खुद पर भरोसा – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

 एक हाथ में पेपर और दूसरे हाथ में सुबह की चाय लिए चाचा जी बाहर बालकनी में बैठे मौसम का आनंद लेते हुए चाय की चुस्कियां ले रहे थे। वे इस बात से बिल्कुल अनजान थे कि कोई घंटे भर से उनके पीछे खड़ा है। संध्या जी उनके चाय खत्म होने का इंतजार कर रही … Read more

भरोसे ने दिलाई नई पहचान… – संगीता त्रिपाठी

 “माँ, मेरा रास्ता मत रोको, तुम खुद अपनी पहचान बना नहीं पाई, आज मै अपनी पहचान बनाना चाहती हूँ, तो मेरी उड़ान को पँख दो, उसे रोको नहीं, नहीं तो मै भी आपकी तरह गुमनामी में रह जाऊँगी, बस उसकी बहू, उसकी पत्नी, उसकी माँ, यही मेरी पहचान रह जायेगी “!!पाखी अपनी माँ को समझाने … Read more

फिर तेरी कहानी याद आई – प्रेम बजाज

राधा पहाड़ की ओट से सड़क पर नज़र रखे हुए है आज फिर उसमें एक नई आस जागी है।  सर्दियां शुरू हो गई है, उसे भरोसा है कि शायद अब की सर्दी में मेरा बाबू आएगा। मां और भाई, भाभी, छोटा भाई मोहन सब रोज समझाते हैं, ” राधा पगली मत बन, वो नहीं आएगा, … Read more

भरोसे की जीत – शुभ्रा बनर्जी

प्रतिमा अपनी बेटी प्रिया के साथ सहमते हुए कैब से उतर रही थी।एक अनजाना डर भी उसे सता रहा था।कैसा होगा कार्यक्रम?,इतना बड़ा होटल है,यही है ना पता?हां बच्चों से आज ही तो बात भी हुई थी। फिर क्यूं इतना डर लग रहा है मुझे?शायद अपनी संतान और बच्चों के बीच समन्वय की शंका है … Read more

भतीजे की शादी – कुमुद चतुर्वेदी

 आज कमला बुआ का दिल बल्लियों उछल रहा था,जबसे उन्होंने भतीजे की शादी का निमंत्रण पत्र पढ़ा था। डाक से आया निमंत्रण पत्र उनकी बहू जूही जब से उनको देकर गई है तब से अपने हाथों में लेकर प्यार से जाने कितनी ही बार सहलाकर चूम चुकी हैं।उनको लगता है पत्र की जगह उसका नन्हाँ … Read more

खुन्नस – प्रियंका मुदगिल

स्मिता एक चुलबुली और मस्त मौला लड़की थी। छल कपट से एकदम दूर अपनी ही दुनिया में रहने वाली….. बड़े-बड़े सपने थे उसके… पर छोटी छोटी चीजों से ही खुश हो जाती थी । उसका परिवार भी बहुत खुले विचारों वाला था। स्मिता घर की बड़ी बेटी थी। जो कि आप अपनी पढ़ाई पूरी करके … Read more

झूठ और धोखे की बुनियाद पर रिश्ते कैसे संभव – अमिता कुचया

मुझे आज भी लगता है  लोग अपनी बेटी को इतना भार क्यों मानते हैं। यदि कोई बेटी बीमार हैं तो उसका पूरी तरह इलाज कराना चाहिए न कि उसकी बिना बताए शादी करके उससे पीछा छुड़ाने की कोशिश करना  चाहिए। पर कितने पढ़ लिख जाओ पर सोच नहीं बदली तो क्या? इस लिए कहा गया … Read more

दृढ़ निश्चय का सवेरा – आरती झा आद्या

आज से मैंने तुम्हें अपने मातृत्व से बेदखल किया.. चीख कर अनिकेत से बोली थी माया … और अपनी बहू गरिमा को लेकर अपने रूम में आ गई थी…उधर उमेश जी बेटे के करतूत पर शर्मिंदा से बैठे थे..अपनी गलतियों को याद करते हुए।   एक सवाल अंदर कमरे में माया जी को परेशान किए हुए … Read more

किटी पार्टी – अंतरा

“आज फिर तुम्हारी मां सजधज कर तैयार हो गई किटी पार्टी में जाने के लिए।  मैंने तुमसे पहले भी कहा था उनको रोकने के लिए। यह कोई तरीका है इस उम्र में किटी पार्टी मनाने का…. लोग क्या कहेंगे…. भजन करने की उम्र में पत्ते खेलने का शौक चढ़ा है। तुम कुछ कहते क्यों नहीं … Read more

जिंदगी गुलजार हो गई – विजया डालमिया

देखो मैंने देखा है ये एक सपना फूलों के शहर में हो घर अपना …….यह गाना सुनते सुनते मैं पुरानी यादों में खो सी गई। हमारा छोटा सा गाँव ,जहाँ जब मैं शादी होकर आई तो मुझे लगा जैसे सच में मैं हरी-भरी वादियों से गुजर रही हूं ।चारों तरफ रंग बिरंगे फूल ।हरियाली ही … Read more

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