एक टुकड़ा उम्मीद – मंजुला
“मानव बरामदे में उकडू बैठा था। आँखों में बदलियां उमड़ घुमड़ रही थीं। रात बच्चों से प्राॅमिस करके सोया था कि सुबह वो उनके लिए रोटी ले आयेगा। सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे पर उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि करे तो क्या करे। जहाँ वो काम करता था उस फैक्ट्री पर … Read more