क्यों ना करूँ अभिमान – ऋतु अग्रवाल

    “भई, वाह! सुधा, बहू तो तुम हीरा चुन कर लाई हो। देखने-भालने में ख़ूबसूरत,पढ़ी-लिखी,सभ्य, सुसंस्कृत,इतनी मीठी वाणी और सोने पर सुहागा यह कि इतना बढ़िया भोजन! साक्षत अन्नपूर्णा है बहुरानी। आज तो पेट के साथ आत्मा भी तृप्त हो गई।” सुधाकर जी अपने बेटे की नई-नवेली बहू के हाथों का भोजन प्रथम बार कर रहे … Read more

माँ  जैसी कोई नहीं – उमा वर्मा

रात के बारह बज रहे थे ।नींद कोसों दूर है ।बेटा बहू सो चुके हैं ।मदर्स डे  चल रहा है ।खूब लेख लिखा जा रहा है ।माँ की तो बात ही अलग होती है पर पिता कुछ कम नहीं होते।मुझे भी उम्र के छठे पड़ाव पर, अपने अकेले पन में माँ बहुत याद आ रही … Read more

 अभिमान – अविनाश स आठल्ये

ये देखो नितिन, हर्षल गुप्ता भी तो तेरे साथ पढता था न, उसे भी बैंक में जॉब लग गया है, उसके माँ बाप का भी सीना गर्व से  किंतना चौड़ा हुआ होगा सोचो.. नितिन की माँ सुंगधा ने कहा। तुझे पता है, विभा भी सिविल सर्विसेज के लिए सिलेक्ट हो गई है, तू कुछ बनेगा … Read more

संगत का असर –  विभा गुप्ता

  ” दीदी,आप की यह साड़ी तो बहुत सुंदर है,मैं पहन लूँ।” आरती ने अपनी जेठानी देवकी से कहा तो वह बोली ” ठीक है।पहन ले पर ज़रा ध्यान से।” ” हाँ दीदी,ज़रूर।” साड़ी हाथ में लेती हुई आरती अपने कमरे में चली गई।       जब से आरती देवकी की देवरानी बनी थी तब से उसकी यही … Read more

विधि का विधान – डॉ. पारुल अग्रवाल

आज शोभना बहुत खुश थी, बेटा मानव अमेरिका से पढ़ाई पूरी करके जो आ रहा था। जब से बेटे के आने का पता चला था तब से अपने हाथ पैरों का दर्द भूलकर इधर से उधर चक्करघिन्नी की तरह घूम रही थी। घर में तरह-तरह के पकवान बन रहे थे।खुश तो शोभना के पति आदित्य  … Read more

 पहचान –  मोना शुक्ला

उमा और गोरी एक छोटे से गांव में रहने वाली लड़कियां थी । दोनों एक ही कक्षा में पढ़ती थी । उमा एक  अंतर्मुखी और कम बोलने वाली लड़की थी ।जबकि गोरी एक बहिर्मुखी स्वभाव की और खुले मन  वाली लड़की थी ।दोनों एक ही कक्षा में पढ़ने के कारण मित्र थी ।12वीं कक्षा तक … Read more

स्वाभिमान या अभिमान? – पुष्पा पाण्डेय

आजकल परी देर से घर आने लगी है। शुरू-शुरू में अनिता के पूछने पर नित्य नये बहाने तैयार रहते थे। अनिता समझती थी कि ये बहाने है, लेकिन उसके तेवर देख कुछ बोल नहीं पाती थी। चार साल की परी थी तभी से वह परी को लेकर अपने पति से अलग रहने लगी। अनिता पिता … Read more

अभिमान कुछ क्षण का – निकिता अग्रवाल

निष्ठा तुम कल खाना बना देना छोटू खा लेगा, घर से निकलते -निकलते निष्ठा की सास ने उसे बोला। आवाज़ में कुछ संकोच भी था और संकोच के साथ साथ निष्ठा को उनकी आवाज़ में उनका अभिमान टूटता सुनाई दे रहा था। बात छह महीने पुरानी थी। दिवाली को बस दो हफ़्ते बाक़ी थे । … Read more

साइकिल – कनक केडीया

सन्ध्या, हाँ यही नाम था उस सरल गाँव की गृहिणी का। सन्ध्या सा सुरमई रंग, मन मोहने वाली सादगी बस इतना था परिचय उसका। पति नारायण पास के शहर में किसी मील में नौकरी करता था। एक साइकिल थी जो उसके मील केआवागमन का साधन थी। गृहस्थी को सम्पूर्ण करने लड्डू गोपाल सा एक बेटा … Read more

“अभिमान” – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

“सलोनी , हम सुबह की गाड़ी से गांव निकल जायेंगे। सोचा तुम देर तक जगती हो। कहीं हमें घर पर नहीं देख कर परेशान हो जाओ इसलिए बता दिया है।” बड़ी बहन की बात सुनकर सलोनी थोड़ी देर के लिए चुप हो गई। फिर बोली-”  क्या दीदी तुम तो पंद्रह दिन के लिए आई थी। … Read more

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