पछतावा – नंदिनी

गिले शिकवे सिर्फ़ सांसों के चलने तक ही होते हैं। बाद में तो सिर्फ़ पछतावे ही रह जातें हैं। चलिए सुनते हैं आज मालती की कहानी दो बहन और दो भाई में सबसे बड़ी थी घर में, पूरा घर उसकी मर्जी से चलता ,गांव में परिवार रहता था और कुछ सालों बाद आगे की पढ़ाई … Read more

तिल तिल कर टूटता परिवार – कामिनी मिश्रा कनक

पिताजी मेरी नौकरी लग गई मै अब शहर जाऊंगा नौकरी करने ।  अब सब अच्छा होगा , हमारे भी अच्छे दिन आ गए पिता जी । अनिल – मां कहां है तु ….??? पिता:- अनिल मां मंदिर में है तेरे लिए प्रार्थना कर रही है । अनिल – ठीक है पिताजी मां जैसे ही आएगी … Read more

नफरत की दीवार – माता प्रसाद दुबे

जीवन के पैंसठ बसंत देख चुकी मालती देवी के पास सब कुछ था सिर्फ जीवन साथी को छोड़कर जो एक दशक पहले उसका साथ छोड़ चुके थे। रहने के लिए आलीशान घर दो बेटे रमेश, दिनेश,दो बहुएं,आरती,निशा, बड़ी बहू आरती के दो बच्चे आयुश,प्रीति,छोटी बहू निशा एक वर्ष पहले ही उसके छोटे बेटे दिनेश की … Read more

ऐसे होते हैँ ससुर जी – मीनाक्षी सिंह

अंकित ,क्यूँ आ रहे हैँ पापाजी (ससुर जी) गांव से ! तुम्हे पता हैँ हम दोनों वर्किंग हैँ ! शुभी (बेटी ) भी सुबह स्कूल चली जाती हैं ! पूरा दिन घर साफ सुथरा पड़ा रहता हैँ ! पापाजी को हमेशा बलगम रहता हैँ ! पूरे दिन खांसते और थूकते रहते  हैँ ! और तो … Read more

पैसे की ताकत – रीटा मक्कड़

सुनीता के घर के  वेहड़े में  पीछे की तरफ एक सर्वेंट क्वार्टर था।जिसमे एक जोड़ा रहता था उनको देख कर लगता था कि उनकी शादी को अभी डेढ़ दो साल से ज्यादा नही हुए थे।वो लड़की जिसका नाम मीना था ,वो वैसे तो किसी कोठी में काम करती थी लेकिन कोविड की वजह से उसका … Read more

कुछ कहते रहिए – लतिका श्रीवास्तव 

हेलो बेटा हेलो….शैलजा जी मोबाइल पर कहती जा रही थीं….पर शायद उधर से कोई उनकी बात सुनकर भी अनसुना करता जा रहा था….मनोहर जी के गुस्से का  पारा बढ़ता जा रहा था….क्या हो गया है इसे जवाब क्यों नहीं देता हम लोगों की बात ही नही सुनता …इतना व्यस्त हो गया है वहां जाकर..!!जब से … Read more

क्यो कुछ बच्चो के पास अपने जन्मदाताओं के लिए इज़्ज़त की दो रोटी नही होती? – संगीता अग्रवाल

अपने कमरे मे गुमसुम बैठे अस्सी वर्षीय रामलाल जी बहुत कुछ सोच रहे थे। पास लेटी जीवनसंगिनी सुलोचना जो उनके सुख दुख की साथी रही थी आज लकवे के कारण बेबस पड़ी थी ।बेबस तो खुद रामलाल जी भी थे किसी बीमारी से ज्यादा अपनों से सताये हुए जो थे। अस्सी की उम्र देखभाल चाहती … Read more

जाके पाँव न फटी बिवाई – नीलम सौरभ

‘चौधरी जी का बाड़ा’…यही नाम है हमारे शहर की पुरानी बस्ती के बीच बसे उस चॉल का। ‘यू’ आकार में बनी उस तीन मंजिला रिहायशी इमारत में 36 खोलियाँ हैं अर्थात 36 परिवारों का निवास स्थान है चौधरी बाड़ा। बाड़े के मालिक अवध नारायण चौधरी परिवार सहित पॉश इलाके के अपने बड़े बंगले में रहते … Read more

ससुराल की देहरी – डॉ. पारुल अग्रवाल

आज अपराजिता की बेटी अन्वी की शादी थी। बेटी की ज़िद थी कि उसकी शादी की सारी रस्में मां के हाथों ही हों इसलिए अपराजिता को उस ससुराल की देहरी को लांघ कर फिर से कुछ दिन के वापिस आना पड़ा। ये ही तो वो दहलीज़ थी जिसको आज से लगभग पंद्रह साल पहले वो … Read more

फैसला – रीटा मक्कड़

“मीरा..ये देख सासू मां के कितने सुन्दर और नए नए सूट रखे हैं..जितने चाहिए ले जा और सुन पूनम तू भी ले ले और अपनी अम्मा और बहन के लिए भी ले जाना..और सुनो तुम दोनो अगर ये स्वेटर और शॉल वगैरह भी लेने तो वो भी ले लेना..!” आज नीलम का मन बहुत ज्यादा … Read more

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