क्यों ना करूँ अभिमान – ऋतु अग्रवाल
“भई, वाह! सुधा, बहू तो तुम हीरा चुन कर लाई हो। देखने-भालने में ख़ूबसूरत,पढ़ी-लिखी,सभ्य, सुसंस्कृत,इतनी मीठी वाणी और सोने पर सुहागा यह कि इतना बढ़िया भोजन! साक्षत अन्नपूर्णा है बहुरानी। आज तो पेट के साथ आत्मा भी तृप्त हो गई।” सुधाकर जी अपने बेटे की नई-नवेली बहू के हाथों का भोजन प्रथम बार कर रहे … Read more