मंजू एक टीचर थी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रही थी तभी बीच कक्षा के दौरान पीउन ने दरवाजा खटखटाया। मंजू ने जब दरवाजे की तरफ देखा तो पीउन ने इशारा किया प्रिंसिपल साहब आपको तुरंत अपने ऑफिस में बुला रहे हैं। मंजू बच्चों को सॉरी बोल प्रिंसिपल के चेंबर में पहुंच गई वहां पहुंचते ही प्रिंसिपल साहब ने कहा, “मंजू बैठो।” मंजू घबराई हुई थी कि आखिर प्रिंसिपल साहब ने अचानक से क्यों बुलाया इतना इंपॉर्टेंट क्या काम हो सकता है। थोड़ी देर के बाद प्रिंसिपल साहब ने कहा, “मंजू अभी मैं जो बात तुम्हें बताने जा रहा हूं तुम्हें धैर्य से काम लेना होगा। मंजू ने कहा, “सर बताइए ना क्यों इतना डरा रहे हैं।” प्रिंसिपल साहब ने कहा, ” तुम्हारे पति विनोद का अभी फोन आया था तुम्हारी मां नहीं रही।”
यह खबर सुन मंजू अपने आप को कंट्रोल नहीं कर सकी,वहीं रोने लगी, उसी समय स्कूल से छुट्टी ली और घर के लिए निकल गई । घर आई तो उसके हसबैन्ड विनोद ने सारा सामान पैक कर के रखा हुआ था वो तुरंत उसी समय देहरादून के लिए निकल पड़े।
मंजू अपने मायके पहुंची वहाँ पर सभी रिश्तेदार आए हुए थे। सिर्फ मंजू का ही इंतजार हो रहा था कि मंजू आखिरी बार अपनी मां का चेहरा देख ले। मंजू के आते ही थोड़ी देर बाद मंजू की मां का दाह संस्कार कर दिया गया।मंजू के सास-ससुर नहीं थे इस वजह से उसको अपनी मां से ज्यादा ही लगाव था। क्योंकि उसे अपना सुख-दुख बताने के लिए उसके पास माँ के अलावा कोई नहीं था। वह अपनी हर बात अपनी मां को बताती थी। मंजू की मां के गुजरने से मंजू बहुत ही शांत और अकेली हो गई थी, वह गुमसुम रहने लगी थी जबकि मंजू का भाई रोहित और उसकी बीवी को कोई फर्क नहीं पड़ा था कि इस घर में कोई गुजर भी गया है
वह अपनी दिनचर्या ऐसे जी रहे थे जैसे बेंगलुरु से गर्मी की छुट्टियां मनाने यहां पर आए हैं। वैसे तो 10 दिन तक घर में बिना तेल मसाले वाला खाना खाया जाता है लेकिन रोहित की पत्नी और उसके बच्चे बाहर से खाना मंगा कर खाते थे उन्हे किसी की परवाह नहीं थी कि लोग क्या सोच रहे हैं।
13 वीं के अगले दिन ही रोहित अपने परिवार के साथ बेंगलुरु के लिए निकल गया । उसने पापा से एक बार भी बेंगलुरु जाने के लिए नहीं कहा, उसने एक बार भी नहीं सोचा कि पापा अब अकेले यहां कैसे रहेंगे। मंजु ने पति विनोद से कहा कि मैं अभी 1 सप्ताह बाद आऊंगी पापा बिल्कुल अकेले हो गए हैं, अगर मैं भी चली जाऊंगी तो पापा टूट जाएंगे। मंजू के पति विनोद मंजू की बातों को कभी नहीं टालता था। वह मान गया और मंजू 1 सप्ताह के लिए देहरादून में ही रुक गई। इस बीच मंजू ने कई बार अपने पापा को कोशिश की कि वह अपने साथ ले जा कर रखे लेकिन मंजू के पापा इस बात के लिए तैयार नहीं हुए। वह बोलते बेटी तू पागल है, तुझे पता है, हमारे यहां तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पिया जाता, तू कह रही है कि मेरे घर चलके रहो, ऐसा कभी नहीं होगा बेटी। मंजू जान गई थी कि उसके पापा पुराने ख्यालों के हैं इतना जल्दी मानने वालों में से नहीं है लेकिन मंजु भी ज़िद्दी कम नहीं थी। मंजू ने अपने पति विनोद से कहा कि तुम भी पापा से एक बार कहो शायद तुम्हारे कहने से मान जाए। विनोद ने भी कई बार कहा पापा आप हमारे साथ चल के रहिए हमें बहुत खुशी होगी।
मंजू के पापा यह कहकर विनोद की बात टाल देते थे कि बेटा अभी तो निरोग हूं, एक बाई रख लूंगा घर में साफ सफाई कर देगी और खाना बना दिया करेगी। जब मैं पूरी तरह से थक जाऊंगा तब तो तुम और तुम्हारा साला रोहित है ही कुछ दिन तुम्हारे घर रहूंगा कुछ दिन अपने बेटे के यहां।
1 सप्ताह बाद मंजू अपने ससुराल लौट गई थी लेकिन उसे रोजाना अपने पिता की चिंता सताए जाती थी पापा कैसे रहेंगे पापा ने तो आज तक जिंदगी में चाय तक नहीं बनाया है उन्हें घर के बारे में तो बिल्कुल भी कुछ नहीं पता है यहां तक की घर की एक-एक सामान भी माँ खरीदती थी पापा कैसे रहेंगे अकेले।
मंजू ने बहुत प्रयास किया लेकिन मंजू के पापा मंजू के घर आने के लिए राजी नहीं हुए। 1 दिन मंजू और उसके हस्बैंड विनोद डिनर कर रहे थे तभी विनोद ने कहा मंजू मैं एक बात कहूं वैसे तो थोड़ा बात अजीब है लेकिन मुझे लगता है कि आज के जमाने में हर आदमी को अपना जीवन जीने का हक है कहो तो मैं बात कहूं। मंजू ने कहा हां कहो। विनोद ने कहा, “क्यों न हम पापा की शादी का विज्ञापन ऑनलाइन शादी की वेबसाइट पर डाल दें कोई ना कोई उनकी उम्र की महिला मिल ही जाएगी फिर उस महिला की भी जिंदगी संवर जाएगी और पापा का भी अकेलापन दूर हो जाएगा।” यह बात सुन मंजू विनोद पर गुस्सा हो गई तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है, पापा की इस उम्र में शादी होगी, तुम अगर पापा की सेवा नहीं करते तो ना करो लेकिन ऐसी वाहियात बातें तो मत किया करो, यही अंतर होता है दामाद और बेटे में।
विनोद ने कहा, “मंजू मैंने तुम्हें शुरू में ही कहा था कि गुस्सा मत होना मैं तो पापा की भलाई के लिए ही कह रहा था तुम खामखा दिल पर ले लिया वैसे मैं तो कहता हूं एक बार इस बारे में सोचना जरूर।” थोड़ी देर के बाद विनोद और मंजू सोने के लिए अपने कमरे में चले गए। विनोद एक सिविल इंजीनियर था तो उसका शारीरिक वर्क ज्यादा होता था इसलिए वह थका हुआ था जल्दी सो गया लेकिन मंजू को नींद नहीं आ रही थी। विनोद की बात को सोचने लगी कि क्या सच में विनोद सही कह रहे हैं? क्या पापा की शादी करा देना उचित होगा? दुनिया समाज क्या सोचेगी?
उसके मन में हजारो सवाल आ रहे थे किसी ना किसी को तो पहला कदम उठाना ही होता है मेरे पापा जैसे ना जाने कितने लोग इस तरह की अकेले जीवन जी रहे होंगे, अगर हम यह शुरुआत करते हैं तो पता नहीं कितने लोगों के जीवन में रोशनी आ जाए, दोबारा शादी करना कोई गुनाह तो नहीं, क्या खुश रहना गुनाह है। मंजू के मन में हजारों ऐसे सवाल गूंज रहे थे। अगले दिन शाम को जब मंजू और विनोद डिनर कर रहे थे तो मंजू ने कहा विनोद आप सही कह रहे हैं, पापा की शादी करा देते हैं। विनोद ने कहा, “मंजू इतना भी आसान नहीं है पहले पापा से पूछना पड़ेगा अगर मान लो हमने विज्ञापन दे दिया और पापा तैयार नहीं हुए तो क्या होगा।” मंजू ने कहा, “फिर तो पापा कभी तैयार नहीं होंगे, वह भी दूसरी शादी के लिए इस जन्म में तो संभव नहीं है तुम भूल ही जाओ” मंजू ने कहा, “विनोद तुम विज्ञापन डालो मेरे मन में एक आईडिया है” विनोद ने कहा, “क्या आईडिया है? मुझे भी तो बताओ।”
मंजू ने कहा, “तुम पहले विज्ञापन तो डालो मैं फिर बताऊंगी क्या करना है।” विनोद ने कहा, “पापा के बिना इजाजत के,” “हां हां भाई हां मैंने कह तो दिया तुम विज्ञापन डालो।” अगले दिन ही विनोद ने कई अखबारों के मेट्रोमोनियल पेज पर और ऑनलाइन वेबसाइट पर अपने ससुर जी के शादी की विज्ञापन डाल दिया। और उसमें यह मेंशन कर दिया गया कि महिला देहरादून की ही होनी चाहिए। महिला तलाकशुदा या विधवा होना चाहिए और उनकी उम्र 40 से कम नहीं होना चाहिए। जिस दिन विज्ञापन डाला था उसके अगले दिन ही एक महिला का कॉल मंजू के मोबाइल पर आया क्योंकि फोन नंबर मंजू का ही दिया हुआ था।
महिला ने बताया कि वह विधवा है और देहरादून के एक वृद्धाश्रम में रहती है उसके बेटे विदेश रहते हैं लेकिन भानु प्रताप जी से शादी करने के लिए तैयार है।मंजू ने कहा, “आंटी मैं अगले सप्ताह आप से मिलने देहरादून आऊंगी और बाकी डिटेल आपको वही बताऊंगी शादी के बारे में।
उस लेडीज ने कहा, “ठीक है बेटी मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी।” नेक्स्ट वीक अपने पति के साथ मंजू देहरादून पहुँच चुकी थी मंजू और उसके पति उस महिला से मिलने वृद्धाश्रम में गए। मंजू ने कुछ देर तक उस वृद्धाश्रम की महिला से बात की उसके बाद उन्होंने डिसाइड कर लिया कि इस महिला से पापा से शादी करने में कोई बुराई नहीं है।
लेकिन बात यहीं आकर अटक जाती है कि पापा को तो इस बात का पता भी नहीं है कि उनकी बेटी ने उनकी शादी का विज्ञापन दिया है और शादी की बात भी कर ली है। अब बात आई कि पापा को मनाया कैसे जाएं। मंजू ने उस वृद्धाश्रम की महिला जिसका नाम शांति था से बोली “देखो आंटी अगर आपको पापा से शादी करनी है तो मैं जैसा कहती हूं वैसा करना पड़ेगा क्योंकि सीधे अगर हम पापा से शादी की बात करेंगे तो वह कभी भी तैयार नहीं होंगे क्योंकि मेरे पापा बहुत पुराने ख्यालों के हैं इस उम्र में शादी की बात उनसे हम कहेंगे तो बिल्कुल ही भड़क जाएंगे।” शांति जी ने कहा कि जब आपने अपने पापा से इस बारे में बात ही नहीं किए थे तो विज्ञापन क्यों दे दिया था, शादी करने के लिए। मंजू ने कहा, “आंटी सब कुछ हो जाएगा बस आपको एक मेरा छोटा सा काम करना होगा। मैं आज आपको अपने घर ले चलूंगी और अपने पापा से आपका परिचय योगा टीचर के रूप मे कराउंगी। धीरे धीरे आप दोनों एक दूसरे से मिलना जुलना शुरू करो जब पापा का आप से दोस्ती हो जाएगा फिर मैं पापा से आपसे शादी की बारे में बात कर लूंगी और यह एक तरह से सही भी है आप दोनों लोग एक दूसरे को जान भी जाओगे।”
शांति जी इस बात के लिए तैयार हो गई और वह मंजू के साथ मंजू के घर चल दी। मंजू घर पहुचकर अपने पापा से शांति जी का परिचय कराया और उन्होंने बताया है यह एक योगा टीचर है। चाहती हूं कि पापा आप इनसे योगा की ट्रेनिंग लीजिए इससे आप भी स्वस्थ रहेंगे।
मंजू के पापा इस बात के लिए मान गए।मंजू अगले दिन ही अपने ससुराल वापस लौट आई और इधर शांति जी रोज सुबह सुबह मंजू के पिताजी को योगा सिखाने के लिए उनके घर पर आ जाती थी। फिर क्या था दोनों में धीरे-धीरे दोस्ती हो गई। मंजू के पापा को जब यह बात पता चला कि शांति जी का अपना घर नहीं है वह वृद्धाश्रम में रहती हैं उनके बेटे अमेरिका में रहते हैं और उनकी देखभाल के लिए वृद्धाश्रम में छोड़ रखा है। मंजू के पापा ने एक दिन शांति जी से कहा कि शांति जी अगर आप बुरा ना माने तो मैं एक
बात आपसे कहना चाहता हूं मेरा इतना बड़ा घर है मैं भी यहां अकेले रहता हूं आप चाहे तो यहां रह सकती हैं। शांति जी और मंजू भी तो यही चाहते थे कि पापा शांति जी के साथ घुल मिल जाए खुद ही उनको यहां रहने के लिए कह दें।
शांति जी भी बहुत खुश हुई जिस काम के लिए वह यहां आई थी वह अपने काम में सफल हुई और यह खबर उन्होंने मंजू को फोन करके दिया कि तुम्हारे पापा मुझे अपने घर पर रखने के लिए तैयार हो गए हैं। फिर क्या था मंजू ने सोचा लोहा गरम है हथौड़ा मारने की देर है।
अगले दिन ही मंजू देहरादून अपने पापा के घर आ गई । मंजू को अचानक देखते हुए मंजू के पापा बोले तुमने फोन भी नहीं किया कि आ रही हो अचानक कैसे। बस ऐसे ही पापा आप से मिलने को मन किया तो आ गई। दोपहर में मंजू ने अपने पापा की मनपसंद राजमा चावल बनाई,
बैठकर खाना खा रहे थे तभी मंजू ने कहा, “पापा एक बात कहूं वैसे तो यह हमारे समाज के लिए बिल्कुल ही नई बात है लेकिन इसमें कोई बुराई नहीं है।” मंजू के पापा बोले, “बोलो, बेटी क्या बात है।” मंजू ने अपने पापा से कहा आप और शांति आंटी अगर दोनों शादी कर ले तो कैसा रहेगा।
मंजू के पापा बोले, “मंजू तुम पागल हो गई हो क्या ? यह बात तो तुमने मुझसे कह भी दिया शांति जी से तो कहना भी मत वह क्या समझेंगी मुझे, अपना बहुत अच्छा दोस्त समझती हैं, बल्कि मैंने तो उनको यही पर रहने के लिए भी बोल दिया है अगर उनको यह पता चलेगा कि मेरे मन में उनके प्रति ऐसी सोच है तो वह तो कभी भी यहां रहने के लिए तैयार नहीं होंगी और उनका आना जाना भी यहां बंद हो जाएगा।” मंजू ने कहा, “पापा आप एक बार हां तो कहो ऐसा कुछ नहीं होगा। मैं शांति आंटी से बात करूंगी। मंजू के पापा ने कहा कि अगर शांति जी तैयार है तो ठीक है मैं शादी करने के लिए तैयार हूँ।
फिर क्या था शांति जी तो पहले से तैयार ही थी। मैरिज रजिस्ट्रार ऑफिस में शादी की डेट ले ली गई थी मंजू ने सोचा कि इस बात की खबर वह अपने भाई को दे दे। मंजू ने जब अपने भाई को फोन कर कर ये बताया कि वह पापा की शादी कराने जा रही है हो सके तो तुम भी आ जाओ।जब यह बात मंजू के भाई को पता चला तो वह मंजू पर गुस्सा होने लगा। मंजू तुम सच में पागल हो गई हो तुम्हें लोक-लाज की चिंता तो बिल्कुल ही नहीं है, समाज में हमारी भी इज्जत है, लोग क्या कहेंगे इस उम्र में भी कोई शादी करता है, तुम इतना भी अधिक आधुनिक मत हो जाओ अपने परंपराओं और रीति-रिवाजों को भूल जाओ।
मंजू को उसके भाई का इस तरह से चिल्लाना बहुत बुरा लगा और मंजू ने भी पलट कर जवाब दिया भैया रीति-रिवाज और परंपराओं को मैं भूली नहीं बल्कि भूले तुम हो अगर तुम पापा को अपने साथ रखते तो आज यह नौबत ही नहीं आती कि पापा की शादी करानी पड़ती।
पापा बिल्कुल अकेले हो गए हैं, आखिर उनके भी जिंदगी में खुशियां तो होनी चाहिए लेकिन तुम्हें इससे क्या फर्क तुम्हें तो बस अपने बच्चे और भाभी से मतलब है। मैंने तो पापा को कई बार अपने घर ले जाने के लिए कहा लेकिन पापा तैयार ही नहीं हुए जाने के लिए।
मंजू के भाई ने फोन काट दिया और उसने फोन अपने पापा के मोबाइल पर लगाया और पापा से पूछा, “पापा मैं यह क्या सुन रहा हूं कि आप दोबारा से शादी करने जा रहे हैं आपका दिमाग तो ठीक है ना।” मंजू के पापा ने अपने बेटे को जवाब दिया, “हां बेटा मेरा दिमाग बिल्कुल ठीक है
और यह फैसला सिर्फ मंजू का नहीं है बल्कि मेरा है और मैं तो कहूं कि हर बुजुर्ग मां-बाप को भी यह फैसला लेना चाहिए आखिर उनको भी जीने का अधिकार है। जब बेटों को अपने मां-बाप की चिंता नहीं उन्हें अकेले छोड़ देते है वृद्धाश्रम में मरने के लिए उन्हें भी अपने जिंदगी का फैसला लेने का अधिकार है।
तुम्हारी मां को मरे आज 6 माह से भी ज्यादा हो गया तुमने कितनी बार मेरी हाल-चाल जानने के लिए फोन किया है। सप्ताह में एक बार फोन करते हो वह भी फॉर्मेलिटी के लिए तुमने एक बार भी पूछा कि मैं खाना कैसे खाता हूं कौन बनाता है।
इस बार फोन पापा ने काट दिया। अगले दिन मैरिज रजिस्टार ऑफिस में जाकर मंजू के पापा और शांति जी की एक दूसरे से कानूनी रूप से शादी हो गई थी।
इस बात की खबर मीडिया में भी फैल गई थी और अगले दिन फ्रंट पेज पर ही यह न्यूज़ आया और इस कदम को सबने सराहना की सब लोगों ने यही कहा कि आखिर बुजुर्गों को भी जीने का हक है।