मुट्ठी भर धूप – सरिता गर्ग ‘सरि’

 बरसों बीत गए मेरे आँगन में धूप का कोई टुकड़ा नहीं उतरा। टूटी मेहराबों की किसी ने मरम्मत भी नहीं की। कंगूरे झड़ते रहे। कबूतरों की बीट से भरे  दालान गंधाते रहे और मेरी रूह उन गलियारों में अपना वजूद ढूँढती सदियों से किसी मुंडेर पर बैठी मुट्ठी भर धूप खोजती रही।          कोहरे से भरी … Read more

हासिल आयी शून्य – श्रद्धा निगम

————————–  आज फिर मालती ने अपनी आदत से मजबूर होकर फोन पर हंसते हुए सामने वाले से कहा -अरे आओ,मज़ा आ जाएगा।सब मिल कर धमाल करेगे और ऐसा करना साथ मे शिखा  और मणि को भी ले आना।बहुत दिनों से कोई पार्टी नही हुई।हंसते हुए मालती ने फोन रखा ही था कि राहुल ने टोकते … Read more

एक प्रेम कहानी ऐसी भी – डॉ. नीतू भूषण तातेड

बहुत समय बाद मिश्री अपने गाँव आई। अपने गाँव की गलियों को पार करते हुए जब वह गुज़र रही थी तो उसकी आँखों में बचपन का अल्हड़पन औऱ किशोरावस्था की मस्ती नाचने लगी। वह अपने गाँव आना लगभग बंद कर चुकी थी क्योंकि उसके भाइयों ने उसकी शादी जबरदस्ती किसी ऐसे दूसरे आदमी से करा … Read more

शाश्वत संकल्प और अथक प्रयास से ही पर्यावरण संरक्षण संभव है -राम मोहन गुप्त

हाल ही में हुई अमरनाथ धाम की त्रासदी, देश-विदेश में बाढ़ से तबाही, दरकते पहाड़, देश-दुनिया में पड़ रही भीषण गर्मी, सुलगते जंगल आदि अनेकों उदाहरण हैं जो कि सिध्द करते हैं कि प्रकृति से की गई छेड़छाड़ और संसाधनों के अंधाधुंध दोहन का परिणाम भयावह ही होता है। जैसे-जैसे हम प्रगति की ओर बढ़ … Read more

भरण पोषण – कंचन श्रीवास्तव

संजय ने जिस लड़की को पसंद किया उसी के साथ जीवन बिताने का फैसला भी कर लिया। कहते हैं छुटपन से ही साथ रहे संजय और रेखा बचपन में दोस्त हुआ करते थे।पर ये दोस्त बढ़ती उम्र के साथ कब मोहब्बत में बदल गई ,पता न चला। जबकि वो पढ़ने विलायत चला गया और ये … Read more

आभासी दुनिया की सच्ची दोस्ती  – सरगम भट्ट

फेसबुक पर मिले दो अनजान, हां अनजान ही थे उस समय एक दूसरे के बारे में तनिक भी जानकारी ना थी। एक प्यारी ममता( मृदुला) दीदी एक प्यारे विकास भैया और प्यारी भाभी भतीजी, सभी मुझसे उम्र में बड़े थे इसीलिए मैं भैया और दीदी ही बोलती थी। दीदी भैया एक ही गांव के, भाई … Read more

आखिरी टच   – सरिता गर्ग ‘सरि

 माथे पर सोच की लकीरें और अनुभव की झुर्रियों से भरा चेहरा था उसका । कोटर में धंसी दो पनियाली आँखें बुझते दीपक सी नजर आती थीं। हमारी गली के बाहर वाली चौड़ी सड़क पर बने ,विशाल राम मंदिर के पास बैठी वो ,हर आने जाने वाले की तरफ कातर निगाहों से तब तक देखती … Read more

वो सोलह बरस की – नीरजा कृष्णा

वो बच्चों के पास अहमदाबाद आई हुई थी…आयुष ने दिन रात एक कर दिया था,”आपको आना पड़ेगा… बहुत दिन हो गए हैं।”बहुत सोच कर वो दस दिन के लिए आ गई थीं। सुबह सुबह वो गुनगुनाते हुए सबकी चाय बना रही थीं…मैं सोलह बरस की…तू सत्रह बरस का…तभी पीछे से जोरदार धमाका हुआ…हैपी बर्थडे दादी…वो … Read more

 रिश्ता – निभा राजीव

नीता सोफे पर बैठी टीवी देख रही थी। अचानक हाथ पर किसी का स्पर्श पाकर उसने मुड़कर देखा। उसकी ननद की 3 वर्षीय मूक बेटी रिया वहां बैठी थी, जिसे उसके पति ऋषि ननद की लम्बी बीमारी से मृत्यु के बाद अपने साथ ले आए थे। वह बोल नहीं सकती थी और उसका इलाज चल … Read more

स्वयं की तलाश – डा मधु आंधीवाल

पंखुरी खिड़की में खड़ी थी । आज घनघोर बारिश हो रही थी ।  उसके साथ ही उसके मन में भी  अंधेरी घटायें घिरी थी । सोच रही ऐसी ही तो बारिश की शाम थी । वह बस का इन्तजार कर रही थी । आज प्रेक्टीकल क्लास देर से छूटी । वह अकेली रह गयी उसकी … Read more

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