क्या मर्द रो नहीं सकते – पार्ट -2 – मीनाक्षी सिंह

आपने अभी तक पढ़ा अभिषेक और चांदनी का एकलौता बेटा विभू पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाने वाला हैँ ! उसके ज़रूरत का सामान लेने तीनों लोग बाजार ज़ाते हैँ तभी रास्ते में किसी का एक्सीडेंट हुआ था ,उसे देखकर चांदनी गाड़ी रोकने को कहती हैँ ! अब आगे ….. अभिषेक -ओह चांदनी ,यहाँ तो एक्सीडेंट … Read more

रिक्त स्थान (भाग 1) – गरिमा जैन

अपनी गरीबी की रेखा को तोड़ने का रेखा के पास से एक स्वर्णिम अवसर था । आज दोपहर ही तो उसकी प्रिय सहेली रूपा उससे उसके लिए ब्यूटी पेजेंट बनने का फॉर्म लेकर आई थी। बहुत बड़ा आयोजन था और जीतने वाली लड़की को पांच लाख नकद साथ ही नामी-गिरामी कंपनी में ब्रांड एंबेसडर बनने … Read more

उदार –  कंचन श्रीवास्तव 

अखबार के पन्ने पलटते पलटते ,रेखा की निगाह, ‘सामने बैठे चाय बिस्कुट का रहे रवि पर गई’।तो ,देखती रह गई,ऐसा लगा मानों मुद्दतो बाद देख हो,नहीं नहीं देखती तो रोज़ ही है पर शायद आज करीब से या ये कह लो मन की आंखों से देख रही है। “चेहरे से बुढ़ापा झलकने लगा है।आंखें कुछ … Read more

मैं कितना गलत सोचती थी – किरन विश्वकर्मा

बात कई वर्ष पहले की है…..  मेरे घर के सामने कुछ दूरी पर एक परिवार रहने आया….पति- पत्नी दस वर्ष का बेटा और गोद में बेटी। चूकि हम लोगों के घर बहुत छोटे-छोटे थे और कॉलोनी में अभी बहुत कम ही लोग रहते थे तो शाम होते ही सभी लोग घर के बाहर कुर्सी डाल … Read more

अस्तित्व  – उमा वर्मा

दिन का उजाला धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा था, कब से खिड़की के पास खड़ी है गायत्री, समय का पता ही नहीं चला ।अंधेरे ने पंख पसारने शुरू किए तो उठकर खिड़की बंद कर दिया ।घर में अकेली है गायत्री ।बेटा अपनी ससुराल गया हुआ है प्रिया को लिवाने।हर साल गरमी की छुट्टियां होते ही … Read more

मन का संघर्ष – अनीता चेची

मानस ने जैसे ही किशोरावस्था में प्रवेश किया उसके मन के भीतर एक संघर्ष शुरू हो गया। उसका मन तरह-तरह की कल्पना करने लगा ।कक्षा की लड़कियां उसे अपनी और आकर्षित करती। पढ़ाई की तरफ ध्यान बिल्कुल भी ना लगता ।इस बदलाव को वह समझ ही नहीं पा रहा था। घर में मां की बीमारी … Read more

सौ रुपये का बोरा – सीमा पण्ड्या

बेटियाँ #पाँचवा जन्मोत्सव, कहानी क्रमांक १ लंबे इंतज़ार और अथक प्रयासों के बाद आख़िर मेरा स्थानांतरण गृह नगर हो ही गया। बहुत ख़ुश थे हम लोग कि अब सभी अपने मित्र, सहयोगियों और रिश्तेदारों के बीच में रहेंगे ।पत्नी भी ख़ुश थी क्योंकि उसका ससुराल के साथ-साथ मायका भी यहीं था। बच्चे भी अति प्रसन्न … Read more

वो खौफनाक दोपहर  – डॉ उर्मिला शर्मा

मंजुला हमेशा की तरह सुबह चाय के साथ समाचार पत्र पढ़ रही थी। सुबह में वो समाचारों के हेडलाइंस ही प्रायः देखती थी। विस्तृत जानकारी वाली खबरों को वह शाम को पढ़ती या किसी फुरसत के क्षणों में पढ़ती थी। सरसरी नजर अखबार पर डालते हुए उसकी नजर एक खबर पट आकर अटक गई- “अमुक … Read more

गलत आदमी-कह – देवेंद्र कुमार

मैं रिक्शा में बाजार जा रहा था। एकाएक आवाज आई, “सर, प्रणाम।” और एक स्कूटर रिक्शा के पास आकर रुक गया। मैंने रिक्शा वाले से रुकने को कहा। स्कूटर सवार ने मेरे पैर छू लिए। मैंने उसे पहचान लिया—वह मेरा पुराना छात्र यशपाल था। उसने कहा, “मैंने तो आपको दूर से पहचान लिया था,” फिर … Read more

क्या मर्द रो नहीं सकते (पार्ट -1) – मीनाक्षी सिंह

चांदनी – ये क्या यार ,विभू के जाने में बस 15 दिन बचे हैँ ! मेरा दिल बैठा जा रहा हैँ ! तुम हो कि अपनी ही धुन में मस्त ! कभी फ़ोन ,कभी टीवीं ,कभी सैर पर निकल जाते हो ! आखिर किस मिट्टी के बने हो तुम ! सुन रहे हो ना ,मैं … Read more

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