हारे साथ कितना गलत किया तब भी तुम मेरा साथ दे रही हो।”

     “आपने अपनी तरफ से मुझे काम दिलाने की कोशिश की थी और आप तो अपने परिवार की मदद करना चाह रही थी पर गलत जगह फँस गयी। मैं अपनी दोस्ती निभा रही हूँ। दोस्ती का मतलब ही होता है एक दूसरे के अच्छे बुरे वक्त में साथ देना।”

अब दोनों सखियाँ साथ ही छोटी सी पूंजी लगाकर गरीब महिलाओं की सहायता से मंगोड़ी,पापड़ का बिजनेस स्टार्ट करने की तैयारी कर रही हैं।

 

स्वरचित 

ऋतु अग्रवाल 

मेरठ

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