‘ ऐसा परिवार सबको मिले ‘ – विभा गुप्ता 

  विवाह-कार्य सम्पन्न होने के बाद जब तृप्ति की विदाई का समय आया तो घर के बड़े-छोटे सभी सदस्यों की आँखें नम होने लगी।तृप्ति कभी ताईजी के सीने से लगकर रो रही थी तो कभी मानसी बुआ के गले से लिपट कर कह रही थी, बुआ, मुझे रोक लो और बुआ कहती, ” बिटिया,ये तो समाज … Read more

परिवार की एक विधवा बहू,,,, – मंजू तिवारी

हेलो छोटी बहू मैं खेतों का बटाईदार बोल रहा हूं। बड़े भैया ने खेतों के लिए पानी देने के लिए मना कर दिया है। अब खेतों में गेहूं कैसे बोया जाएगा। नमिता बटाईदार से कहती है। यदि जेठ जी खेतों के लिए पानी नहीं दे रहे तो किसी और से पानी ले लो ,,,लेकिन कोई … Read more

जेवर – अंजू निगम

“जिज्जी, क्या सोचा? मालू की दुल्हन की गोद भराई में क्या देना है? सोना तो आग पकड़े है। पुन्नी बता रही थी कि पचास के ऊपर पहुँच गया है।” “पचास के ऊपर!!!!! राम राम। मैंने तो इतने दिनों से सोना खरीदा नहीं। हमारे बखत तो  बीस के आस पास रहा होगा।” सुधा के चेहरे पर … Read more

ज्वाइंट फैमली में ब्याह–ना भई ना” – कुमुद मोहन

“सीमा। देखो अपनी इना के लिए कितना अच्छा रिश्ता आया है।” सुरेश ने घर में घुसते ही कहा।   “कौन है कहाँ से आया लड़का क्या करता है कितने भाई-बहन है?” एक सांस में सीमा बोलती चली गई। “अरे भई। जरा ठहर तो जाओ सब बताता हूँ” कहकर सुरेश ने बताया यहीं दिल्ली के बिजनेसमैन … Read more

बहु कभी बेटी नहीं हो सकती – डॉ. शशि कान्त पाराशर “अनमोल”

हमारे समाज में व्याप्त सकारात्मक सोच और नकारात्मक सोच के अनुसार “बहु का बेटी होना” यह कथन भी विचारणीय है । यह कहावत अक्सर महिलाओं के मुख से सुनने को मिलती है कि “एक बहु भी बेटी होती है !” जबकि यह कहावत व कथन केवल कहने मात्र ही है क्योंकि एक बेटी जब मायके … Read more

अनजाने में बना अनोखा परिवार

हर किसी के जीवन में ” परिवार ” बहुत महत्व रखता है, परिवार ही हमें हमारी पहचान देता है, हमें जोड़े रखता है!! परिवार का अर्थ ही ” एक दूसरे को जोड़े रखना ” है, परिवार के बिना हर कोई अकेला है !!    परिवार सामूहिक होते हैं या एकल, पर आज मैं ऐसे अजीबोगरीब तरीके … Read more

पड़ोस भी परिवार है – डॉ. पारुल अग्रवाल

आजकल नौकरी की वजह से ज्यादातर युवा लोग अपने परिवार से दूर दूसरे शहर में रहते हैं।अधिकतर नौकरियां कंप्यूटर से संबंधित होती हैं तो ज्यादातर नवयुगल शादी के बाद रहने के लिए अपना आशियाना भी इन्हीं शहर में सोसायटी में ही बनाते हैं। वैसे भी महानगरों में मौहल्ले वाली संस्कृति खत्म हो रही है। ऐसी … Read more

 एक खुश तो सब खुश  – गुरविंदर टूटेजा 

संचित आज बहुत उदास था…कुछ दिन पहले ही उसकी दादी का निधन हो गया था और वो उसे बहुत प्यार करती थी वो भी अपनी दादी के बिना नहीं  रहता था…!!!!    दस दिन बाद दीवाली का त्यौहार आने वाला था…सबकों पता था इस बार दीवाली नहीं मनेगीं घर में…फिर भी संचित पापा से बोला कि … Read more

माँ ! तिन्नी रो रही है।’ – पुष्पा जोशी

‘रो रही है, तो मैं क्या करूँ? उसकी माँ है ना उसे सम्हालने के लिए।’  ‘माँ ! वह भूखी है, चाची की तबियत ठीक नहीं है।’ ‘ठीक नहीं है तो? मैंने ठेका नहीं लिया है सबका।’ सुनंदा उग्र स्वभाव की महिला थी, और मन में दांव – पेंच रखती थी। दुष्ट प्रकृति की थी, और … Read more

बहू, तुम तो आदमियों जैसे खाती हो! – राशि रस्तोगी 

लीला अपने घर में सबसे छोटी थी और पूरे परिवार की लाडली | लीला के पिता गांव के बड़े ज़मीनदार थे, बहुत ही धनाढ्य व्यक्ति थे | यूँ तो घर में नौकरो की कमी ना थी, पर पुराने रीति रीवाज़ो के हिसाब से घर का खाना घर की महिलाये ही बनाती थी | लीला ने … Read more

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