समधन जी, आपको मेरा दर्द तब महसूस हुआ; जब आपने खुद वही दर्द सहा!- चेतना अग्रवाल

“हेमा बेटा, अपनी सास से होशियार रहना… बहुत सीधी बनती है। अपना ये सीधापन दिखा कर तुम दोनों को अपने जाल में फँसा लेगी। तुम इसकी सेवा ही करते रह जाओगे सारी जिंदगी। किसी तरह दामाद जी से कहकर अपनी रसोई अलग कर ले।” सुलोचना जी फोन पर अपनी बेटी को समझा रही थी। “हाँ … Read more

“बाबुल की दुआऐं लेता जा – कुमुद मोहन 

“सुनो सुनो राधा कहां हो भाई! कहते हुए महेश जी घर में घुसे” “क्यों चिल्ला रहे हो” पीछे से घर में घुसते हुए ताला खोलती राधा ने कहा! “कहां निकल गई थी?तुम्हें पता है ना कि मैं घर आऊं तो तुम मुझे घर में मिलनी चाहिए ,मुझे ये घर में ताला नहीं तुम चाहिए “!बताओ … Read more

 “बेटी खोने का दर्द‌‌‌ सह न सकी”-अमिता गुप्ता “नव्या”

आभा…बेटा आभा आंखें खोलो! देख बेटा तेरी मां बुला रही है।मेरी बात नहीं मानेगी, आंखें खोलो नहीं तो मैं नाराज हो जाऊंगी। आभा के गाल पर हाथ सहलाते हुए लक्ष्मी बोली। परंतु यह क्या?? आज सुबह के नौ बज रहे थे और आभा नींद से जागने का नाम ही नही ले रही थी। अचानक लक्ष्मी … Read more

 बेटियों से मायके में काम कौन करवाता है??-  कनार शर्मा

भाभी!! मैं ये क्या नाटक देख रही हूं?? आपने तो मेरी मां के बनाए नियमों को पूरी तरह तोड़ दिया है…मायके में बेटियों के ठाठ होते हैं वो यहां आकर कपड़े, बर्तनों से हाथ नहीं लगाती, रसोई तो बहुत दूर की बात है और यहां तो मैं उल्टी गंगा बहती हुई देख रही हूं। भाभी … Read more

गहने भी भला कभी उतरन होते हैं क्या?? – सविता गोयल

” क्या दे दिया तेरी मां ने आज तुझे ??”  पलक के हाथों में थैला देखकर  सुधा जी ने चश्में के नीचे से झांकते हुए पूछ लिया। हिचकते हुए पलक ने थैले में से निकालकर एक साड़ी अपनी सास सुधा जी के सामने रख दी।  साड़ी को उलट पुलट कर देखते ही सुधा जी की … Read more

“बुढ़ापे और बेबसी से बड़ा कोई दर्द नहीं होता!!!” – अमिता कुचया

आज मंजरी को घर से न चाहते हुए भी जाना पड़ा।घर परिवार में नाती पोते किसे प्यारे नहीं होते ,जब टिया और टिली दादी से बात करते तो बहू बेटे को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। वो किसी न  किसी बहाने से दूर करते, उन्हें डर था कि मां जो कि कैंसर से पीड़ित हो … Read more

दिन बीत गए पर दर्द रह गए – रत्ना साहू 

मॉर्निंग वॉक से राधिका जी घर लौटी तो देखा बेटा आरव रसोई में कुछ बना रहा है। “तू यहां क्या कर रहा है बेटा? चल तू जा यहां से, मैं कर लेती हूं।” “कुछ नहीं मां! ब्रेकफास्ट बना रहा हूं।” “पर तुम क्यों बना रहे हो? मैं बना लेती हूं ना!” “आप जाओ मम्मा अपना … Read more

 मनहूस वो नहीं हम है…. – भाविनी केतन उपाध्याय 

मेहंदी की रस्म शुरू होने वाली है और शर्वरी की नजर अपनी एकलौती भाभी को ढूंढ रही है। उसने अपनी दोस्त को मां को बुलाने भेजा अहिल्या जी ने आते ही पूछा “तुमने अभी तक मेहंदी लगवानी शुरू नहीं की?” “नहीं मां, मैं भाभी की राह देख रही थी वो आते ही हम दोनों के … Read more

जड़ें – सारिका चौरसिया

सौंदर्य की प्रतिमूर्ति स्वंय को सर्वगुण सम्पन्न समझने वाली लेखा जी का मानना था कि दुनिया की किसी भी उपलब्धि और सफलता पर सिर्फ उनका ही अधिकार हो सकता है। इस बदगुमानी में की घर -बाहर आस-पड़ोस की सभी औरतें उनकी सुंदरता और गुणों से चिढ़ती हैं लेकिन पहनावे ओढावे में सभी उनकी ही नकल … Read more

होवे वही जो प्रभु रची राखा – संगीता अग्रवाल

” देखिये सुशीला जी आपकी बहु के गर्भ मे पल रहे बच्चे का लिंग मालूम नही हो पा रहा है !” डॉक्टर सुशीला जी जो की अपनी बहु के गर्भ मे पल रहे बच्चे का लिंग जानने आई थी से बोली। ” ऐसे कैसे डॉक्टर पहले भी तो एक बार तुमने लिंग पता लगाया है … Read more

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