दर्द की अधिकता ही दवा बन जाती है – लतिका श्रीवास्तव 

…..सारे समाचार पत्रों की सुर्खियों में थी वो आज…..मीडिया ने चटखारे लेते हुए उसके ऊपर लगे आरोपों को छापा  था….अचानक सबकी नजरों में वो निहायत घटिया भ्रष्ट कामचोर और फर्जी साबित हो गई थी…..उसके खासमखास भी उसके बारे में मनगढ़ंत फर्जी कहानियां यत्र यत्र सुना रहे थे मजे ले रहे थे ..! शमिता के लिए … Read more

“मनहूसियत” (भाग दो) – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 

माँ,तुमने तो मेरे मूंह की बात कह डाली। मैं तो सोच रहा था पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कहने की। आखिर किस तरह और कैसे कहता…समझ नहीं आ रहा था। चलो अच्छा हुआ तुमने मेरे मन की बात खुद ही कह दिया। छोटी को देख रिया भी खुश हो जायेगी।  मैं तीन टिकट … Read more

मानिनी  –   डॉ. सुनील शर्मा

” मानिनी और वह चली गई! हमारे यहां काम-काज करने वाले गणेशी की नवविवाहिता कुछ ही दिन विवाहोपरांत साथ रहने के बाद एक दिन चली गई मायके. लाख समझाने बुझाने तथा गणेशी के गिड़गिड़ाने का भी कुछ प्रभाव नहीं पड़ा उस मानिनी पर… पीछे मुड़कर देखती हूं तो यादों के पन्ने फड़फड़ाने लगे हैं. साफ … Read more

क्या आपके घर मे बाप भाई नही –  संगीता अग्ग्र्वाल

” जल्दी चल यार पिक्चर मिस हो गई ना तो तुझे छोडूंगी नही , हर बार इतना समय लगा देती है तैयार होने मे !” बस मे चढ़ती कृतिका अपनी दोस्त शानवी से बोली। ” अरे यार नही निकलेगी क्यो टेंशन ले रही है !” शानवी बोली और दोनो दोस्त बस मे चढ़ गई अपना … Read more

लड़कियां भी मना कर सकती है – गीता वाधवानी

आज अंजू जब कॉलेज से आई, तब उसने देखा कि उसकी दादी जी की सहेली रमा जी और उनकी बेटी राजू दीदी बैठी हुई है। वैसे तो राजू दीदी का नाम राजकुमारी था और सब उन्हें राजू ही कहते थे। उन्होंने बताया कि कल, बहुत वर्षों बाद राजू दीदी की बुआ जी अपनी पोती मीना … Read more

उपहार  –   संजय मृदुल

सुनो जी! इस दीवाली पर दूज के दिन भैया का जन्मदिन भी है कुछ अच्छा लेना है उनके लिए। अनु ने विनय से कहा। क्यों? पीछे से निलय की आवाज आई। क्यों गिफ्ट लेना है उनके लिए। साल में तीन बार तो ऐसे भी देते ही हो गिफ्ट। बदले में वो क्या देते हैं हम … Read more

सासू मां मेरी थाली पर ही नजर क्यों  – किरन विश्वकर्मा

रीतिका सारा काम करने के बाद खाने के लिए बैठी तो जैसे ही रोटी के टुकड़े में सब्जी लगाकर खाया तो उसे सब्जी अच्छी नही लगी वैसे भी परवल की सब्जी उसे पसंद नही थी मायके में होती तो किसी और चीज से रोटी खा लेती पर यह तो ससुराल था जहाँ पर अचार, देशी … Read more

बहू नाक कटवा दी खानदान की – कनार शर्मा 

वंदना हड़बड़ती हुए घर में प्रवेश करती है इसी जिसे देखकर लीला जी पूछ लगी “ये कौन सा वक्त है बहू बाजार से घर आने का”????? भले घर की बहुएं सूरज ढले घर में घुसते अच्छी लगती है क्या???? और तुम क्या लेने गई थी तुम्हारे हाथों में तो कोई झोला दिखाई नहीं देता… हम्मम … Read more

पत्थर हूं शीशा नहीं।  –  सुषमा यादव

राजेश एक उच्च पदाधिकारी थे।अपना काम बड़ी लगन, मेहनत और ईमानदारी से करते थे। अपने काम को बोझ नहीं बल्कि एक कर्तव्य समझ कर करते,, अपने मातहत कर्मचारियों के साथ वो भी अपने कार्यक्षेत्र में हमेशा जाते,,हर छोटे बड़े कर्मचारियों के साथ उनका बड़ा प्रेम पूर्वक व्यवहार रहता था,सब उनसे बहुत खुश रहते,, मंत्री, और … Read more

समझौता या फर्ज – संगीता अग्रवाल

” बेटा क्या सोचा है तूने अब क्या करेगी ?” दर्शना जी ने अपनी बेटी निशा से पूछा। ” सोचना क्या है मम्मी इस वक़्त जो मेरा फर्ज है वही पूरा करूंगी मैं !” निशा ने शांति से उत्तर दिया। ” लेकिन बेटा ये नौकरी …तुझे तो पता ही है नौकरी इतनी आसानी से नही … Read more

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