ज़िंदगी “कलंक” नहीं कस्तूरी है – शुभ्रा बैनर्जी
सुगंधा ने ट्रेन छूटते ही बच्चों को फोन पर जानकारी दे दी।आज कॉलोनी की हम उम्र महिलाओं के साथ बनारस जा रही थी,घूमने। बनारस का नाम सुनते ही, जाने क्यों मन बांवरा सा हो जाता था उसका।वैसे बनारस से इश्क़ करने वाली वह पहली और अकेली नहीं थी।बनारस के रस ने ना जाने कितनी जिंदगियों … Read more