पितृ ऋण – प्रीति आनंद अस्थाना
******** “डैड, मेरी कम्पनी का जो नया ब्राँच खुला है न इंडिया में, मुझे उसका चार्ज दिया गया है, तो मुझे अगले हफ़्ते इंडिया जाना होगा।” “पर उत्कर्ष, अभी कुछ समय पहले ही तो एक महीना वहाँ बिता कर आए हो?” “तब मैं वहाँ कम्पनी का नया ऑफ़िस स्थापित करने गया था।” “और अब?” … Read more