वक्त का पलटवार –   सुषमा यादव

हम वक्त के साथ वफादारी नहीं करेंगे,, वक्त की कीमत नहीं समझेंगे तो वक्त हमें पलटवार करके सब सिखा देगा,, वक्त किसी का सगा नहीं होता है,, बड़े से बड़े लोग वक्त की मार से नहीं बच पाए हैं, वक्त ने पलक झपकते ही अहंकारी व्यक्ति को धाराशाई कर दिया है,इसी विषय पर आधारित मेरी … Read more

 तो वक्त निकालो  ना –   मीनू झा

इस लड़की को तो सजने धजने से फुर्सत ही नहीं है,जब देखो संवरने बैठ जाती है,अभी स्कूल का टाइम हो रहा है अभी भी वहीं हाल…इत्ती सी तो है रे तू फिर कहां से सीखा मेकअप लगाना हेयर स्टाइल बनाना??बता? मम्मा..इत्ती सी नहीं हूं मैं..पंद्रह साल की हूं! हां.. बहुत बड़ी हो गई है..अरे हमें … Read more

 वक्त  – प्रियंका सक्सेना

“मां, आज खाने में शाही पनीर‌ बनाना, प्लीज़।” सोहम ने लाड़ से कहा तो सुधा ने बोला ,” ठीक है बेटा। तुम जब तक अपना सारा होमवर्क और टेस्ट की तैयारी कर लो मैं शाही पनीर और मटर-पुलाव बना देती हूं। ” “मेरी प्यारी मां॑!” “बस-बस! मक्खनबाजी नहीं, पढ़ाई ‌करो।” धीरे से प्यार से गाल‌ … Read more

वक्त” –  भावना ठाकर ‘भावु’ 

अनुराग और आरती का सुंदर मध्यमवर्गीय परिवार था, पति-पत्नी और दो बच्चों के साथ अनुराग टु बीएचके फ़्लेट में आराम से ज़िंदगी जी रहा था। आरती सुंदर, संस्कारी और आदर्श पत्नी है, पति की आय में सलीके से घर का निर्वाह कर लेती है। हंसी-खुशी जीवन बित रहा था। अनुराग सुबह दस बजे ऑफिस के … Read more

वक्त – संजु झा

वक्त की वक्र और कुटिल चाल को आजतक कोई नहीं समझ सका है।यही वक्त जब उसपर मेहरबान होता है तो अनगिनत खुशियाँउसकी झोलियों में उड़ेल देता है और नाराज होने पर उन खुशियों को सूद समेत वसूल भी लेता है।यही हाल मोनिका के साथ भी घटित हुआ है।वक्त की मार से उसके सारे सपने रेत … Read more

कुछ घाव वक्त भी नही भरता – संगीता अग्रवाल 

“स्नेहा कहां हो तुम …स्नेहा …!” निकुंज अपनी पत्नी को आवाज लगाता हुआ घर में दाखिल हुआ। ” लो तुम यहां बैठी जाने कहां गुम हो और मैं तुम्हे घर भर में ढूंढ रहा हूं !” निकुंज पत्नी को बालकनी में गुमसुम बैठे देख बोला। ” आ गए आप … मैं चाय लाती हूं !” … Read more

अपना वक्त हम कैसे भूल जाते हैं.. – रश्मि प्रकाश 

“ राशि कल सुबह जल्दी उठ जाना …सुबह के पाँच बजे पूजा तुम्हें ही करनी है…इस घर का यही नियम है …याद रहे नहा कर तैयार  हो जाना ….पहली पूजा तुम्हें ही करनी है ।” जेठानी की बात याद करते हुए राशि चार बजे का अलार्म लगा सो गयी  सुबह जब अलार्म बजा …. नींद … Read more

मुक्ति और मोक्ष  – कमलेश राणा

अरे यह क्या… मैं तो यहीं हूँ फिर ये सारे प्रियजन इस तरह से मेरा नाम लेकर विलाप क्यों कर रहे हैं। ओह!! मैं तो जाग रहा हूँ फिर आँखें क्यों बंद हैं मेरी और कोई हरकत क्यों नहीं हो रही मेरे शरीर में… आभा यह सुहाग चिन्ह क्यों हटा रही हो तुम.. नहीं.. नहीं.. … Read more

 वक्त कहाँ ठहरता है – गोमती सिंह 

 —–सुमन का विवाह हुए अब 30 वर्ष हो गए थे उसके दादा-दादी का उसके विवाह के पहले स्वर्गवास हो गया था।  उसकी एक  बहुत ही स्नेहमयी चचेरी दादी, गिरजा दादी थी जो उसकी माँ तथा सभी भाई बहनों का बहुत दुलार करती थी । सुमन के पापा भी अपनें बच्चों पर जान लुटाते थे ।दादा … Read more

वक्त की लकीरें – भगवती सक्सेना

रिटायर्ड अफ़सर वर्माजी बहत्तर वर्ष की अवस्था मे बिस्तर पकड़ चुके थे, घुटने के कारण चलने से असमर्थ थे, फिर भी एक छड़ी के सहारे अपने सब काम कर लेते थे। आज बहू कामायनी सुबह से व्यस्त दिख रही थी, होटल मैनेजर घर आकर क्रिसमस पार्टी की डिनर की लिस्ट नोट कर के ले गए … Read more

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