जय माता रानी की – सीमा वर्मा

   ‘ लंगड़ी , हाँ यही उसका नाम है ‘ मुहल्ले के लोग उसे इसी नाम से पुकारते हैं। ‘ जब भी मेरी यह भक्त कन्या अपने एक छोटे पाँव पर हिलक-हिलक कर अकेली ही आती है। मेरा ध्यान अपने समस्त भक्तों से हट कर उस पर ही केंद्रित हो जाता है, ‘ अपनी हँसी उड़ाए … Read more

बहू सपनों से समझौता नहीं करेगी – कनार शर्मा

मानसी बहू जरा बाहर आना देखो तो तुमसे मिलने दुर्गा नगर वाली लक्ष्मी बुआ जी आई हैं…!! सास अनिता जी की आवाज़ सुन मानसी रसोई से बाहर आई और उनके पैर छूने झुकी ही थी कि वे बोली “दूधो नहाओ पूतो फलो” शादी को 2 महीने हो गए हैं अब तो घूमना फिरना भी हो … Read more

जब बहु…. बेटी बन जाती है – अनु अग्रवाल

  “सुनो जी….. बाबूजी अक्सर माँजी के साथ शाम को सैर करने जाया करते थे…..माँ जी के जाने के बाद बाबूजी का उदास चेहरा मुझसे देखा नहीं जाता……आप दुकान से जल्दी आ जाते हो तो  बाबूजी को सैर पर ले जाया करो…. हो सकता है उन्हें अच्छा लगे…….निहारिका अक्सर अपने पति अर्पण से कहती। तुम … Read more

विरोध – शकुंतला “अग्रवाल शकुन”

चाँद आज यौवन के घोड़े पर सवार हो,चाँदनी बिखेर रहा है। चकोर भी भाव विभोर हो तृप्त हो रहा है। पर इस सम्मोहक-वातावरण में भी वातायन से झाँकते वेदैही के झील से दो नयनों में अश्रु-कण झिलमिला रहे हैं । सौम्य-शीतल चाँदनी में भी उसके भीतर ज्वालामुखी फूट रहा है , जिसका लावा उसके तन-मन … Read more

विरोध बना पुष्पहार – लतिका श्रीवास्तव

….मीटिंग बहुत लंबी और उबाऊ होती जा रही थी…इतने शानदार होटल में सारी व्यवस्था की गई है ….अधिकांश तो पल पल में परोसे जा रहे शीतल और गरम पेय पदार्थों का आनंद उठाने में तल्लीन थे ….सुस्वादु भोजन का काल्पनिक स्वाद रह रह कर सभी को मीटिंग के शीघ्र खत्म होने का शिद्दत से एहसास … Read more

हमारी “बेटियां” क्या “बेटों” से कम होती हैं..?” –  पूनम गुप्ता

सविता जी बेटा पाने की चाह में पांच बेटियों की मां बन जाती हैं..फिर भी बेटा एक भी नहीं होता” इस बात से हमेशा उदास और परेशान सी रहने लगती! यहां तक की उनके आस -पड़ोस के लोग उनके परिवार वाले भी उन्हें ताना देने शुरू कर देते हैं !! बेचारी सविता और उसके पति … Read more

विरोध से उन्मुक्त तक – अभिलाषा कक्कड़

विरोध और समर्थन के बीच जब द्वन्द्व होता है ,तो अक्सर विषय प्रश्नों के घेरे में आ जाता है । जो परिणाम निकल कर आते हैं वो सदा याद रहते हैं क्योंकि अथक प्रयासों से निकल कर आते हैं । जीवन में ऐसे अनुभव आने वाले समय में कुछ मन की उलझनों को सुलझाने में … Read more

आलू टमाटर की सब्ज़ी – कल्पना मिश्रा

आज बाबूजी की तेरहवीं है। नाते-रिश्तेदार इकट्ठे हो रहे हैं पर उनकी बातचीत, हँसी मज़ाक देख-सुनकर उसका मन उद्दिग्न हो रहा है..”कोई किसी के दुख में भी कैसे हँसी मज़ाक कर सकता है? पर किससे कहे,किसे मना करे” इसीलिये वह बाबूजी की तस्वीर के सामने जाकर आँख बंद करके चुपचाप बैठ गई। अभी बीस दिन … Read more

जब विरोध करना सिखाया ही नहीं गया तो विरोध कैसे करूं,,,,, बेटी  – मंजू तिवारी

मैं आप के गर्भ में आई  आपको पुत्र मोह था आपने मुझे मरवा दिया तब तो मैं विरोध कर भी नहीं सकती थी मैं एक बेटी हूं बचपन से ही मुझे  पालने के लिए सदैव समाज के परिवार के दोहरे मापदंड रहे,,,,, जब पैदा हुई तो मुझे बोझ समझा गया कभी भी शरीर को मजबूत … Read more

” कहीं घूमने चलें राधिका ? ” – सीमा वर्मा

 “क्या सोचा है आपने इस बार राधिका  ? “  — ” किस बारे में सुधीर,  मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है “ सुबह से ही घर की देखभाल में व्यस्त राधिका कराहती हुई बोली। यों इस घर में  काम करने वाले ‘ हेल्परों ‘  की कमी नहीं है पर सभी हेल्पर अपने -अपने काम … Read more

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