बेटी – गीता चौबे “गूँज”

फोन का रिसीवर रखने के बाद रजनी के मन में अपनी बिटिया रंजीता के आखिरी शब्द बहुत देर तक गूँजते रहे…  ‘बेटी को बेटी ही रहने दो, उसे बेटा मत बनाओ…’   रजनी अवाक रह गयी और गहराई से सोचने लगी कि उससे चूक कहाँ हुई। इतना आक्रोश कैसे भर गया उसकी बेटी के मन में। … Read more

उम्मीद का दीया – शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’

प्राची से लालिमा प्रस्फुटित हो जैसे ही वसुधा को चूमने लगती है, प्रकृति विभोर हो झूमने लगती है। उषा-काल की प्रथम किरण को अपने आगोश में समेटने का हेतल का नियम ही था। ऐसा कोई दिन नहीं निकलता था जब उसने सूर्योदय की पहली किरण का आचमन नहीं किया हो। शायद कोई किरण उसके जीवन … Read more

उम्मीद कामिनी हजेला

एक सड़क  दुर्घटना में   कमला   के पति और इकलौते पुत्र  की मृत्य  होगई  थी। उसे लगा दुनिया दुनियां ही खत्म  हो गई। थोड़े दिन  शोक मनाने के बाद  कमला ने पुनः नये सिरे से जीवन जीने का  फैसला लिया । उसने  पति की बैंको की धनराशि ,घर सब अपने नाम  करवाने का प्रयास  … Read more

“एक कप चाय तुम्हारे साथ” – ऋतु अग्रवाल

“नीलिमा! कहाँ हो भई? राहुल, मनस्वी, यहाँ आओ।” प्रभात ने दरवाजे से ही आवाज लगाना शुरू कर दिया।      “आ रही हूँ। क्या बात है, बड़े खुश लग रहे हो? बच्चे जरा बाजार तक गए हैं, नए साल की पार्टी के लिए सामान लेने।” नीलिमा हाथ पोंछते हुए बाहर आई। सप्रभात के हाथ में मिठाई के … Read more

कौन घर परिवार के झंझट में पड़े –  चाँदनी झा 

देखो संध्या, यहां पूछ-पूछ कर सब काम करती रहोगी, तो बस जिंदगी भर पूछते रह जाओगी। मेरी बात मानो, जो मन में आए करो, और देवर जी से भी कहो, वो अच्छा कमाते हैं, तुम्हें अपने साथ रखे। मंजू, संध्या की जेठानी,  संध्या को समझा रही थी। हां जीजी, पर….पर-वर कुछ नहीं, मैं तुमसे पहले … Read more

अकेली मां बेहतर है या धोखेबाज पिता का साथ – नीतिका गुप्ता 

सुबह-सुबह की आपाधापी में श्रुति अपने सारे काम जल्दी जल्दी निपटा रही थी। बेटी काव्या को स्कूल बस में बैठा दिया था और अब वह चाय का कप हाथ में लेकर काव्या का दोपहर का लंच और अपने लिए टिफिन भी तैयार कर रही थी। श्रुति की रोज की यही दिनचर्या थी सुबह जल्दी उठकर … Read more

…तो रिश्ता एक तरफा कैसे ? – संगीता अग्रवाल 

” कैसी हो बेटा ? ससुराल में सब ठीक तो हैं ना कोई परेशानी तो नहीं !” संध्या जी ने अभी दो महीने पहले ब्याही बेटी शीना से फोन पर पूछा। ” मम्मी बस पूछो मत दो महीने में ही इस ससुराल नाम से इतना उकता गई हूं कि सोचती हूं शादी ही क्यों की … Read more

सोच पर पड़े पत्थर कब हटाओगी? – सविता गोयल 

“ये देखो, फिर रास्ते में ये खिलौने बिखरे पड़े हैं। इस बहू को पता नहीं कब अकल आएगी। इतना भी ध्यान नहीं रख सकती कि कोई इनमें उलझ कर गिर जाएगा। मालती जी गुस्से में जोर से बोलीं तो उनकी बहु नैना भागती हुई आई और खिलौने समेटने लगी। “मां जी वो चीकू बार-बार बिखेर … Read more

नई शुरुआत – संगीता त्रिपाठी

“क्या लिख रही नीरा, इतनी रात में सामानों की फेहरिस्त बना रही हो,”राकेश जी ने पूछा!!         “न…. सामानों की फेहरिस्त नहीं, अपने शौक और जरुरत की फेहरिस्त बना रही हूँ “…      “मै समझा नहीं, तुम्हारी कौन से शौक और जरुरत है, सब तो पूरी होती है, वैसे भी अब सांध्य बेला पर क्या … Read more

खुशियों की उम्मीद – डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा 

  आर्मी हॉस्पीटल में लेबर रूम के बाहर विशाल अपनी माँ के साथ बैठा हुआ था तभी अंदर से नर्स अपने हाथों में नवजात शिशु को लेकर बाहर निकली उसे देखते ही दोनों खड़े हो गए। नर्स ने बच्चे को दिखाते हुए कहा-” बधाई हो आंटी जी पोता हुआ है।” रागिनी जी पोते को लेने … Read more

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