शायद मुझे भाभी की बद्दुआ लग गई। – अर्चना खण्डेलवाल

अरे!! भाभी आपका तो चेहरा लटक गया है, क्या हुआ जो मायके नहीं जाओगे? देखो मेरी फाइनल की परीक्षाएं है और मम्मी के घुटनों में दर्द रहता है और जब भाभी घर पर हो तो ननद को आराम मिलना ही चाहिए, आप कहीं नहीं जायेगी, आप चली जायेंगी तो घर का काम कौन करेगा? अपना … Read more

एक आंख ना भाना – विनीता सिंह

रमेश एक छोटे शहर का लड़का था उसने बड़ी मेहनत की मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी प्राप्त कर ली। वह दिन रात मेहनत करता जिससे उसकी कंपनी ऊंचाईयों को छूए। यह सब देख कम्पनी के मालिक अनूप सेठी जी रमेश के काम से खुश थे उन्होंने रमेश की ईमानदारी और मेहनत देखते हुए … Read more

नालायक बेटा – शुभ्रा बैनर्जी

“सुनो मधु,आज जैसे ही शंभू आए मुझसे मिलने के लिए कहना।पता नहीं कब आता है,मुंह छिपाकर कमरे में चला जाता है।तुम भी तो कमरे में जाकर खाना दे आती हो। दो दिन नहीं खाएगा ना,तो सब अकल ठिकाने पर लग जाएगी।मुझसे कभी सीधे मुंह बात भी नहीं करता। शर्मा जी के बेटे को देखो।राम है … Read more

एक आँख न भाना – मीरा सजवान ‘मानवी’

राधा और सुषमा एक ही मोहल्ले में रहती थीं। दोनों पहले बहुत अच्छी सहेलियाँ थीं—साथ बाजार जातीं, त्यौहार मनातीं, और हर बात साझा करतीं। पर वक्त के साथ रिश्तों में एक छोटी सी दरार आ गई। हुआ यूँ कि एक दिन राधा की बेटी ने स्कूल प्रतियोगिता में पहला स्थान पा लिया तो सुषमा के … Read more

कुछ गलती की माफ़ी नहीं होती – लतिका पल्लवी

रामायण जी के घर पर सत्यनारायण की पूजा हो रही थी। करीब करीब पूरा गाँव इकट्ठा था।आज रामायण जी के पोते का पहला जन्मदिन था।वे इस ख़ुशी मे नारायण पूजा करवा रहे थे उसके बाद भोज का भी इंतजाम था।पूजा हो ही रही थी कि तभी उनके पड़ोस का लड़का संजय दो लड़को के साथ … Read more

दुआ का असर – लतिका श्रीवास्तव

शाम ढल रही थी धीमे धीमे।सूर्यास्त की लालिमा बहुत मनोयोग से आसमान को अपने आगोश में लेने को तत्पर हो चली थी।सांध्यकालीन आकाश में बादलों की मनोहारी छटा किसी अनोखे अबूझ चित्रकार की सधी हुई तूलिका से अनुपम रंग संयोजन  उकेरने में दत्त चित्त थी।कैसा चित्रकार है यह जो रोज उसी काम को पूरी तत्परता … Read more

बद्दुआ – के आर अमित

नया नया बंदूक का लाइसेंस बनवाया था। अब पूरे गांव में वो पहला और इकलौता शख्स था जिसके पास दोनाली बंदूक थी। भैंस चराने जंगल जाता तो बंदूक चंबल के डकैतों की तरह कंधे पे रखकर निकलता था। बार बार हाथ अनायास ही मूछों पे चला जाता चाल भी पहले से बदल गई थी। एक … Read more

बहू ही घर की असली लक्ष्मी है – विमला गुगलानी

       सुजाता के घर किट्टी प्रार्टी चल रही थी। पद्रहं- बीस औरतें सज धज कर बैठी तबोला खेल रही थी। फिर खाना पीना, गाना – बजाना, साड़ियों , जेवरों की बातें और सबसे जरूरी बहुपुराण या फिर बिना मतलब की यहां वहां की बातें, रसोई की , कामवालियों की यानि कि हर घरेलू मुद्दे पर बातें … Read more

सीरत – कल्पना मिश्रा

काला रंग,एक आंख आधी बंद सी और बाहर निकले हुए दांत,,,कुल मिलाकर वह मुझे एक आंख ना भाती। मैं बहाने बनाकर उसे निकालना चाहती लेकिन उसकी मां हाथ जोड़कर अपनी कमजोर स्थिति का हवाला देकर मुझे चाहकर भी उसे नही निकालने पर मजबूर कर देती। फिर एक दिन अचानक मेरे पति नही रहे।उनकी तेरहवीं के … Read more

ओहदा – (अर्चना सिंह)

रिटायरमेंट के बाद विभूति जी के पास ये पहला मौका था जब तसल्ली से बिना बहाना किए अपनी बेटियों के पास रह सकते थे । दोनो बेटियाँ एक ही शहर दिल्ली में ब्याही हुई थीं । ईश्वर की दया से किसी भी चीज में कोई कमी नहीं थी। दोनो दामाद सरकारी ऑफिसर थे । कभी … Read more

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