बड़का बिल्ला! – सारिका चौरसिया

संस्मरणों की दुनिया हठात् हमें हमारे अतीत के तरफ़ ले जाती है, जहां हमारे यादों के पिटारे में उम्र के भी दुगुनी-तिगुनी खट्टी-मीठी यादें और कुछ सुलझे कुछ अनसुलझे से फ़साने करीने से तह लगा कर रखे होते हैं,, कुछ यादें रुला जाती हैं और कुछ हँसी और खिलखिलाहटों की सौगात बनी हस्तांतरित होती है। … Read more

अपना अपना दर्द – विनोद प्रसाद ‘विप्र’

पार्क में एक बेंच पर दो अनजान महिलाएं बैठी थी। पति से अनबन के कारण दोनों महिलाएं परेशान लग रही थी। दोनों के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी। संकोचवश दोनों एक-दूसरे से बात नहीं कर रही थी। पर थोड़ी देर बाद ही पहली महिला ने पहल करते हुए बातचीत का सिलसिला शुरू किया। … Read more

लगन – नताशा हर्ष गुरनानी

“पापा पापा आप ना मम्मा को कुछ कहते क्यो नहीं हमेशा मेरे साथ भेदभाव करती हैं। भैया के लिये हर चीज़ लेकर आती हैं और मेरे लिए कुछ नहीं”  “भैया के लिये सब कुछ और मेरे लिए कुछ भी नहीं” रोते रोते पीहू बोली “अरे अरे मेरी गुडिया रानी ऐसे रोते नही, पापा है ना, … Read more

ममतालय – सरला मेहता

 बड़े से मैदान में क्रिकेट खेल रही दो टीमें… ए में हैं मि पिल्लई का पदम, खान साहब का हमीद, भिसे जी का यश,देसाई जी की दिव्या, पॉल मेम का जॉन और चटर्जी बाबू की मौली। शेष बचे भजनसिंह दा बंटी, तिवारी जी का पंकज। इसी बीच बंटी ने ऐलान कर दिया, ” हाँ कुछ … Read more

जब दोस्त परिवार बन गया – भगवती सक्सेना गौड़

कुशाग्र बुद्धि का अमर जब कई वर्षों पहले डॉक्टरेट करने अमेरिका जा रहा था, श्याम चतुर्वेदी और उनकी पत्नी रमोला का बुरा हाल था। किसी तरह दोनो अपने हृदय को वश में कर रहे थे कि बच्चो को उन्नति के लिए बाहर जाना ही पड़ता है। उसके विदेश जाने के बाद रिटायर होकर दोनो अपने … Read more

दोहरे मापदंड – कमलेश राणा

बात जब भी मलिनता की आती है तो सबसे पहले कीचड़ की याद आती है जिसे छू लेने भर से साफ सुथरा दामन दागदार हो जाता है और जब शुचिता और पवित्रता का ध्यान आता है तो सबसे पहले कमल की याद आती है… कितना अजीब है न यह कि उसी कीचड़ में खिलकर भी … Read more

“असली स्वर्ग” – अनुज सारस्वत

                          “ऐसे घर में रहने से अच्छा है मैं मर जाऊं कहीं चला जाऊं , जब आओ पत्नी के ताने, मां के ताने, अकेला आदमी करे तो क्या करें मेरा दिमाग खराब कर दिया है दोनों ने मिलकर “ गुस्से में तिलमिलाता हुआ सुबोध ने चीखकर कहा, पूरे घर में शांति छा गई और सब … Read more

परिवार की असली कीमत – सरगम भट्ट

रमेश और सुषमा बहुत खुश हुए जब उनके घर बेटी पैदा हुई , उन्होंने सारे गांव वालों को दावत पर बुलाया , रमेश एक दर्जी था जो गांव में बहुत मशहूर था । अरे रमेश मुझे अपने साले की शादी में जाना है , मेरे लिए एक अच्छा सा सूट सिला दो । क्यों नहीं … Read more

“छोटी बहू का परिवार” – भावना ठाकर ‘भावु’

शादी का शोर थम गया मानसी ने  ससुराल की दहलीज़ पर कदम रखा ही था की सास, जेठानी और ननंद ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए। एक तो ससुराल कैसा होता है उसका मिश्र वर्णन मायके में अलग-अलग मुँह से सुन लिया था तो थोड़ी डरी हुई थी मानसी। पर मायके का दामन छोड़ … Read more

अपने ही परिवार में ये दीवार कैसी…. रश्मि प्रकाश 

“ बेटा तेरी दादी की तबियत बहुत ख़राब है ना जाने क्यों वो तेरे से मिलने की ज़िद्द किए बैठी है …. हो सके तो तू समय निकाल कर आ जा.. दो साल से मायके के चक्कर भी नहीं लगा पाई है ।” दुखी स्वर में दमयंती अपनी बेटी वाणी से बोल रही थी  “ … Read more

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