कोई मेरे दिल से पूछे –  कुमुद मोहन

सुधा-सुधा कहां हो भई!तुम्हें पता है मुझे वाॅक से आते ही अखबार चाहिए। तुमसे ये भी नहीं होता कि अखबार वाला डाल गया है तो उठाकर ही रख दो।

किचन में चाय चढ़ाकर सुधा ब्रश कर ही रही थी कि रमन दनदनाता हुआ चिल्लाता हुआ घर में घुसा!

सुधा का मन तो हुआ कि तड़ाक से जवाब दे कर कहे आपने भी तो लौट कर देखा क्यूं नहीं उठा लिया,फिर हमेशा की तरह चुप रह गई जानती थी कि मुँह खोला नहीं कि सुबह सुबह महाभारत मच जाऐगा।

चाय बन गई तो देखा चाय के साथ खाने वाले बिस्कुट खत्म हो गए थे बस देखते ही रमन का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया! “तुम्हें किसी चीज़ का ध्यान रहता भी है या नहीं”,पता नहीं दिनभर क्या करती रहती हो”?खत्म होने से पहले मंगा नहीं सकती थीं क्या?

अब सुधा क्या कहती राशन का आर्डर देते हुए उसने रमन को बताया था तब रमन ने ही कह दिया था खत्म होगें तब मंगा लेंगे अभी तो बहुत पड़े हैं।हर चीज़ में चाहे वह किचन का सामान हो या टाॅयलिट्री यहाँ तक कि मेड और माली के बीच में भी रमन दखल देने से बाज़ नहीं आता।सुधा को उसके इस रवैये से बहुत खीज होती। उनसे काम तो सुधा को लेना होता है इस वजह से घर-बाहर

का कोई भी काम ठीक से बैठ नहीं पाता था।

मेड के काम उनकी तनख़्वाह उनके टाइम हर बात रमन में रमन अपनी टांग जरूर अड़ाता।

रमन को तो छोड़िए उनका सोलह साल का बेटा विभु भी बिल्कुल अपने पापा पर गया था आये दिन कभी ब्रेकफास्ट,कभी लंच तो कभी डिनर की टेबल पर “ये क्या बना दिया,ये सब्ज़ी नहीं खानी, पूरा खाना बन जाने पर फिर दूसरी सब्ज़ी या डिश की फरमाइश कर देता ! रमन भी विभु की हां में हां मिलाता, सुधा खाना छोड़कर फौरन बनाती इस डर से कि कहीं वह भूखा ना रह जाए ,फिर रमन चार बातें सुनाऐ बिना नहीं मानता।



कभी-कभार अगर बाहर खाना खाने का प्रोग्राम बन जाता तो सुधा बहुत खुश होती पर रास्ते में ही रमन पूछता घर में कुछ पका रखा है?सुधा के मना करने पर विभु और रमन फौरन कहते बाहर खाने का मन नहीं है!ऐसा करो घर चलते हैं कुछ भी हल्का फुल्का बना देना और घर आकर वही ढाक के तीन पात !बेटे को पनीर मटर तो पापा को लौकी की सब्ज़ी चाहिए! बेचारी सुधा से कभी कोई नहीं पूछता कि उसे क्या चाहिए?एक दिन बाहर जाकर खाने की खुशी पलभर में काफ़ूर हो जाती।

छुट्टियों में कहीं बाहर जाना हो तो जगह और तारीख का चुनाव रमन और विभु अपने हिसाब से रखते।सुधा बचपन में अपने पिता के साथ डलहौजी गई थी उसका बड़ा मन था एक बार फिर अपने परिवार के साथ वहाँ जाए! उसने डरते डरते अपनी इच्छा जताई! रमन और विभु उछल कर बोले”उस स्लीपी सी जगह जाकर अपनी छुट्टियाँ बर्बाद नहीं करनी हमें”!सुधा मन मारकर रह गई।

ऐसा नहीं था कि रमन सुधा के लिए किसी चीज़ की कमी रखता वो सुधा को महंगे से महंगे कपड़े दिलाता लेकिन उसमें पसंद सुधा की नहीं बल्कि रमन की होती! रमन को लाल रंग बहुत पसंद था सुधा की सारी साड़ियां करीब करीब लाल रंग की थीं!कभी वह दूसरे रंग के कपड़े पसंद कर भी लेती पर घूम फिर कर लाल रंग के कपड़े ही खरीद लिए जाते!

   कहीं भी जाना होता रमन ही तय करता सुधा क्या पहने!अगर कभी वह अपनी मनपसंद पहन लेती तो रमन उसे बदलवा देता।

ऐसे ही बात जेवरों की होती सुधा को सिंपल पसंद थे वहीं रमन को तड़क-भड़क वाले भारी और जड़ाऊ!रमन को शो ऑफ का बहुत शौक था और अपने आप को बहुत रिच दिखाने का।सुधा हल्का मेकअप पसंद करती पर रमन उसे हैवी मेकअप लगाने को कहता।वह सुधा को कहता कि वह खूब सजधज कर निकला करे कि लोग कहें “ये हैं मिसेज रमन“!

सुधा की अपनी पसंद और नापसंद का तो प्रश्न ही नहीं उठता था!अगर कभी सुधा रमन की पसंद के खिलाफ जरा सा भी अपना पक्ष रखना चाहती वहीं बवाल मच जाता।

धीरे धीरे सुधा ने समझ लिया कि झंझट करने से कोई फ़ायदा नहीं, उसने रमन के डाॅमीनेटिंग नेचर को अपनी नियति मान कर ज़िन्दगी से समझौता कर लिया!उसने देखा था कैसे उसके ससुर के भी डाॅमीनेटिंग नेचर की वजह से रमन की मम्मी भी परेशान रहा करतीं थी मगर मुँह नहीं खोलती थीं।यह उनके खानदान की पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही रवायत है जिसे घर की औरतों को मन या बेमन से झेलना ही है!शायद उनके बाद परिवार में कोई ऐसी लड़की आ जाए जो इस जंजीर को तोड़ सके।

 कुमुद मोहन

 गोमती नगर! लखनऊ

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