औरत और मर्द का रिश्ता इतना उलझा हुआ क्यों हो जाता है आखिर…और वो तब जब वो रिश्ता पति पत्नी का हो ?
अभी ऐसे ही किसी की कुछ इसी” दरकते रिश्ते “की कहानी सुनते हुए पीछे पढ़ी हुई कुछ पंक्तियां याद आई कि ” औरत और मर्द का रिश्ता जो इंसान को इंसान के रिश्ते तक पहुंचाता है और फ़िर एक देश से दूसरे देश के रिश्तों तक… पर यह रिश्ता अभी उलझा हुआ है..
क्यूंकि अभी दोनों अधूरे हैं दोनों ही एक-दूजे को समझ नही पाए हैं.. उनके अनुसार हम लोग जवानी-खूबसूरती की कोशिश को, कुछ सुखों और सहूलियतों की कोशिश को मोहब्बत का नाम दे देते हैं.. लेकिन मोहब्बत जैसी घटना सिर्फ़ एक किसी
“पूरे मर्द “या “पूरी औरत” के बीच घट सकती है.. “पूरी औरत” से यहाँ उनका मतलब पूछा गया तो जवाब बहुत खूबसूरत दिया उन्होंने.. ”वह औरत जो आर्थिक तौर पर, जज्बाती तौर पर और जहनी तौर पर स्वंतंत्र हो.. आजादी कभी किसी से मांगी या छीनी नही जा सकती है.. न ही यह पहनी जा सकती है, यह वजूद की मिटटी से उगती है..”सच ही तो कहा है बिल्कुल यह ..
चलिए आपको अभी असली जिंदगी में कुछ इसी तरह की कहानी जो अभी मैने किसी से सुनी बताते हैं । नाम हम काल्पनिक रख लेते हैं इस किस्से के अंत में आपकी क्या राय रहेगी यह जानने की उत्सुकता रहेगी …. क्योंकि जिसने हमें अपनी यह कहानी सुनाई तो सलाह मांगी हमसे कि क्या करें वो इन हालात में ..?
महज बीस साल की तो थी उमा जब उसकी शादी एक बड़े से शो रूम वाले विक्रम के साथ कर दी गई। मां बाप ने अपनी तरफ से यह देखा कि पैसा है लड़की सुखी रहेगी ।और लड़की आज से कई दशक पीछे की कि चलो शादी हो गई बिना किसी मुश्किल के
,बाकी लड़कियों की तरह अब आगे जिंदगी चलेगी, पर सिर्फ पैसे के बल पर सब खुशियां मिल जाती तो बात ही क्या थी। यहां आ कर पता चला कि पति तो पहले ही अपनी भाभी के मोह जाल में उलझा हुआ है। यह विवाह सिर्फ समाज का था, दिल का नहीं।
फिर उस से ज्यादा हैरानी भाभी के बेटे को देख कर हुई जो हुबहू उसके पति की तरह ही दिख रहा था। विक्रम ने यह बात पूछने पर नहीं मानी पर सामने तो पूरी कहानी खुद कुदरत ही कह रही थी।
दिल की कहानी की अपनी दुनिया थी ,पर जो कहानी समाज के लिए शादी के रूप में थी रस्म तो उसकी भी निभनी थी। उसी रस्म के तहत विक्रम और उमा के भी दो बच्चे हो गए बेटा बेटी। जिंदगी अपने कर्तव्य के रास्ते पर चलने लगी ,पर दिल की भी अपनी दुनिया होती है,
जो बहुत कुछ मांगती है, एक कंधा चाहिए जहां सिर रख कर बात की जा सके ,एक ऐसा साथ चाहिए जो तन मन की जरूरत पूरी कर सके। और यह इच्छा जरूरत तब और बढ़ जाती है जब बच्चे बड़े हो कर अपनी राह पर निकल पड़े और आप एक दम अकेले हो जाएं।
उमा भी अपनी उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच गई थी। उसने जो पढ़ाई की हुई थी उसी के बल पर एक स्कूल में जॉब पर लग गई। विक्रम वहीं अपनी दिल की दुनिया में इस क़दर गुम था कि उसने उमा की किसी बात पर एतराज नहीं किया। जब एक दूसरे की जिंदगी से पति पत्नी को कुछ लेना देना नहीं होता तभी तीसरे का आगमन होता है और यहां तो तीसरा पहले ही एक की दुनिया में शामिल था।
अकेली पड़ी तो उमा ,जिसका न कोई भाई बहन न कोई ऐसी सहेली जो उसकी तन्हाई दर्द को समझ सके। तभी विक्रम के दोस्त राजेश की तरफ उसका झुकाव बढ़ने लगा। राकेश की पत्नी भी बच्चों के साथ दूर गांव रहती थी तो राकेश को भी उमा के साथ अपना साथ अच्छा लगने लगा।
रोज मिलना एक दूसरे को मन की बातें सांझी करते करते वो एक दूसरे के बहुत करीब आ गए। टूटी हुई औरत वैसे भी अमर बेल की तरह होती है जहां थोड़ा सहारा मिला वहां ही झुक जाती है। इधर उनके बच्चे बड़े होते गए उधर वह अपने ही मैं अधिक गुम होते गए। दस साल बीत गए । इस तरह रिश्ते को चलते चलते। और वो इसी में खुश रहे कि इस तरह के रिश्ते की अब तक किसी को कानो कान खबर नही हुई है।
तभी कोरोना आया और कई जिंदगी बदली । इसी में विक्रम की भाभी भी चली गई। भाभी के बेटे के नाम विक्रम ने एक दुकान और बैंक में मनी सेव कर के बिना कुछ कहे ही इस रिश्ते पर न ना करते हुए भी अपनी स्टैंप लगा दी। विक्रम वापसी की और मुड़ने लगा पर अब उमा विक्रम के मन से दूर जा चुकी थी । चाहे एक छत के नीचे रह रहे थे। पर बस वो रहना भर ही था।
इधर दस साल का रिश्ता अब राकेश की तरफ से पोसिसिव होता जा रहा था। उमा किसके साथ जाती है ,कौन आता है घर में आदि आदि प्रश्न अब उमा की जिंदगी को हिलाने लगे। विक्रम के साथ उसका रिश्ता बंधा हुआ समाज का था। पर राकेश के साथ तो ऐसा कोई बंधन नहीं था। रोज की किच किच से वो अब परेशान रहने लगी।
पर किस को अपनी बात कहे। इतनी हिम्मत कर नहीं पा रही थी कि इस रिश्ते को खत्म कर दे। उसको लग रहा था कि यह सब खत्म करके वो फिर से अकेली हो जायेगी। इसी उहपोह में दिन निकल रहे हैं।
उसको यह समझ नहीं आ रहा है कि यह रिश्ता अब सिर्फ मतलब भर का रह गया है और जब रिश्ता सिर्फ हक की बात करे अपने फर्ज की नही तो वह बाकी दूसरे रिश्तों पर भी असर डालता है। कल को जवान बेटी बेटा जब यह सब जानेंगे तो क्या असर होगा?
पति वैसे कोई दिलचस्पी नहीं रखता पर यह तो मानता है कि घर में रहने वाली जो औरत है वो उसकी पत्नी है और कोई पति यह बर्दाश्त नहीं करेगा चाहे अपनी बेवफाई वो पूरी शिद्दत से निभाता रहा।
आपके ख्याल से उसको अब क्या करना चाहिए? मुझे उसकी कहानी सुन कर यही लगता है कि यदि अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट का ख्याल है तो इस रिश्ते से दूर चले जाना चाहिए । क्योंकि यह तो पक्की बात है कि इस रिश्ते में वो मोहब्बत नाम की चीज तो है नहीं ,
बस एक दूसरे के साथ सुविधा से जीने की ललक है। या दस सालों की एक दूसरे की सहज उपलब्ध की आदत। जब बात हुई तो लगा कि वो समझ कर भी नहीं समझ पा रही है कि क्या करें,कई बार हमें खुद की समझ से अपने सवालों के जवाब पता होते हैं
पर हम खुद की बजाय उन पर दूसरों के जवाब सुन कर फैसला लेने की हिम्मत करते हैं। अंदर से कहीं इतने टूटे होते हैं कि सुनाने वाले को कहते रहेंगे आप मुझे गाली दे दो ,चाहे जितना भरा बुरा कहना है कह दो पर उस फैसले तक पहुंचा दो जो आगे हमारी जिंदगी के लिए सही हो …
कोई तो बंधन है जो उमा अब तक विक्रम के साथ शादी के पहले दिन की बेवफाई जानते हुए भी .. राकेश के साथ रिश्ते की जिसमे अब सिर्फ जलालत है उसको क्यो जिंदगी में शामिल करके अपनी जान और मुश्किल में डालनी है।
आप लोग क्या सलाह देंगे बताना न भूलें …