बे औलाद बेहतर है – के कामेश्वरी 

सुबह से कंचन और उसके बेटे शान के बीच कहा सुनी हो रही थी। शान अपनी जिद पर अड़ा हुआ था कि आप इस घर को मेरे नाम कर दीजिए बस यही एक रट लगाए बैठा था आगे कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं था । हम दोनों तब ही बात करेंगे कहकर पैर पटकते … Read more

औलाद से जरुरत से ज्यादा अपेक्षाएं क्यों?? – अमिता कुचया

रश्मि की आंख भर आई जब उसने देखा उसके पति सासुमां से बात कर रहे हैं।जब वह मुंबई आई तो उसके पति ने कहा था कि उसकी मम्मी ही ग़लत है।उस समय मृदुल ने साथ दिया। उनसे कहा कि हमें भी आप लोग से कोई मतलब नहीं है •••• फिर रश्मि ने मृदुल से पूछा … Read more

” भले घर की बहु ” – डॉ. सुनील शर्मा

जब कलम लेकर लिखने बैठता हूं तो अपने आस पास बिखरी सैंकडों कहानियां पाता हूं जिनके किरदार आगे आ आकर कहते हैं कि उन पर भी कुछ लिखूं. आज यादों में ऐसा ही एक किरदार उभर कर आया, हमारी गली के नुक्कड़ पर बैठा मोची…रामलाल जबसे होश संभाला, रामलाल को मैंने हर रोज़ बिना नागा … Read more

 शामली – लतिका श्रीवास्तव

…अब दूल्हे की भाभी दूल्हे को काजल लगाएगी दूल्हा नेग देगा…..भाभी को बुलाओ पंडित जी की आवाज सुनते ही शामली तुरंत काजल की डिब्बी लेकर आ गई …भाई जी की सारी अलाये बलाए दूर….बुरी नजर बुरी आफ़त से दूर हों… दुआएं देते हुए भाभी ने शुभ्र की आंखों में काला काजल लगाया तो शुभ्र की … Read more

एक थी नन्दा – डॉ उर्मिला शर्मा

नंदा इक्कीस वर्ष की होने को आई थी। पांच बरस से घरवाले उसके ब्याह के लिये लड़का देख रहे थे। पर जहां भी बात आगे बढ़ती और नंदा को देखने के बाद नापसन्द कर दी जाती थी। निहायत ही सीधे स्वभाव औऱ उसके छोटे कद और ऊंची दांत के कारण सभी उसे नकार देते थे। … Read more

औलाद – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

 माँ!  “पिताजी हरदम एक ही राग क्यों अलापते रहते हैं? “काम के ना काज के दुश्मन अनाज के!” मुझे उनके मुहावरे बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं  कह देना उनसे ।जब से रिटायर क्या हुए हैं जीना हराम कर दिया है उन्होंने। जब देखो नसीहतों का पिटारा लेकर बैठ जाते हैं। खाली दिमाग….!” माँ ने जोर … Read more

दृष्टिकोण – पुष्पा जोशी

  रजनी का सिर चकरा रहा था, उसनें सपने में भी कल्पना नहीं की थी ,कि उसकी अपनी बेटी शिल्पी, उसे,इस तरह जवाब देगी |उसके कानों में शिल्पी के कहे शब्द गूंज रहे थे | ‘ यह क्या माँ ! हर समय साये की तरह,मंडराती रहती हो |खुल कर साँस भी नहीं लेने देती, घुटन होती … Read more

खडूस चौधरी – आरती झा आद्या

बाबू जी हम शहर जाना चाहते हैं…अभय ने डरते हुए अपने पिता रामरतन चौधरी से कहा। काहे काहे जाना चाहते हो शहर…अभय की बात सुनते ही रामरतन चौधरी हाथ का निवाला मुंह तक जाने से रोक अभय के जवाब की प्रतीक्षा में अपलक उसे देखने लगते हैं। बाबू जी वो हम नौकरी करना चाहते हैं…इसीलिए … Read more

उसका निर्णय – स्मिता टोके “पारिजात”

“दी ,,,,आप अपनेआप को बहुत स्मार्ट समझने लगी हैं ,,,,,,,,,,, ।” आरोही का मैसेज पढ़कर अपमान की पीड़ा से नंदा की आँखें छलछला उठीं । “आपको रिस्पेक्ट करती हूँ इसका मतलब ये नहीं कि आप मेरी लाइफ में ही ताकाझांकी करने लगे । बहुत बर्दाश्त किया आपको,,,,,,,, अब और नहीं ,,,,,,,,,,” आरोही के शब्द पिघले … Read more

error: Content is protected !!