वो मरकर भी ज़िन्दा हैं – गुरविंदर टूटेजा

     युग कहाँ जा रहा हैं बेटा रात के दस बज रहें हैं…??    मम्मी जल्दी आ जाऊँगा…बोलकर अपनी बाईक निकाली और ये गया वो गया…!!   रागिनी ने अजय को बोला…इतनी रात को बाईक से जा रहा है..आप कुछ कहते ही नहीं उसको…!!!!   जाने दो रागिनी बच्चों को ज्यादा टोका टाकी नहीं करनी चाहियें वो पंसद … Read more

दिल के रिश्ते – रीटा मक्कड़

“अरे वाहः रीना आज तो बड़ी प्यारी लग रही हो”  रक्षाबंधन वाले दिन मैं अपने मायके से वापिस आयी ही थी कि रीना मुझे बाहर ही मिल गयी। चटक हरे रंग के लहंगा चोली और मांग टीका लगाए  सजीधजी आज तो वो बिल्कुल अलग और बहुत सुंदर दिख रही थी। ‘हांजी आंटी मैं भी अभी … Read more

 स्वाद अपनेपन का….! – लतिका श्रीवास्तव

सोमेश अभी सोकर भी नहीं उठा था की उसने कालिंदी को कहीं जाने के लिए तैयार पाया….! अरे श्रीमतीजी आज सुबह सुबह कहां की तैयारी हो गई….आश्चर्य और उत्सुकता से उसने पूछा ही था कि कालिंदी ने घड़ी दिखा कर कहा….”सुबह सुबह!!!ये सुबह है.!9 बज गए हैं..! अरे भाई आज सन्डे तो है….सोमेश ने उसे … Read more

मैं हूं ना – प्रेम बजाज

सुहानी एम. बी.ए. है अच्छी नौकरी है, खूबसूरती ऐसी कि जो देखे तो पलक झपकना भूल जाएं।   गहरी नीली आंखें, पतले कमान से होंठ, सुराही सी गर्दन,तीखी नाक उफ़्फ़्फ़्।  उस पर कयामत ढा रहा गोरे रंग पे, गालों पे छोटा सा काला तिल, सीना कामदेव को आमंत्रण देता, कई रिश्ते आए मगर अक्सर कहीं ना … Read more

“स्थापना” – ऋतु अग्रवाल

    “दुलारी काकी! दुलारी काकी!”     “कौन है? क्या हुआ?”      “काकी तनिक बाहर आओ।”       “अरे लखनवा! क्या हुआ? काहे गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहा है?”     “काकी! जरा जल्दी चलो। आज सुबह जो तुम रामशरण की बहुरिया की बच्ची जनवाई हो, वह रामशरण उसे मारे खातिर अफीम का गोला लेने गया है।”     “क्या? उस रामशरण की तो … Read more

मुझे स्वीकार नहीं है  – पुष्पा पाण्डेय

श्वेता शाम में चाय लेकर वाॅलकनी में आ गयी। चाय की चुस्की लेते-लेते वह एक नजर अपनी काॅलोनी पर डाली। मन- ही-मन सोचने लगी- इन बीस सालों में कितना कुछ बदल गया। कभी सोचा भी नहीं था कि यह जगह मेरी कर्मभूमि होगी। ——————- हरि प्रसाद जी इस बार नवरात्र में विन्ध्याचल जाकर दस दिन … Read more

वो अदृश्य शक्ति – कमलेश राणा

अजय बहुत दिन हो गये, चलो कहीं घूमने चलते हैं,, बात तो पते की कही है तुमने अमित,, पर कहाँ चलने का सोचा है तुमने,, इन नवरात्रि के दिनों में माता रानी के मंदिर से उत्तम स्थान और कौन सा होगा,, समीर ने सुझाव दिया तो फिर पक्का हम चारों शनिवार को रतनगढ़ की माता … Read more

हम एक हैं – नीरजा कृष्णा

आज जब मीनू का फोन आया तो उसने अपना माथा ठोंक लिया था। सच में कितनी भुलक्कड़ हो गई है, अभी कुछ दिन पहले तक तो याद रखा था पर आज ऐन वक्त पर भूल गई कि छोटी बहन कविता का आज जन्मदिन है। मीनू ने हँस कर फोन किया था,”अरे वाह मौसी! कितनी बिज़ी … Read more

” भेड़ियों का आतंक ” – डॉ. सुनील शर्मा

रिया को कुछ जुगाड़ के बाद गंगा के किनारे प्राकृतिक वातावरण में शहर से अलग बने इस सुन्दर रिसॉर्ट में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिली थी. हालांकि उसने होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा हासिल किया था. अरमान तो था कि किसी अच्छे होटल में नौकरी मिले, फिर कुछ दिन कमाकर अपना एक रेस्तरां खोले. लेकिन आर्थिक रूप … Read more

वो पराया पर अपना –  बालेश्वर गुप्ता

  अभी पिछले दिनो मैंने जगदीश भाई से वृद्धाश्रम में वीडियो कॉल पर बात की।उनके माथे पर पट्टी बंधी थी।मैंने चौंककर जगदीश भाई से उनको लगी चोट के बारे में पूछा।मैंने उनसे उनके पास आने की इच्छा भी जाहिर की।पर जगदीश भाई ने नम्रता से मना कर दिया और मुझे आश्वस्त किया कि वो ठीक हैं। … Read more

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