“अंतर्द्वंद” – ऋतु अग्रवाल 

  “माँ! मुझे आपसे कुछ कहना है।” अंकिता ने रसोई घर में काम कर रही सुरभि से कहा।       “हाँ,बोलो बेटा।”       “माँ! वो मैं……..” अंकिता चुप हो गई।       “बोलो, बेटा! इतना झिझक क्यों रही हो?” सुरभि ने अंकिता के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए कहा।       “माँ, मुझसे एक गलती हो गई।”अंकिता ने एक अल्पविराम लिया।      सुरभि एकटक … Read more

मृगमरीचिगा – आरती झा आद्या

तू क्यूं नहीं समझ रही है रक्षा, शादीशुदा है वो। जिंदगी बर्बाद हो जाएगी तेरी.. रक्षा के ही दफ्तर में काम करने वाली सुरम्या उसे समझा रही थी। पता नहीं तुझे उससे क्या दिक्कत है सुरम्या। कितना तो ख्याल रखता है मेरा। जब मुझे प्रिय कहकर संबोधित करता है तो ऐसा लगता है जैसे वो … Read more

 अपमान – कविता भड़ाना

“हे नारी तुम अस्त्र उठाओ, बचाने को लाज तुम्हारी, अब ना माधव आयेंगे”….  इस कथन को आज कॉलेज में पढ़ने वाली बाइस वर्षीय “वंदना” ने सार्थक कर दिया। बहुत सुंदर, मेधावी छात्रा वंदना ने जो कर के दिखाया, उसी की चर्चा आज पूरे शहर में हो रही हैं।  शहर के प्रतिष्ठित कॉलेज में साल भर … Read more

जीवन संध्या – कुमुद मोहन

क्या मम्मी! आपको घंटी नहीं सुनाई देती क्या? कितनी देर से बेल बजा बजाकर थक गए और आप हैं कि जरा सा दरवाजा खोलने में घंटों लगा देती है झुंझलाते हुए शशांक और सानवी भड़भड़ाकर अंदर घुसे। बेटा! मुझसे अब भाग कर दरवाजा नहीं खोला जाता कमरे से बाहर आने में टाइम लगता है गठिया … Read more

तिरस्कार** –    बालेश्वर गुप्ता

   देखो रामू काम निबटा कर, ड्राइंग रूम से ये टूटी कुर्सी हटा कर पीछे कर देना, वहां से ये दिखायी नही देगी। ठीक है बाबू सरकार, बस थोडी देर में ही रख दूंगा।      रमेश अपने 55 वर्षीय नौकर रामू को उक्त निर्देश देकर ऑफिस चला गया।रमेश की पत्नी दो वर्षीय बेटे के साथ अपने मायका … Read more

मानवीयता –   बालेश्वर गुप्ता

पापा, प्लीज जरा दो किलो आलू और एक किलो प्याज सब्जी मंडी से ला दीजिये।ये बैग और पैसे मैं रखे जा रही हूँ और हाँ पापा 4 पैकेट दूध भी ले आना।हो सके तो मुन्ना के लिये बिस्किट भी डाल लेना।     ठीक है बहु, सुबह मैं घूमने जाता ही हूँ, तभी बता देती तो उधर … Read more

खंडहर  रेड लाइट एरिया – रीमा महेंद्र ठाकुर

आकाशी निस्तेज आंखों से बस दीवार को घूरे जा रही थी, दीवार पर चिपकी छिपकली कब से शिकार पर नजर रखे हुए थी! आकाशी उठना चाहती थी, पर जिस्म टूट रहा था’अचानक से छिपकली ने झपट कर शिकार को अपने मुंह मे डाल लिया, वो एक छोटा सा कीट था जो खुद को बचाने की … Read more

मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती…. रश्मि प्रकाश

गरिमा की आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह रही थी…. उसका इस तरह अपमान होगा वो सोच ही नहीं पा रही थी…. बड़ी भाभी ने जो अपमान किया वो तो वो बर्दाश्त भी कर लेती पर क्या माँ को भी मुझ पर भरोसा नहीं रहा….सालों से इस घर में अपनी सेवा के परिणामस्वरूप ऐसा … Read more

अपमानित वजूद का बदला – तृप्ति शर्मा

आज सविता के हाथ जितनी तेजी से ताली बजाने के लिए उठ रहे थे उतनी ही तेजी से अविरल धारा उसके गालों को भी भिगोती जा रही थी । उसकी नन्ही कोमल सी बिटिया सृष्टि ,जिसे पाकर उसे पहली बार मां शब्द की अनुभूति हुई थी ,उस वक्त सविता अचानक से जिम्मेदार हो गई थी … Read more

स्मृतियों के झरोखों से – वीणा

स्मृतियों के झरोखों से – वीणा जब पीछे मुड़ कर देखती हूं तो दिखते हैं वे लड़के जो उछाल देते थे एक दिलफेंक मुस्कान उनकी ओर देखने पर या गिरा देते थे कागज का एक टुकड़ा उनके समीप से गुजरने पर जिस पर लिखा होता था  रटा रटाया जुमला–मैं तुम्हे प्यार करता हूं अकेले कही … Read more

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