“ज़िंदगी का नाम समझौता नहीं… डॉ. सुनील शर्मा

ज़िंदगी का  दूसरा नाम समझौता है बिटिया, मां ने हमेशा यही समझाया था. औरत को पग पग पर परिस्थितियों से तालमेल बैठाना ही पड़ता है. हवा के रुख को पहचान कर बहाव के साथ चलने में ही समझदारी है. नारी चाहे पिता के घर हो या ससुराल में, गृहणी हो या किसी ऊंचे पद पर … Read more

बहू के हाथों का स्वाद – नीरजा कृष्णा

सरिता जी के घर पर आज सासू माँ के पीहर वाले आ रहे हैं….उनके भाई भाभी, उनके बेटे बहू एवं बच्चे वगैरह सब आ रहे है। सरिता जी सबके स्वागत के लिए बहुत उत्साहित हैं…..उनको लग रहा है कि क्या ना कर दें मम्मी के पीहर के परिवार के लिए..| उनको बार बार वो दिन … Read more

वो ईश्वरीय सहायता – लतिका श्रीवास्तव 

इस बार नवरात्रि पर वैष्णो देवी जाना ही है मां…..मां मैं आपसे ही कह रहा हूं  …….मैंने वैष्णो देवी के टिकट बुक कर दिए हैं …..आप और मेधा मिल के सारी तैयारी कर लीजिए अपनी दवाई कपड़े सब अभी से तैयार रखिए इस बार आपका कोई भी बहाना नहीं चलेगा …वैष्णो देवी जाना है मतलब … Read more

हर कदम तुम्हारे पीछे नहीं – अर्चना नाकरा

आज उसके अंतर्मन ने ‘क्रिमिनल लॉयर की पदवी के साथ …क्राइम कर दिया’ भले ही घर की एक सदस्य ने साथ दिया पर वह भी कब तक देती जिंदगी कशमकश में थी जितना वो तब भी चली जाती उतना उस पर हावी  होता चला जाता! बेहतरीन जिंदगी’ शानो शौकत’ सब कुछ तो था पर ‘बस … Read more

सफ़र – कंचन श्रीवास्तव

कविता क्या कर रही हो कहते हुए सुलेखा ने कमरे में कदम रखा।और जैसे ही उन्होंने कदम रखा वो छुटकर पैर छूते हुए कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।वो बैठी ही थी कि राम आ गया तो इसने शिकंजी का गिलास पकड़ाते हुए कहां ये लीजिए। पर उसका मुंह देखने लायक था। जिसे देख वो … Read more

हम सबमें है दुर्गा” – उषा गुप्ता

रीमा ,रिया ,अदिति और अर्पिता चारों हँसती-मुस्कुराती मार्शल आर्ट की कक्षा से बाहर निकली अपने-अपने घर की ओर जाने के लिए। एक ही समय में आने से चारों बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं।आज पैदल ही जाने का तय किया और निकल पड़ी उछलती, कूदती,हंसती ,मुस्कुराती …खुली सड़क पर । पर यह क्या ?? सड़क … Read more

अनोखा एका – सरला मेहता

सौदामिनी अकेली जान, बतियाए किससे ? बाड़े में जब से हरी सब्जियाँ व फल की बहार आने लगी, आँखें व पापी पेट दोनों तृप्त हो गए।       उनसे गुफ़्तगू में कब सूरज डूब जाता पता ही नहीं चलता। पड़ोसी ओंकार जी भी सुदामिनी जी की नकल कर बैठे। किन्तु हरी सब्जियों फलों को सम्भालना उनके बस … Read more

समाज एक आईना – स्नेह ज्योति

गर्मी की छुट्टियाँ पड़ी हुई थी बच्चों की मस्तियाँ जोरो पर थी, एकाएक सनी मेरे पास आया और बोला-माँ आइसक्रीम खानी है कुछ समय पश्चात मैं,सनी और टिया पास वाली मार्केट चले गए, उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था जैसे ही हम आइसक्रीम वाले के पास पहुँचे,तो मेरे कुछ पूछने से पहले ही दोनो ने … Read more

  ‘ राम तो बनो ‘ – विभा गुप्ता 

     ” आप मेरी बात तो सुनिए…” सुनंदा ने कहना चाहा लेकिन सुमेश ने उसे बाहर करते हुए कहा, “मुझे कुछ नहीं सुनना, इस घर में अब तुम्हारी कोई जगह नहीं है।” और भड़ाक से दरवाज़ा बंद कर लिया।          सुनंदा को कुछ समझ नहीं आया,क्या करे,कहाँ जाए।उसने एक फोन लगाया और पूरी बात बताई।उधर से आवाज़ … Read more

मंजर ,१९८४ – मनवीन कौर पाहवा

मौसम शांत था।हल्की ठंडी हवा की लहरें  दीवारों से  टकराकर  उन्हें नम  करने में जुटी थीं। कच्ची धूप खिड़की से झांक क़र अपनी उपस्तिथि दर्ज क़र रही थी। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई । कोटा के जाने – माने बैंक के मैनेजर  शर्मा जी थे ।आते ही घबराई हुई आवाज़ में बोले ,“टंडन साहिब आप … Read more

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