विश्वास नही होता पर सच है – पूजा मनोज अग्रवाल

बात आज से करीब दस ग्यारह वर्ष पुरानी है,, मेरी एक बचपन की सहेली थी मनीषा ,,, हम दोनों सहेलियों को बचपन से ही एक साथ घूमना – फिरना ,मौज – मस्ती करना बहुत अच्छा लगता था  और सोने पर सुहागा कि दोनों सहीलियो का विवाह भी एक ही शहर में हो गया । विवाह … Read more

अतीत, वर्तमान और भविष्य की जुगलबंदी – भाविनी केतन उपाध्याय 

” शैली बहू, ये मैं क्या सुन रही हूॅं, तुम ने मुझे बिजनेस में मदद करने की बजाय दूसरी जगह नौकरी ढूंढ ली है ? मैं तो सोच रही थी कि तुम्हारी MBA की पढ़ाई पूरी होते ही तुम मेरे साथ मेरा बिजनेस जोइन करोगी पर तुम ने तो मुझे कुछ बताना जरूरी नहीं समझा….” … Read more

तुम्हारी ये आदत मुझसे मेरा स्वाभिमान छुड़वाकर रहेगी…. – भाविनी केतन उपाध्याय 

” यूं बिना किसी की इजाजत लिए किसी ओर के कमरे में तांका झांकी करना अच्छी बात नहीं है…. और ये तो बहू का कमरा है…. उसमें तुम क्या कर रही है ? बहू देखेगी तो क्या सोचेगी तुम्हारे बारे में ?” रमाकांत जी ने अपनी पत्नी सुनंदा जी को समझाते हुए कहा। ” बहू … Read more

 “दादी माँ” –  मधु शुक्ला

“आज बथुआ का रायता और पुलाव बना देना खाने में” रवि ने मम्मी से कहा तो बच्चे चहकने लगे ” वाहहहह फिर तो मिक्स आटे के पराठे और शकरकंद का हलुआ भी बनेगा।” जब कभी बथुआ का रायता बनता था। तो यही सामग्री परोसी जाती थी। सभी बच्चे जानते थे। ये मीनू दादी माँ ने … Read more

आकलन – अनुपमा अग्रवाल 

( यह मेरे व्यक्तिगत विचार है , जरूरी नहीं की आप इनसे सहमत ही हो ) जब मैंने खबर सुनी की आफताब ने श्रद्धा के 35 टुकड़े कर दिए , तो मन मैं एक जो बनी बनाई धारणा थी उसी हिसाब से अपने आसपास के लोगो की प्रतिक्रियाएं मुझे सुनने मिली और मेरे दिमाग ने … Read more

असली कमाई – अनुज सारस्वत

“मि. अभिमन्यु आपको कल हमारे जर्मनी से बहुत ही महत्वपूर्ण मित्र आर रहे हैं ,मैं तुम्हें एजेंडा बता रहा हूँ उनकी खातिरदारी में कोई कमी नही रहनी चाहिए, उनकी यह पहली भारत यात्रा है “ फोन पर कंपनी के एमडी ने अभिमन्यु से कहा उनको ओके बोलने के बाद उसके मन तरह तरह के विचार … Read more

खुद्दारी – कल्पना मिश्रा

पार्वती अपनी ही धुन में चली जा रही थी। अचानक पीछे से कड़कड़,कड़कड़ बजने की आवाज़ सुनकर वह चिंहुक पड़ी “अहा!!! नयी टेक्नोलॉजी के युग में उसके बचपन वाला ये खिलौना?”  उसने पलटकर देखा तो एक वृद्ध पंखे की तरह खिलौने को घुमा रहा था और उससे कड़कड़ की ध्वनि निकल रही थी। उसके हावभाव … Read more

स्वाभिमान से बढ़कर कुछ नहीं – सरोज प्रजापति

“भाभी आप खाना तैयार रखो, हम अभी बड़े भैया के घर से होकर आते हैं।” “दीदी खाना तैयार है। खा कर आराम से चले जाना। मैं जब तक सारा काम निपटा लूंगी।” “क्या भाभी, आपको तो बस अपने काम की पड़ी रहती है। अरे दो-चार दिन देर से काम कर लोगी और नहीं सोओगी तो … Read more

स्वाभिमान – रश्मि सिंह

प्रतियोगिता एवं समूह हेतु। प्रीति शर्मा, मेरठ ज़िले में रहने वाली एक सीधी साधी लड़की। किसी से ऊँची आवाज़ में बात करना तो दूर उसे कभी किसी छोटों को भी डाँटते नहीं देखा। अपनी मम्मी की लाडो रानी। वैसे तो प्रीति ज़्यादा बक बक नहीं करती पर अपनी माँ के सामने हर तरह की बात। … Read more

अम्मा का स्वाभिमान – उमा वर्मा

अम्मा आखिर चली गई ।घर में आज उनकी अंतिम श्राद्ध की दौड़ धूप मची हुई है ।पंडित जी जीम कर उठने वाले ही हैं ।नाते रिश्ते दारो को अब भूख सताने लगी है ।सबकुछ, खाने से लेकर दान दक्षिणा की तैयारी भी तो करनी पड़ी बेटे बहुओं को ।आज भर का झमेला है, कल से … Read more

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