बे-औलाद – माता प्रसाद दुबे

पापा! क्या मम्मी अब नहीं आएगी?”सात साल की बच्ची रिया अपने पापा रजनीश से सवाल करते हुए बोली।”हा बेटी!अब तुम्हारी मम्मी यहां नही आएगी?”रजनीश अपनी बेटी रिया को दुलारते हुए बोला।”ठीक है..पापा!वह न ही आए तो अच्छा है..हमेशा दादी और आपसे लड़ाई करती है..मुझे भी डांटती रहती है..जरा भी प्यार नहीं करती मुझसे वह बहुत … Read more

बे औलाद ही सही – के कामेश्वरी

सुबह से कंचन और उसके बेटे शान के बीच कहा सुनी हो रही थी। शान अपनी जिद पर अड़ा हुआ था कि आप इस घर को मेरे नाम कर दीजिए बस यही एक रट लगाए बैठा था आगे कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं था । हम दोनों तब ही बात करेंगे कहकर पैर पटकते … Read more

संस्कारी बेटा – मीनाक्षी सिंह 

शर्मा जी ,आपके बेटे ने पिछली साल भी तो एसएससी का पेपर दिया था ,इस साल भी दे रहा हैँ ! पास नहीं हुआ था क्या ?? पड़ोसी पांडेय जी चुटकी लेते हुए शर्मा जी से बोले ! हाँ जी ,फिर से दे रहा हैँ ,दो नंबर से रह गया था ! शायद उतनी मेहनत … Read more

“गिरगिट” (बदलते चेहरे) – कविता भड़ाना

“बहादुर जरा बाहर बस के ड्राइवर और कंडक्टर भैया को चाय पिला दो” बेटी का 12वा जन्मदिन मनाकर लौटी रीमा ने अपने घर के बावर्ची को आवाज देकर कहा और बस में साथ गए बच्चो को उनके रिटर्न गिफ्ट देकर विदा करने लगी….दो बच्चो को उनके मम्मी पापा अभी लेने नहीं आए तो उन्हें फोन … Read more

मिलन  – पुष्पा जोशी

‘क्या बात है सरिता? पूरे तीन दिन हो गए हमारे विवाह को,मगर तुम पता नहीं,कहाँ खोई हो,तुम्हारा उदास चेहरा अच्छा नहीं लगता,यहाँ अगर किसी बात से तुम्हें परेशानी है,तो मुझे बताओ,जब तक नहीं बताओगी मुझे पता कैसे चलेगा ।भ‌ई मैं सागर हूँ, कोई भगवान तो नहीं जो घट-घट की जानते हैं।’ सागर ने अपनी गहरी … Read more

औलाद का सुख – पुष्पा जोशी

औलाद का सुख क्या होता है? ये गिरिराज बाबू से बेहतर और कौन जान सकता है. १०१ वर्ष की आयु पूरी कर वे अनन्त में विलीन हो गए. जाते समय उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं  थी, एक शांति का भाव था. होटो पर मुस्कान और ऑंखों में चमक लिए वे इस दुनियाँ से चले … Read more

अंश – मंजू तिवारी

 मैं अपने बच्चों को रोज स्कूल छोड़ने लेने खुद जाती हूं।  कभी-कभी मेरे पति भी बच्चों को छोड़ने जाते हैं। यह मेरा रोज का काम होता है कभी समय से पहले बच्चों को लेने पहुंच जाते हैं।  रोज मिलते-जुलते रहने की वजह से हम अभिभावकों की एक दूसरे से अच्छी पहचान हो जाती है। ऐसे … Read more

औलाद – पुष्पा पाण्डेय

काशीनाथ जी के दिन का अधिकतम समय बरामदे के सामने लगे आम्र-वृक्ष के नीचे ही एक लकड़ी की चौकी पर बीतता था। जाड़े के दिन में तो  सूर्योदय के साथ ही चले आते थे और लगभग सारा दिन वहीं निकल जाता था। बीच-बीच में वृक्ष से छाया भी उपलब्ध हो जाती थी। नौकरी के शुरुआती … Read more

अंगूठी   –  गीता वाधवानी

एक दिन सुबह सुबह अचानक मन हुआ कि चलो आज बाग में सैर कर ली जाए और मैं सुबह 6:00 बजे पहुंच गई बाग में। आधे घंटे की सैर करने के बाद मैं थककर एक बैंच पर बैठ गई। तभी अचानक मैंने देखा की बगिया की हरी हरी घास में कुछ चमक रहा है। पहले … Read more

एहसास – डा. नरेंद्र शुक्ल

‘बहू तुझसे नीरज ने कुछ कहा ? रमा के कमरे में दाखिल होते हुये सास ने कहा ।‘ ‘ऩ.. . नहीं तो मां । सपनों की दुनिया में खोई रमा , पंलग से उतरकर, सिर पर चुन्नी लेते हुये बोली । ‘ ‘आइये , बैठिये न मम्मी । रमा ने पंलग पर बिछी चादर को … Read more

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