स्वाभिमान – के कामेश्वरी

पल्लवी अपने कमरे में कल की एम सेट की परीक्षा की तैयारी में लगी हुई थी । वह अपने माता-पिता की बहुत ही होनहार बेटी थी । दसवीं कक्षा में टॉपर रही थी । उसे किसी भी हालत में इंजीनियरिंग कॉलेज में दाख़िला लेना था इसलिए वह रात को भी जगकर जी जान से पढ़ाई … Read more

पुनरावृत्ति  – डा उर्मिला सिन्हा

 घनी झाड़ियों ,ऊंचे पेड़ों से आच्छादित , शहर के कोलाहल से दूर निर्जर वन प्रांतर में बसा हुआ यह महिला महाविद्यालय मुझे अपने एकाकी जीवन जो कभी अभिशाप लगता था ; वरदान साबित हुई। यहां प्रकृति से सीधा साक्षात्कार मेरे रोम रोम में न‌ई स्फूर्ति भर देती है।     चपरासी ने एक पूर्जा आगे बढ़ाया। मैं … Read more

सात फेरों के सातों वचन – कमलेश राणा

आज सुबह से ही बारिश हो रही थी थोड़े ओले भी पड़ गये थे फलस्वरूप सर्दी में और भी इजाफा हो गया। अनुभा ने अपनी मेड के लिए गर्म पानी लगा दिया ताकि वह आराम से काम कर सके। दरअसल अब वह मेड कम संगिनी ज्यादा हो गई थी उसके लिए क्योंकि वह 22 साल … Read more

एक पिता का स्वाभिमान – पूजा मनोज अग्रवाल

राम किशन जी बरेली के एक गांव में अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहते थे । गांव में उनका धूप अगरबत्ती बनाने का छोटा सा व्यवसाय था । परिवार इतना नेकदिल था कि चर्चा पूरे आस पास के गांवों में थी । रामकिशन जी और उनकी पत्नी सावित्री जी दोनो ही धार्मिक स्वभाव के … Read more

सपनें खुली आँखों के – डॉ. पारुल अग्रवाल

आदित्य आज बहुत खुश था,आज उसे अपनी वर्षों की कठिन मेहनत और तपस्या का फल मिलने वाला था। इसी दिन की खातिर वो अपने परिवार से इतनी दूर अकेले रह रहा था। आज उसके खुली आंखों से देखे सपने पूरे होने वाले थे। उसने खुशी-खुशी ऑटो लिया और पहुंच गया फिल्म स्टूडियो में जहां प्रसिद्ध … Read more

 ‘ स्वाभिमान है, अभिमान नहीं ‘ – विभा गुप्ता

” विपिन, एक जगह बैठ नहीं सकते,तो चले जाओ यहाँ से।तूने तो मेरे नये कुरते का सत्यानाश कर डाला।” नितिन बाबू अपने छोटे भाई पर चिल्लाये जो अपनी बैसाखी के सहारे चलकर पानी पीने आया था,हाथ से गिलास छूट गया और पानी के कुछ छींटें उनके नये कुरते पर पड़ गये।फिर उन्होंने विपिन की पत्नी … Read more

आत्मसम्मान के साथ समझौता – कमलेश राणा

यश को जब मैंने पहली बार देखा था तब वो गोरा चिट्टा प्यारा सा शर्मीला सा 10-12 साल का बच्चा था,, जो मेरे सामने आने में भी शरमा रहा था और अपनी माँ के पीछे दुबका ही जा रहा था,, उसकी वो भाव भंगिमा आज भी मुझे वैसी ही याद है जैसे कल की ही … Read more

“पत्नी के स्वाभिमान से समझौता?कभी नहीं!” – कुमुद मोहन 

पापा! चुप रहिये! जब देखो आप रीमा को किसी ना किसी बात पर टोकते रहते हैं, वह बेचारी आगे से आगे दिन भर आप लोगों की खिदमत में लगी रहती है फिर भी आप लोगों को उसे सुनाऐ बिना चैन ही नहीं आता! विनय सुबह सुबह गुस्से से अपने पचहत्तर साल के पिता रमेश जी … Read more

अतीत – डा.मधु आंधीवाल 

सांची आज बहुत उदास थी । बीती बातें बीती यादें कभी कभी उसके मन को व्यथित करती थी । उसका बचपन कितने अभाव और कष्टों में गुजरा था । घर में बीमार मां और दो छोटे भाई बहन । बापू की बहुत छोटी सी पान की दुकान वह भी एक छोटे से गाँव में । … Read more

रघु की पीड़ा –     बालेश्वर गुप्ता

आज भी हमारे नगर में डॉ रघु को याद किया जाता है।हमारे पिता बताया करते कि डॉ रघु के हाथों में जादू था।नब्ज पकड़ कर रोग पहचान लेते और ऎसी दवाइयां देते कि मर्ज जड़ से ही खत्म हो जाता।नाम मात्र की राशि मे ही अपनी फीस के साथ दवाइयां भी दे देते थे।मजे की … Read more

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