सावन का महीना चल रहा था और पिछले सावन को याद करके इस बार मन दुखी नहीं था
‘ पहला सावन शादी के बाद का’
फिर’ जेब में थोड़ी सी खनक रखता सावन’
सच में त्यौहार खुशियां लेकर आते हैं त्योहार जितनी खुशियां लेकर आते हैं कभी-कभी परेशानी आते ही अवसाद भी दे जाते हैं
बीते दो सालों में ‘महामारी ने सारे त्यौहार भुला दिए थे’
और शगुन सोच रही थी कि जो पिछले’ दो सालों में जो उसके सारे जेवर बिक गए थे’ सब कुछ खत्म हो गया था… उन सबके बावजूद..
कुछ चीजें जो वह सीख पाई थी’ उनकी बदौलत अब आराम से घर चला पा रही थी’
कभी वो, अच्छे खासे फ्लैट में रहते थे पर नौकरी छूटी तो..
‘ ई एम आई’ नहीं चुका पाये’
ना इधर के रहे.. ना उधर के..!
सब जगह का उधार चुकाने के बाद ‘अपना बसेरा छोड़कर ‘पुश्तैनी दुकान… वो भी ताया जी की थी
उसके ऊपर बने एक कमरे में शिफ्ट हो गए थे छोटा-मोटा काम करके पति” गुजारे की बस शक्ल देख रहे थे”
बच्चे मन मसोस कर बैठे रहते थे और उस जगह’ काम ही कितना था’
और वैसे भी ‘क्या ही पकाती क्या ही खिलाती’
आधा दिन दुकान के बाहरी हिस्से में बैठी ‘आते जाते लोगों को देखती’ या फिर सामने वाले, हलवाई के कामों को…
अब उसे धीरे-धीरे उन कामों में उसे रस आने लगा था कैसे ‘मैदा छानते थे’
किस तरह से मिठाइयां बनाते थे
‘रबड़ी की परतें कैसे इक्ट्ठे करते थे’
वो सिर्फ ‘ देख देख कर ही इतनी पारंगत होती चली जा रही थी’ और फिर जब ‘चार पैसे हाथ में आए’
तो उसने इसी तरह थोड़ा थोड़ा करके, अपने घर से ही मीठा बनाने की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी
जीत गई थी वो.. ‘जब बिल्कुल सामने वाले हलवाई की टक्कर का घेवर बना लिया था’
और जब पति को खिलाया तो उनकी आंखें भी चमक उठी थी
और बस.. ‘फिर जुगत लगाई’
‘ शहर के बीचो बीच एक किराए का घर लेने की’ और अब चल पड़ी थी गाड़ी..!!
‘ मीठे का शगुन’ नाम से घर से ही मिठाइयां बनाती पाक कला के सारे नुस्खे आजमाती!!
“खोया, पनीर.. शाही टुकड़ी” घेवरों से लेकर.. शुगर फ्री..
पाइनेप्पल, आम.. चॉकलेट ..घेवर.. और जगह-जगह बोर्ड लगवा दिए थे ‘स्वदेशी अपनाएं’ ‘मीठे के शगुन के साथ’
हर बार चॉकलेट जरूरी नहीं है साहब !!
बस.. सावन में उसके ‘घेवरों की धूम’ मच गई थी और तिजोरी में आते पैसों से बस वो जैसे” फिर से जी उठी थी”
“अरमान सजने लगे थे” जो जेवर कभी बिक गए थे पति ने उन्हें वापस लाने के लिए अपने दोनों हाथ शगुन के हाथ में दे दिए थे..
और खुद भी नौकरी छोड़कर पति ने इस ‘व्यवसाय को साथ अपना लिया था’
पढ़े लिखे तो थे ही.. आकर्षक पैकिंग, होम डिलीवरी ऑनलाइन सामान भेजना..
रंग जम गया था और “मीठे के शगुन” के नाम से घर घर में उसका घेवर पहुंच गया था..
लेखिका अर्चना नाकरा