उसकी गोद मे खूबसूरत हैन्डराइटिंग मे लिखा पत्र खुला पड़ा था जिसे वो एक घंटे मे कमसेकम बीस बार पढ़ चुकी थी…उसकी पलकों की लम्बी खूबसूरत बरौनियाँ आँसुओं से तर थीं पर पुतलियाँ थीं कि उस कागज़ के टुकड़े से हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं।मात्र एक ग़लतफ़हमी ने क्या से क्या कर दिया था।उसे याद आ रहा था विशेष का कितनी बार दोहराया हुआ एक वाक्य,’दीपिका… जो सामने होता है वो कभी कभी सच नहीं होता’,पर तब उसे कहाँ समझ में आया था।उस दिन वो अचानक ही सरप्राइज देने के उद्देश्य से जब खुशी खुशी विशेष के आफिस पँहुची तो वो अपनी सैक्रेटरी सीमा के साथ बाहर निकल रहा था।सीमा के कंधे पर उसका हाथ था।दीपिका लपक कर ओट में हो गई ताकि विशेष की उस पर नज़र न पड़े।पर घर लौटते ही उसने फैसला कर लिया था।और विशेष के आने से पहले ही वो आगरा अपने मायके जाने वाली ट्रेन में थी।विशेष ने फोन से उसको समझाने की बहुत कोशिश की… वो ख़ुद आगरा गया.. पर दीपिका ये मानने को तैयार ही नहीं थी कि ये सिर्फ किसी सहानुभूति के तौर पर था।उसके ज़हन ने तो पिछले कई वर्षों से विशेष के आफिस में अक्सर देरी होने को भी सीमा के आँचल से जोड़ दिया था।क्रोध और हताशा में उसने तलाक़ की अर्ज़ी देदी।और फिर बिना किसी प्रतिरोध के विशेष ने तलाक की मंजूरी देदी।चार वर्ष बीत चुके हैं इस बात को…दीपिका एक प्राइवेट स्कूल में अंग्रेज़ी की टीचर है।उसे पूरा यकीन था कि उससे तलाक होने के बाद विशेष ने सीमा से विवाह कर लिया होगा।पर आज…ये पत्र…जैसे किसी ने उसका दिल मुठ्ठी में भर के मरोड़ दिया था।पत्र सीमा का था… लिखा था
दीपिका जी,
जब आपको यह पत्र मिलेगा शायद मैं दुनिया से जा चुकी होऊँगी।मेरे दोनों गुर्दे खराब हो चुके हैं।मेरी विधवा माँ के पास इतना पैसा नहीं है कि वह मेरा इलाज करा सके।मेरी डायलिसिस चल रही है जिसके लिए मैं यह नौकरी करती थी।मुझे नहीं पता था कि आपके अलगाव का कारण मैं अभागी हूँ।दीपिका जी…विशेष सर बहुत अच्छे दिल के इंसान हैं.. मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बीमारी की बात आफिस में किसी को पता चले।पर उस दिन मेरी तबीयत अचानक ही विशेष सर के कमरे में डिक्टेशन लेने के दौरान बिगड़ गई।उन्होंने डॉक्टर बुलाने की पेशकश की तो मुझे मजबूरन उन्हें अपनी बीमारी का बताना पड़ा।फिर वो मुझे सहारा देकर सीधे अस्पताल ले गए।और शायद उसी वक्त आप अंदर आईं और गलतफहमी की शिकार हो गयीं।उस दिन के बाद मैं आफिस नहीं जा पाई क्योंकि मेरी हालत बिगड़ती जा रही है।पंद्रह दिन पहले विशेष सर मुझे देखने आए थे..पर उन्होंने इस बाबत मुझे कुछ नहीं बताया।कल मेरे एक कलीग ने मुझे बताया कि आप उनसे रूठ कर चली गई हैं और उसका कारण मैं हूँ।दीपिका जी…मैं आपसे अनुरोध करती हूँ कि आप वापस आ जाइये…मैं कभी भी इस दुनिया से जा सकती हूँ… पर चाहती हूँ एक बार आपको विशेष सर के साथ देख लूँ..क्या आप मेरी यह अंतिम इच्छा पूरी करेंगी?”
…सीमा
पत्र की तारीख तीन वर्ष पुरानी थी।पर उसके साथ ही नत्थी किया हुआ ताज़ा तारीख में एक पत्र और था जो सीमा की माँ ने लिखा था।
बेटी…
सीमा की अल्मारी साफ करते हुए मुझे आज ही ये पत्र मिला।शायद बीमारी मे वो पोस्ट नहीं करवा पाई।उसकी अंतिम इच्छा का मान रखने के लिए मैं ये पत्र तुम्हें भेज रही हूँ।तुम्हारा पता मुझे विशेष सर से मिला है… पता चला है कि वो आज भी अकेले हैं।
एक दुखी माँ
(स्वरचित)
मंजू सक्सेना
लखनऊ