मुखौटा – अंजू निगम

कल बाजार जाना हुआ तो सोचा अपनी पूरानी सखी से भी मेल-मुलाकात कर लूँ|अरसा हो गया था उससे मिले |कई बार उलहाने दे चुकी थी,सोचा आज जाकर उसे चौंका दूँ|

घर गयी तो नौकर ने दरवाजा खोला|अंदर अच्छी-खासी रौनक जमी थी|शायद कोई पार्टी चल रही थी|१०-१५ महिलाएं जुटी थी|पहनावे से रईसी झलकती|

उन्हें देख अंदर चले जाने में मैं झिझकने लगी|मुझे देख रमोला का चेहरा उतर गया|शायद मेरे कपड़े उनके”स्टेटस”से “मैच”नहीं कर रहे थे|मैं अजीब कशमकश में फंसी थी|

रमोला ने तुरंत मुस्कान ओढी,”अरे!!आओ अंदर आओ|फोन कर लेती आने से पहले|”मुझे भी लगा ,”हाँ रमोला ठीक तो कह  रही है|फोन कर लेती तो इस हालात से दो-चार न होना पड़ता|”

“आंटी से मिल आती हूँ|तुम अपने दोस्तो को अंटैड करो|”कह मैंने आंटी के कमरे का रूख किया|


आज आंटी के कमरे का सच मेरे सामने था|अजीब सी बदबू से आंटी का कमरा भरा था|आंटी का बदन बुखार से तप रहा था|उनकी ममत्व पूर्ण आँखो को देख मुझसे रहा न गया|सोचा ठंडे पानी की पट्टियाँ लगा दूँ,बुखार की तेजी कुछ तो कम  होगी|

फ्रिज से ठंडे पानी की बोतल निकलने गई तो रमोला और उसकी सहेलियों की आवाजे मेरे कान में पड़ी|

 “क्या रमोला, तुमने ऐसे दोस्त भी पाल रखे हैं?”कह सब खिलखिला कर हंस दिये|

“अरे कहाँ!!!!तुम सबको तो मालुम है मेरा”स्टेटस”|जरा हाथ पकड़ाया तो ये तो सर पर ही चढ़ बैठे|इन मिडिल क्लास के लोगो को तो तुम जानती हो न!!”कह रमोला के साथ सब खिलखिला दी|

दुख और अपमान से मेरा संर्वाग जल उठा|यकीन नहीं हुआ ये वही रमोला है जो कुछ साल पहले मेरे ही घर के बगल में रहती थी|और अक्सर कटोरा-कटोरी लिए मेरे दरवाजे खड़ी ,मेरे घर के आधे महीने के राशन पर अपने हाथ साफ करती थी|तब मुझसे ज्यादा सगा इसका कोई न था|

मुखौटे के पीछे लगा रमोला का असली चेहरा बहुत घृणित था।

अंजू निगम

नई दिल्ली

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