“खोखले बन्धन” – कविता भड़ाना

“सिया” एक छोटे शहर की, बेहद खूबसूरत लेकिन बहुत महत्वाकांक्षी लड़की है। मध्यमवर्गीय परिवार की होने के कारण कमी तो किसी चीज़ की नहीं थी, पर सब कुछ सीमित मात्रा में ही मिल पाता था। परिवार में मम्मी पापा के अलावा एक बड़ा भाई ही है, तो लाडली भी बहुत है, सुंदर इतनी की रिश्तेदारों … Read more

बंजारन – प्रेम बजाज

“अरी ओ कजरी सारा दिन‌ सीसे में ही घुसी रवेगी का”? कुछ काम-धाम भी करया कर कभी!” “अम्मा, मोसे ना होता काम-वाम तेरो, मैं तो राजकुमारी  हूं, राजकुमारी और राजकुमारी कोई काम नाही करत” रोज़ का काम था कजरी की मां उसे काम में हाथ बंटाने को कहती और कजरी मना कर देती। दरअसल कजरी … Read more

साड़ी वाली विद्यार्थी – मंजू तिवारी

यह बात 1995 की है जब प्रेरणा कक्षा 9 में पढ़ती थी कॉलेज में सुबह-सुबह प्रार्थना होने के बाद प्रेरणा जब अपनी क्लास रूम में गई तो देखा एक जगह बहुत सारी लड़कियां भीड़ लगाए खड़ी है।और कुछ देख रही हैं। सभी आपस में बातें कर रही है तो प्रेरणा के मन में भी आया … Read more

जाके पैर फटी बिवाई (हेल्थ) – कुमुद मोहन

क्लब की नयी मेंबर मिसेज़ खन्ना जब मीटिंग में आईं तो एक बार तो सबकी नज़र जैसे उन पर ही जम गई। छरहरी फ़िगर, सलीके से पहनी साड़ी,हल्का सा मेकअप,खूबसूरत ज्वेलरी, मैचिंग पर्स,चेहरे पर फ्रेंडली मुस्कान आते ही मानो पूरे ग्रुप पर छा गयीं। डायनिंग स्पेस में जाने के लिए सीढ़ी  चढ़ते हुए पीछे से … Read more

क्या ऐसे भी अपने होते हैं? – प्रेम बजाज

अंकल सिमी को बेहद प्यार करते थे। उनके बाल एकदम सन की तरह सफेद और चमकीले थे। सिमी ने फ्रायड की सारी की सारी पुस्तकें तो पढ़ डाली थी, कभी फ्रायड की तस्वीर नहीं देखी।  पर पता नहीं अंकल को देखने से फ्रायड क्यों याद आ जाते थे। सोचती थी सिमी शायद फ्रायड की शक्ल … Read more

गैसलाइटिंग : मानसिक उत्पीड़न * – डॉ उर्मिला शर्मा 

हमें रोजमर्रा के जीवन में कभी- कभी या लगातार गैस लाइटिंग का शिकार होना पड़ता है जिसका हमें पता ही नहीं लगता। सर्वप्रथम ‘गैसलाइटिंग’ शब्द पैट्रिक हैमिल्टन के नाटक गैस लाइट (1938) से लिया गया है, जुसपर बाद में फ़िल्म भी बनी। इस सम्बंध में डॉ इशिता नागर कहती हैं -“गैस लाइटिंग एक प्रकार का … Read more

पप्पा जी मने डर लागे सै  – मंजू तिवारी

पप्पा तू कित गिया,,, मने घणो डर लागे सै तू अठे बैठ जा,,,,,,, यह बात अभी कुछ दिन पहले की ही थी जब प्रेरणा के बेटे की तबीयत यकायक खराब हो गई और उसे हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा प्रेरणा के बेटे के बेड के दोनों तरफ दो छोटी बच्चियां एडमिट थी जिसमें से एक … Read more

 स्कूल चलो – कहानी -देवेन्द्र कुमार

आखिरी बच्चा भी रिक्शा से उतरकर चला गया। भरतू की ड्यूटी खत्म हो गई थी लेकिन अभी पूरी तरह नहीं। साईकिल रिक्शा की सीट से उतरकर उसने पीछे झांका तो अन्दर एक किताब पड़ी दिखाई दी। अंदर का मतलब रिक्शा के पीछे एक केबिन जुड़ा हुआ है। उसमें छोटे बच्चे बैठते हैं। उनके बस्ते हुकों … Read more

“बाहरी” – नीरजा नामदेव

अलीना को पढ़ना बहुत पसंद था ।जब भी समय मिलता है पत्रिकाएं पढ़ती। अब तो इंटरनेट पर भी उसे पढ़ने को बहुत सारी सामग्री मिल जाती थी। एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब वह पढ़े बिना रह पाती। आज ही उसने एक पत्रिका में कहानी पढ़ी शीर्षक था ‘आउटसाइडर’ जिसमें बेटा विदेश पढ़ने जाता … Read more

औरतों का श्रिंगार ( हास्य )  – मीनाक्षी सिंह

हुआ कुछ यूँ कि हमारे मियां जी ने हमसे कहा कल मेरी ऑफिस की मैडम शालिनी हैं ,उनकी शादी की 25वीं सालगिरह हैं !! बड़े धूम धाम से होटल में मना रही हैं ! हमें भी परिवार सहित बुलाया हैं !! मैं ऑफिस से आऊंगा तब तक बच्चों को तैयार रखना और तुम भी तैयार … Read more

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