एक रात बारीश की और साथ में, मैं और वह। हालात हुए थे कुछ ऐसे, कि हम दोनों के बिच उस रात जो भी हुआ, उसे ना वह रोक सकता था और नाहीं मैं, जो हम दोनों ने कभी सोचा नहीं था, कि एक रात ज़िंदगी में ऐसी भी होगी। उस एक रात में जैसे हमने अपनी पूरी ज़िंदगी जी ली।
ये उस रात की बात है जब एक दिन रायगढ़ में बहुत ज़ोरों की बारीश हो रही थी, मुझे उस दिन ऑफिस से निकलने में थोड़ी देर हो गई थी, मेरे सारे साथी भी सब अपने-अपने घर को निकल गए थे। हमारी ऑफिस के सामने ही बस-स्टॉप है, मैं हर रोज़ वहीं से बस में अपने घर जाती थी। ऑफिस बंद कर के अपना छाता खोल के सामने बस-स्टॉप की ओर पहुँची। उस रात बारीश इतनी ज़ोरो की थी, कि जब तक मैं ऑफिस से सामने बस-स्टॉप की ओर भागी, उतनी देर में तो मेरे कपड़े और बाल भी थोड़े गीले हो गए, बस स्टॉप पे बस का इंतज़ार करते-करते आधा घंटा बित चूका था, ना बस आई, नाहीं ऑटो। मुझे बहुत डर लगने लगा, बिजली भी ज़ोरो की हो रही थी, बादल भी जैसे गुस्से में एकदूसरे से टकरा रहे हो, ऐसी डरावनी सी आवाज़ बादलों के टकराने से आ रही थी। मैंने घर पे अपने पति को फ़ोन लगाया, मगर आज मोबाइल में बिलकुल नेटवर्क ही नहीं दिखाई दे रहा था, सोचा वक़्त पे घर ना पहुंँचने की बजह से वह भी घर पे परेशान हो रहे होंगे। मगर अब इंतज़ार के आलावा ओर मैं कर भी क्या सकती थी। जैसे की बस भगवान से प्रार्थना कर रही थी, कि प्लीज, भगवानजी कोई बस या ऑटो मेरे लिए भेज दे, ताकि मैं अपने घर जा सकूँ ।
तभी कुछ ही देर में सामने से एक बड़ी कार आती दिखाई दी और वह कार मेरे पास आकर रुक गई। कार चलानेवाले ने अपनी कार का शीशा खोला। मैंने कार में झुक के देखा, एक पल के लिए तो हम दोनों एकदूसरे को देखते ही रह गए। उन्होंने आज वही आसमानी रंग की शर्ट और ब्लैक पैंट पहनी थी, जिसमें मैं उसको देखना बहुत पसंद किया करती थी। हवा के तेज़ झोंको से मेरा पीला दुपट्टा उड के उसके कार के आगे के शीशे की तरफ जा गिरा। उसने दुपट्टा हटा के मुझे वापिस किया, मैं शर्म से और भी पानी-पानी होती जा रही थी। उसने मुझ से कहा, डरो मत, अंदर आके बैठ जाओ, आज बारिश बहुत तेज़ है और हर जगह पानी ही पानी है, सारे रास्ते भी बंद है, रात बहुत हो चुकी है, तुम कार में बैठ सकती हो। बारिश के रुकने पर मैं तुझे घर छोड़ दूँगा। मैं इनकार ना कर सकी। रात बहुत हो चुकी थी। ऊपर से तेज़ बारिश, किसी अजनबी के साथ रहने से बेहतर है, मैं इनके साथ ही बैठ जाऊँ। ये सोचकर मैं उनकी कार में बैठ गई।
मुझे आज भी याद है, पापा ने अपनी कसम देके कैसे मुझे तुम से दूर रहने को मजबूर कर दिया था। उस वक़्त पापा से या दुनिया से लड़ने की मुझ में बिलकुल भी हिम्मत नहीं थी, इसलिए पापा के कहने पर चुप-चाप किसी और की मैं दुल्हन बन गई। वक़्त को भी शायद यहीं मंज़ूर होगा। ये सोच हम ने तुझ संग किए हर वादे को भुला देना चाहा, लेकिन जिस प्यार को बरसों पहले मैंने भुला देना चाहा था, वह फ़िर से आज मेरे सामने खड़ा है।
मैं अपनी नज़रें झुकाए कार में बैठी रही, उस वक़्त उसकी नज़रे जैसे मुझे कह रही थी, कि ” मिलकर भी ना मिलेंगे कभी और अगर कभी जो हम भूल कर भी मिले तो एकदूसरे को पहचानने से इंकार कर देंगे और नाहीं फ़िर से जगने देंगे उन जज़्बातों को, जिसे हम ने दबा के रखा था अपने दिलों में बरसो। “
ये वादा जो लिया था मैंने उस से, वह मुझे याद आ गया आज फिर से। लेकिन आज फिर से, ना जाने क्यों ? आज उसे देख कर फ़िर से मुझे ही वह वादा तोड़ने का दिल किया।
वह अपनी कार में घूम-शुम बैठा रहा, और यहाँ से कैसे निकला जाए, रास्ता ढूंँढने लगा। उसने नाहीं मुझे बुरी नज़र से देखा, नाहीं कोई बात की। मैं भी चुप रही।
बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, तेज़ बारिश की बजह से सब लोग जल्दी ही अपने-अपने घर लौट गए हो, ऐसा लग रहा था। फ़िर कुछ देर बाद उन्होंने कहा, वैसे तो मैं आज-कल मुंबई में रहता हूँ, पर कुछ काम के सिलसिले में दो दिन से यहाँ आया हुआ हूँ। मेरी मौसी का घर पास में ही है, मैं वहीं पे रुका हुआ हूँ। लगता है आज रात बारिश का कोई ठिकाना नहीं, आज रात तुम मेरे साथ वहीं रुक जाओ, बारिश बंद होते ही मैं तुझे तुम्हारे घर छोड़ दूँगा। पहले तो मैंने मना कर दिया। मैंने कहा, ” थोड़ी देर में शायद बारिश रुक जाएगी, तब रास्ता भी खुल जाएगा, तो मैं घर चली जाऊँगी, कुछ देर बारिश बंद होने का इंतज़ार करते है। ”
लेकिन थोड़ी देर रुकने के बाद भी बारिश कम नहीं हो रही थी, इसलिए मुझे उनके मौसी के घर जाना पड़ा।
एक बूढी मौसी ने दरवाज़ा खोला, हम घर के अंदर गए, घर दिखने में बहुत अच्छा और बड़ा था। मौसी ने हम को टॉवल भी दिया, मैंने अपना गिला दुपट्टा वही कुर्सी पे सूखाने रखा और टॉवल से अपने बालों को पोंछने लगी, वह भी अपने गीले रेशमी बालों को अपने हाथ से झटक रहा था और उसके पानी की छींटे मुझ तक आ रही थी। कुछ ही देर में मौसी ने आकर कॉफ़ी टेबल पे रखी। अभी तो कॉफ़ी का मग टेबल पे रखा ही था की अचानक घर की बिजली भी चली गई। मौसी ने कहा, ” बारिश के मौसम में यहाँ बार-बार बिजली चली जाती है, वहां टेबल के पास मोमबत्ती और माचिस रखी होगी, ज़रूर लगे तो जला देना। ” कहते हुए मौसी हमारे कमरे से चली गई। वहांँ टेबल के पास सच में मोमबत्ती और माचिस रखी हुई थी, उसने मोमबत्ती जलाके टेबल पे रखी, हम दोनों कुर्सी पे आमने-सामने बैठ गए, हम दोनों के बिच में कॉफ़ी जो ठंडी हो रही थी और मोमबत्ती, जो जल रही थी, उसके साथ-साथ ही हम दोनों के दिल की धड़कन भी तेज़ हो रही थी। हमारी नज़रे एक हुई, एक पल के लिए भी मैंने या उसने पलक ना झपकाई, बस देखे जा रहे थे, एकदूसरे की आँखों में, ना कोई सवाल था और ना कोई फरियाद, होठों पे बस एक चुप्पी सी छाई हुई थी। जैसे हम ने कभी बात न करने की कसम खाई थी, इसलिए शायद हमारी नज़रे एक दूसरे से बातें कर रही थी।
एकदूसरे की आँखों में देखते ही देखते कब रात बित गई पता ही नहीं चला। सुबह होते ही बारिश भी रुक गई, मोमबत्ती अपने आप बुज़ गई, सवेरा हो गया। फ़िर मौसी की इजाज़त लेके और उनका शुक्रियादा करके मैं अपने घर जा रही थी। उन्होंने मुझ से कहा भी कि मैं तुम्हें कार में तुम्हारे घर छोड़ दूँगा, पर मुझे ये ठीक नहीं लगा, इसलिए मैंने मना कर दिया और रात के लिए उसका शुक्रियादा किया। तभी सामने से बस आ गई और मैं उस बस में बैठ कर निकल गई। वह मुझे जाते हुए देखता ही रहा।
दिल में एक अजीब सी ख़ुशी की लहर उठ रही थी, जैसे की एक रात में हम ने सदियाँ जी ली हो, बिना कुछ कहे आँखों के इशारो से ही एक दूसरे के हर सवाल का जवाब जैसे हमें मिल गया हो। कुछ बातें जो कह ना सके थे, वह आज इन आँखों ने बयां कर दी, उस वक़्त बड़ा फ़क्र हुआ मुझे अपनी महोब्बत पे, ये सोच कि ” ना मिलने का वादा जो तूम इतनी शख्सियत से निभा रहे हो, अगर जो उस वक़्त तुमसे मैंने साथ रहने का वादा माँग लिया होता, तो आज हमारी ज़िंदगी उन मेघधनुष के रंगो की तरह रंगीन होती। ” खैर, मेरी किस्मत में शायद इस जन्म में तुझ संग प्रीत नहीं जुदाई लिखी है, इस जन्म नहीं तो अगले जन्म मिलन होके रहेगा। इस जन्म में तू नहीं, तो तेरी यादों के सहारे ही अब ज़िंदगी गुज़ार लेंगे।
तो दोस्तों, कभी-कभी हम ज़िंदगी में कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह जाते है और कभी-कभी सारी उम्र का साथ कोई मायने नहीं रखता और कई लोग पल दो पल के प्यार में ही सारी ज़िंदगी जी लेते है।