कैसे हो अपनों की पहचान? – रोनिता कुंडु 

हेलो पापा जी कैसे हो आप सब? मम्मी जी और अविनाश कैसे हैं? पूजा ने कहा  अमित जी:   बहू! हम सब तो ठीक है, पर तुम ठीक तो हो ना? आज मेरा नंबर गलती से लग गया या कोई काम है? पूजा:  ऐसा क्यों बोल रहे हैं पापा जी? भले ही आप लोगों से … Read more

अपनों की पहचान-मनीषा सिंह

स्वागत है तुम्हारा” रोशन भवन” में••! आज से तुम हमारे घर की सदस्या हो! कहते हुए शारदा जी बहू की नजर उतरती हैं और उसके गृह प्रवेश हो जाने के बाद वह आनंदी शारदा जी की इकलौती बेटी जिसकी शादी भोपाल के बड़े बिजनेसमैन से हुई थी, से भावना को उसके कमरे तक ले जाने … Read more

मायके की पुकार

सुमन फोन उठाने के लिए जैसे ही भागी, तभी सास कविता देवी की ऊँची आवाज़ गूँजी—“फिर बज उठा तेरे फोन का घंटा! तेरी माँ और तेरे रिश्तेदारों को क्या चैन नहीं है? दिन में दस-दस बार फोन करते हैं। जैसे हमारे घर का सुख-चैन छीनकर ही दम लेंगे।” सुमन सकपका गई। शादी को बस एक … Read more

वसीयत का सच

“कैसी वसीयत बनाई पिताजी ने! ज़मीन, मकान, कुछ भी पूरी तरह से हमारा नहीं। हर चीज़ में मम्मी की हिस्सेदारी… जब तक वह ज़िंदा हैं, तब तक कुछ भी हमारा नहीं।” —बहू अंजली ने होंठ सिकोड़ते हुए कहा। “मैं भी यही सोच रहा हूँ। पेंशन तो वैसे ही उन्हें मिलती रहेगी। फिर भी पिताजी ने … Read more

मुझे अपनो की पहचान हो गई है। – अर्चना खण्डेलवाल

मम्मी,  आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं, और हमारी तरफ से ये प्यारा सा उपहार, रोली ने आपके लिए अपने हाथों से जन्मदिन का केक बनाया है, जतिन ने अपनी मम्मी रंजना जी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। केक देखकर रंजना जी के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया, उन्होंने उड़ती नजरों से केक को देखा … Read more

रिश्तों की दरार

“बड़ी बहू! बड़ी बहू!… रुको ज़रा!” मोहल्ले की चाची हाँफती हुई प्रज्ञा के पास पहुँचीं।प्रज्ञा ने तुरंत पैर छूते हुए कहा—“क्या हुआ चाची जी? आप इतनी घबराई क्यों हैं? सब ठीक तो है?” चाची ने लंबी साँस ली और बोलीं—“अरे बड़ी बहू, हम तो ठीक हैं, लेकिन तुम्हारे घर में आज फिर झगड़ा हुआ है। … Read more

विश्वासघात -बिमला रावत : Moral Stories in Hindi

राधिका जी शाम की चाय पी रही थी कक तभी गेट की घंटी बजी, देखा तो श्यामा जी थी। राधिका जी ने श्यामा जी का बडे े़ गमम जोशी से स्वागत ककया। करती भी क्यों नहीं, दोनों की दोस्ती पचास साल पुरानी थी। राधिका जी ने श्यामा जी से कहा, ‘तुम बैठो, मैंतुम्हारे ललए चाय … Read more

अपनों से पराए भले – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

‘‘ ये लोग जो चुपचाप बैठे है ये लोग कौन हैं गरिमा तू जानती है इनको?’’ रसोई में पूरी तलती  सुरभि ने गरिमा से पूछा ‘‘ जानती तो मैं भी नहीं… लगता है कोई बाहर वाले होंगे, तभी तो मेहमान बनकर बैठे हैं।’’ गरिमा ने अपनी सोच की गाड़ी को एक कदम आगे बढ़ा कर … Read more

यादों की पोटली – प्रतिमा पाठक : Moral Stories in Hindi

बात उन दिनों की है, जब मैं शिक्षिका थी।दिल्ली के एस.जे. मॉडल स्कूल में मैंने तीन वर्षों तक अध्यापन कार्य किया। यह केवल नौकरी नहीं थी, बल्कि आत्मा को संतुष्टि देने वाला अनुभव था। कक्षा की चौखट पर कदम रखते ही ऐसा लगता था मानो जीवन रूपी किताब का एक नया पन्ना खुल रहा हो। … Read more

आप अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहते – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

हेलो.. भाई साहब, दशहरे के दिन राजू ने छोटा सा हवन रखा है यहीं अपने गांव में, आपको भाभी जी को और बेटे बहू को सभी को आना है ज्यादा लोग नहीं है बस घर-घर के ही कुछ लोग हैं आपको तो पता ही है राजू कब से इस छोटे से घर को पक्का करवाने … Read more

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