हमारा रोज का नियम था कि रात को काम निपटाने के बाद सारी बहुएं सासू माँ के पास जरूर कुछ देर के लिए बैठते थे,,
सारे दिन में यही ऐसा वक़्त होता था जब सारी महिलाएं और बच्चे साथ फ्री हो कर बैठते,,दुनियां जहान की बातें होतीं और सासू माँ बहुत सारे संस्मरण हमें सुनातीं,,
घर के सारे पुरुष टीवी वाले कमरे में एक साथ बैठकर समाचार देखते और बातें करते,,,
उस वक़्त को मैं अभी भी मिस करती हूं,,ऐसे ही एक दिन,,हम सब आकर अपने-अपने कमरों में सो गए,,
रात को 2 बजे पिताजी ने गेट खटखटाये,,बोले ,,जल्दी बाहर आओ,,
जा कर देखा तो माँ बाथरूम में फिसल गई थीं,,पूरा चेहरा खून से लथपथ था,,पता ही नहीं चल रहा था कि चोट कहां लगी है,,
गिरते-गिरते वो वॉशबेसिन से टकराईं थीं तो उसकी किनारी से भौंह के ऊपर बड़ा सा कट लग गया था,,लौंग नाक में घुस गई थी और दांत होठों में गढ़ गये थे,,
बड़ा ही वीभत्स दृश्य था,,जैसे-तैसे उनको उठा कर लाये और रुई के फाहे में डिटॉल लगा कर सफाई की,,तब समझ में आया,चोट बहुत थी,,
भौंह के ऊपर टांके लगने थे,,खून बहना बंद हो गया तो सुबह का इन्तज़ार करना उचित समझा,,
माँ बोलीं,,जाओ अब ,सो जाओ ,,
पर मेरे मन को यह गवारा न हुआ,,मैने पिताजी से कहा,,मैं माँ के पास ही रहूंगी,,
वो दूसरे कमरे में जाकर सो गये,,
मेरा दिल उनके लिए बहुत द्रवित हो रहा था,,मैं उनके पलंग पर ही उन्हें चिपका कर लेट गई,,हम दोनों ही अर्धनिद्रा में थे,,
तभी माँ बोलीं,,तुम काय को आईं मां जू,,ये बहू है न मेरे पास,,
मैं तुरंत उठ कर बैठ गई पर मुझे कोई दिखाई नहीं दिया,,मैने माँ से पूछा तो वो बोलीं,,मुझे कुछ याद नहीं,,
पर कोई दिव्य आत्मा तो थी उस रात जो उनको कष्ट में देख कर मदद के लिए आईं थीं,,उनके “मां जू ” कहने का मतलब था कि वो अवश्य ही उनकी सास थीं,,
उस दिन पक्का विश्वास हो गया कि हमारे पुरखों की आत्मा हमारे आस-पास रहतीं हैं और हमारे दुख-सुख उन्हें भी प्रभावित करते हैं,,
तभी तो कहीं बाहर जाते समय पुरखों की तस्वीर के पैर छू कर जाना,त्योहारों पर भोग लगाना,शादी-विवाह के मौके पर देवताओं को लाने की परम्परा है हमारे यहाँ,,,
इस बात ने मुझे बहुत तसल्ली दी कि मैं उनके साथ थी,,अगर वो अकेली होतीं तो उस आत्मा को भी कितना कष्ट होता,,
तभी तो कहते हैं कि ऊपर वाला सब देखता है,,उसकी नज़र से कुछ भी छिपा नहीं रहता
कमलेश राणा
ग्वालियर