धर्म बेटी – डा. मधु आंधीवाल

वृद्धाश्रम का एक कमरा एक सौम्य ,शालीन वृद्ध महिला चुपचाप गीता का पाठ कर रही थी । अपनी मौन साधना में खोई हुई । देखने से लगता था बहुत सम्पन्न घर की होगी पर पता ना किन परिस्थितियों में यहाँ पहुँच गयी । लविका एक रिसर्च स्कालर थी समाज शास्त्र की । वह महिलाओं पर … Read more

मैं बहू हूं साहब….. – मंजू तिवारी

मैं बहू हूं साहब,, मेरे अधिकारों पर सदा से मेरी सासू मां का कॉपीराइट चला आ रहा है। शदियां गुजर गई मैं अभी तक अपने अधिकारों को सुरक्षित नहीं कर पाई हूं।,,, मैं एक बंधुआ मजदूर हूं। मैं सदा से घर की धुरी रही हूं। लेकिन मुझे कभी महत्व नहीं दिया गया,,,, कई घरों में … Read more

पासा पलट गया  – पूनम अरोड़ा

मुम्बई  में उच्च पद पर कार्यरत विवान ने अपने लिए अपने ही ऑफिस की ही  एक लड़की अपनी जीवनसंगिनी के रूप में पसंद कर ली थी और वो भी उसे पसंद करती थी । विवान  मूल रूप से तो एक छोटे से कस्बे का ही था लेकिन यहाँ   महानगर  में  आकर यहीं  के वातारण … Read more

‘ मेरी बहू है ‘ – विभा गुप्ता

अब तो उठ जा, हाय..मेरी बच्ची को क्या हो गया…. ये बोल क्यों नहीं रही….” कहते हुए सावित्री जी स्ट्रेचर पर रखे खून के धब्बे लगे सफ़ेद कपड़े में लिपटे एक काया से लिपट-लिपटकर रोती जा रहीं थीं।एक नर्स ने उनसे पूछा भी कि आप कौन है, मरने वाले से आपका क्या संबंध है परन्तु … Read more

भारती बहू – पुष्पा पाण्डेय

रामबचन और इन्द्रनील दोनों बचपन के मित्र थे। दोनों एक ही स्कूल में पढ़े थे। स्कूल से काँलेज और काॅलेज से अपनी- अपनी नौकरी।  रामबचन के चाचा एक शिक्षक थे अतः उसे शिक्षा के मामले में समय-समय पर सलाह मिलती रही। इन्द्रनील का परिवार किसानी करता था। रामबचन प्रशासनिक नौकरी में आ गये और इन्द्रनील … Read more

नये, नये गुल खिलाती शहरी बहू। – सुषमा यादव

विमला के घर गांव में आज बहुत गहमागहमी मची थी। उसके बड़े बेटे अनिल की बारात जा रही थी,बहू बारहवीं तक पढ़ी थी, अनिल भी बी ए पास था, पर गांव में अभी इतनी पढ़ी,लिखी, सुंदर और शहरी बहू नहीं आई थी । बहू सुनीता का मायका तो गांव में ही था, परंतु उसका परिवार … Read more

कौन कहता है माँ केवल एक बार मिलती है ! – संगीता अग्रवाल

नवविवाहित रुचि सकुचाई सी एक कोने मे बैठी थी। घर मे बहुत से रिश्तेदार थे। कुछ अपने अपने जाने की तैयारी कर रहे थे कुछ विदा ले रहे थे और कुछ अभी रुकने वाले थे। रुचि की सासू माँ वीना जी सबको विदा कर रही थी । तभी बाहर कुछ शोर सा उभरा रुचि अपने … Read more

खुशियाँ लौट आईं – ज्योति अप्रतिम

वर्मा जी का बहुत बड़ा परिवार है।बड़े  बूढ़ों से ले कर  छोटे बच्चे भी घर में हैं।कह सकते हैं कि एक भरा पूरा सम्पन्न परिवार जहाँ सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की कृपा बरसती है।  सभी लड़के, बहुएं ,पोते ,पोती पढ़े लिखे हैं और अच्छी नौकरी और व्यवसाय में हैं।घर के बड़े बहुत दयालु हैं। नियमित … Read more

वह जली हुई रोटी – पूजा मनोज अग्रवाल

स्निग्धा,,,!!  मानवी ! ! ,अरे !!  कहां रह गई तुम दोनों ,,?  शांति जी ने अपनी दोनों बहुओं को रौबीले स्वर में आवाज़ लगाई ,,।  खाना टेबल पर लग गया है देरी मत करो,,, खाना ठंडा हो जाएगा,,। जी ,,,  मां जी ,,,आई ।। दोनों देवरानी – जेठानी ने एक ही स्वर मे बोलीं,,। घर … Read more

दिव्यात्मा – कमलेश राणा

उससे मेरी मुलाकात हॉस्पिटल की लिफ्ट में हुई जहाँ मैं अपने एक रिश्तेदार से मिलने गई थी। उसने हॉस्पिटल स्टाफ की ड्रेस पहनी हुई थी मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी छोटी सी बच्ची यहाँ काम करती है, मन में उठते हुए भावों ने आखिर शब्दों का रूप इख़्तियार कर ही लिया … इतनी छोटी … Read more

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