परिवार का हर सदस्य एक कड़ी जैसा होता है। – सविता गोयल

देखो दीदी, आप रोज रोज माँ जी के धोने के कपड़े मेरी तरफ मत सरकाया करो। मेरे तो पहले ही बहुत से कपड़े हो जाते हैं… नन्नू हीं दिन में तीन- चार जोड़ी कपड़े गंदे कर लेता है। और ये कचरा भी आप अपने कमरे से निकालकर मेरे कमरे के सामने फैला देती हैं। रीना … Read more

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तलाकशुदा हूँ ,चरित्रहीन नहीं – मीनाक्षी सिंह

ऑफिस में घुसते ही जैसे ही मुस्कान अपनी चेयर पर बैठी ,तभी 55  वर्ष के मिस्टर विमल उसकी टेबल पर आयें ,बोले – हेलो मुस्कान ! मुस्कान – जी नमस्ते, कहिये सर ,कुछ काम हैँ ?? मिस्टर विमल -वो सुना हैँ तुम अपने पति से तलाक ले रही हो ! कोई परेशानी हैँ क्या ?? … Read more

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जीवन के यह आखिरी पल – उमा वर्मा

प्रभा जी  बिस्तर पर पड़ी हैं ।डाक्टर ने जवाब दे दिया है ।अस्पताल में भर्ती थी।अब घर आ गई है ।आज कुछ ज्यादा ही तबियत खराब लग रहा है ।सांस उखड़ने लगी है ।शरीर हल्का हो रहा है ।एक गहन अंधेरा छा रहा है ।स्मृति शेष है ।पुरानी बातें चलचित्र की तरह आखों के सामने … Read more

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क्या यही प्यार है ? भाग – 4 – संगीता अग्रवाल

आखिरकार एक समारोह मे केशव और मीनाक्षी की सगाई कर दी गई। और जल्द ही शादी भी हो गई।मीनाक्षी ने अपने स्वभाव से केशव के घर मे सभी का दिल जीत लिया । सरला जी बहू की तारीफ करती नही थकती थी । केशव की बहन काशवी को तो एक सहेली मिल गई थी। विवाह … Read more

 प्रेतात्मा का प्रतिशोध    ( भाग 1 ) – गणेश पुरोहित

रामप्रकाश की आंखों में आज नींद नहीं थी। रह रह कर उसके मन में जिंदगी को खत्म करने का ख्याल आ रहा था। पिता के बोल- ‘अब अपना बंदोबस्त कर भाई, हम तुम्हें बिठा कर खिला नहीं सकते,’ उसके जेहन में कांटों की तरह चुभ रहे थे। रामप्रकाश एक कारखाने में नौकरी करता था। कारखना … Read more

परिवार – के कामेश्वरी 

बात अस्सी के दशक की है । मेरे घर में मैं बड़ी बहू थी । मेरे तीन देवर थे । हमारी शादी के दो साल बाद दूसरे देवर की शादी हो गई थी । अब हम सब मिलकर तीसरे देवर की शादी कराना चाहते थे जो शिपयार्ड में नौकरी करते थे ।  उनके लिए बहुत … Read more

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“सुखी परिवार की कुंजी? – सरोज माहेश्वरी

 एक परिवार को आत्मीयता, पारिवारिक मूल्य,परम्पराएं एकता के सूत्र में बांधते हैं। एक साथ रहते हुए एकदूसरे के प्रति निःस्वार्थ प्रेम,विश्वास,समर्पण परिवार की बुनियाद को सुदृढ़ बनाते हैं,परन्तु अनुशासन, सहानुभूति, मर्यादा, अपनत्व के अभाव में संगठित परिवार की जड़ें कमजोर पड़ जाती हैं और फिर शुरू होती है विघटन की कहानी….                             रमाकांत जी सरकारी पद … Read more

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भूतों की दावत – अनुराधा श्रीवास्तव

 हमारे बीच ऐसा शायद ही कोई हो जिसके नाना नानी/दादा दादी ने उसे ऐसे किस्से ना सुनाये हों जिसमें उनका किसी भूत से सामना हुआ था। ऐसा ही एक किस्सा मुझे याद आता है जो मेरे नाना ने मुझे सुनाया था तो जैसा उन्होने सुनाया था वैसा ही आपके सामने रख रही हूँ । यहां … Read more

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एकता में है शक्ति –  संगीता त्रिपाठी

“तू इतना क्यों करती है, अपनी सास और ननद को भी काम पर लगाया कर, आखिर घर तो दामाद जी के पैसों से ही चलता है…”मालती जी बेटी नेहा को समझा रही थी..।    “बस करो माँ,.. अब ये मेरा परिवार है, इसकी जिम्मेदारी भी मेरी है, हर्ष के पैसों से ही घर नहीं चलता है, … Read more

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वसीयत –  शम्मी श्रीवास्तव

टेलीफोन की घंटी जैसेही बजी मैंने लगभग दौड़तेहुये रिसीवर उठाया – “हैळो! अरे कुसुम तुम! क्या हाल है? यहाँ सब ठीक है ना”| “हाँ, तुम बताओ तुम्हारा दिल्ली भ्रमण कैसा रहा ?” – कुसुम ने पूछा  “ हाँ ! सब ठीक रहा| सब की सहमति से घर का बटवारा हो गया| पापा की प्राँपर्टी में … Read more

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