चोली-दामन का साथ – स्नेह ज्योति

माँ – बाप जिसे लाडो से पालते हैं ,वहीं एक दिन हो जाती पराई है “घर की बगिया में खिली नन्ही कली दूसरे की बगिया का फूल बनने चली जाती हैं “। राधिका का भी अरमा था कि कब वो बड़ी होएगी और पढ़ाई से उसे निजात मिलेगी । क्योंकि उसे पढ़ना पसंद नहीं था … Read more

चुपचाप जिम्मेदारी निभाता हुआ पुरुष  – शुभ्रा बैनर्जी

चुपचाप जिम्मेदारी निभाता हुआ पुरुष अपने भाई के श्राद्ध में जैसे ही दोनों विवाहित बहनों ने सुधा के हांथों कुछ रुपए रखे,सुधा को लगा मानो उसके पति के मुंह पर थप्पड़ मार दिया है उन्होंने।बच्चों ने भी पहले ही बोल कर रखा था कि किसी से पैसों की मदद नहीं लेना मां।सुधा आस पास के … Read more

अँधेरों से आगे – नीलम सौरभ

पति से बातें करती हुई यामिनी के नयन फिर से झर-झर बरस रहे थे मगर आज की यह बारिश ख़ुशियों वाली थी। वे भी प्रेम से ताके जा रहे थे कर-बद्ध एकटक उनके मुख को निहारती हुई अर्द्धांगिनी को। पति के गहरे नयनों की भाव-भरी भाषा को बाँचती हुई यामिनी बीते अतीत की भूल-भुलैया में … Read more

एक गलती की सजा –  सविता गोयल

” सर आप क्या लेंगे? ,, वेटर ने आर्डर लेते हुए जतिन से पूछा। ” काॅफी और एक सैंडविच ” जतिन ने अपना आर्डर बता दिया । थोड़ी देर में एक वेट्रेस उसका आर्डर लेकर आई ,” सर, योर आर्डर ,,   मोबाइल में नजरें गड़ाए  जतिन की नजरें जैसे ही उस लड़की की तरफ उठीं … Read more

 भाई हो तो ऐसा –  विभा गुप्ता

 ” भाभी, मैं काॅलेज़ जा रहा हूँ, आज एक एक्स्ट्रा क्लास है,तो आने में देरी हो सकती है।” विनय अपनी भाभी आनंदी को कहकर काॅलेज़ चला गया।         विनय का बड़ा भाई नरेंद्र एक सरकारी मुलाज़िम थें।नरेंद्र के पिता अध्यापक थें और माँ एक सुघड़ गृहिणी।पति की सीमित आय में उनकी माँ ने अपने दो बेटों … Read more

हर उम्र की जिम्मेदारी – पूनम अरोड़ा

 वैसे तो बचपन से पढ़ने में होनहार थी कावेरी किन्तु जब एक्जाम होते तो बहुत ज्यादा तनाव में  रहती ।पहले से तैय्यारी होने के बावजूद बार बार रिवाइज़ करती रहती । उसे पास होने का भय नहीं बल्कि   अपनी  प्रथम श्रेणी बचाने और क्लास में  सबसे आगे रहने का एक उन्माद सा रहता। जिसे … Read more

एक जिम्मेदारी यह भी  –  पूजा मनोज अग्रवाल

भाभी,,,!! जल्दी से नीचे आइए,,,देखिए ये क्या हो गया ,,,!! एकाएक देवर जी और देवरानी की आवाज सुन कर मेरा मन घबराया और मैं दौड़ कर सीढ़ियों से नीचे वाले फ्लोर पर आई ।  अमावस का दिन था तो उस दिन घर पर वैसे ही बहुत काम था तो सासू मां ,में और मेरी देवरानी … Read more

सपनों के इन्द्रधनुष – डॉ पुष्पा सक्सेना

  उस पहाड़ी कस्बे में पापा की नियुक्ति होते ही आस-पास के बंगले वाले स्वागत-सत्कार में जुट गए थे। रोज ही नई सौगातों, पार्टियों का तांता लग गया था। छोटी जगहों में पुलिस अधिकारी का दबदबा ज़रा अधिक ही होता है। पापा को जो कोठी मिली थी उसके बाई ओर मानिकराम की लांड्री थी। पूरे कस्बे … Read more

 ईमानदार कोशिश – लतिका श्रीवास्तव

आज फिर भोजन कक्ष में हंगामा बरपा था…भोजन से भरी थालियां जमीन पर औंधी पड़ीं थीं  दाल से भरे गंज में तिलचट्टे तैर रहे थे सब्जी से दीवाल पर चित्रकारी की गई थी   और रोटियां तो टेबल मैट बन गई थीं…..मृदुला जी जब तक वहां पहुंचीं खाना पकाने वाले त्रस्त होकर भाग चुके थे … Read more

ये कैसी जिम्मेदारी है… – संगीता त्रिपाठी

“जिम्मेदारी..”ये शब्द अपने में अनेक भार लिये हुये है, कुछ हँस कर निभाते है कुछ मज़बूरी में निभाते है..। किसी को समय पर जिम्मेदारी मिलती है तो किसी को असमय….।      जिम्मेदारी से मुझे अपने पड़ोस में रहने वाली सुषमा दीदी याद आ गई…। एक सुबह जब मेरी ऑंखें खुली तो सामने के घर में ट्रक … Read more

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