दोस्ती -एक अनमोल रिश्ता – मीनाक्षी सिंह

बात उन दिनों की हैं जब मैं 11वीं में पढ़ती थी !मेरी श्रद्धा नाम की एक खास  सहेली थी ! मैने बायोलोजी विषय ले रखा था और श्रद्धा ने गणित  ! वो जब भी अपनी गणित की क्लास के लिए गणित की लैब में जाती तो मुझे बहुत गुस्सा आता क्योंकी मुझे लगता कि  वो … Read more

ज़िंदगी मेरे घर आना – के . कामेश्वरी

प्रतिमा घर का पूरा काम ख़त्म करने के बाद बैठक में आँखें बंद कर अपनी थकान मिटाने के लिए बैठी थी । सुबह से काम करते -करते थक गई थी । अब जाकर घर ख़ाली हुआ था । ट्रिंग ट्रिंग !!!!!फ़ोन की घंटी से जैसे उसे होश आया । फ़ोन उठाकर कहा हेलो!!! उधर से … Read more

 एक चिट्ठी प्यार भरी – श्वेत कुमार सिन्हा

प्रिय पापा, सबसे पहले तो मुझे क्षमा करें मैने आपके लिए आदरणीय के स्थान पर प्रिय शब्द का इस्तेमाल किया। दरअसल कई बातें थी जिन्हे कहने के लिए मुझे इस चिट्ठी का सहारा लेना पड़ा। नहीं तो खुद कई बार आपके समक्ष आकर भी बोल पाने की हिम्मत न जुटा पाया।  सबसे पहले जो बात … Read more

नौजवान की दास्ताँ – बेला पुनीवाला

  जनकपुर नाम के एक छोटे से गाव में एक पति पत्नी रहते थे, पति का नाम श्यामल और पत्नी का सुशीला था। श्यामल खेतिबाड़ी संभालता था, सुशीला अपना घर संभालती थी, दोनो की शादी को 5 साल हो गए थे, लेकिन बच्चा नहीं हुआ था, फिर एक वैदजी की औषधि और कितनी मन्नतो  के बाद  … Read more

 परित्यक्ता  – मुकुन्द लाल 

उदय जिस घर मे ट्यूशन पढ़ाने जाता था, उस घर में परिवार से अलग-थलग एक युवती अक्सर दिखलाई पड़ती थी। उसने अनुमान लगाया कि हो न हो वह बच्चों की बुआ ही होगी। वह अपने काम से मतलब रखता था। पढ़ाने के बाद वह सीधे अपने डेरा के लिए प्रस्थान कर जाता था। ट्यूशन पढ़ाने … Read more

बेटियाँ परायी होती है बहू नहीं – रश्मि प्रकाश

सुबह सुबह घर के सारे काम खत्म कर एक कप चाय लेकर बैठी ही थी कि मौसमी का फोन आ गया। अब तो लंबी बातचीत होगी सोचती हुई वंदना चाय के घूंट के साथ साथ अपनी इकलौती चचेरी ननद से बतियाने लगी। पूरे ससुराल वालों में एक मौसमी ही थी जो वंदना से स्नेह भी … Read more

प्रेरणा – गोमती सिंह

उज्जवला और सुधीर, दोनों पति-पत्नी के स्वभाव एक जैसा, एक सरिता सी सरल, तो सुधीर सागर सा शान्त, धैर्यवान। उज्जवला सुधीर का एक 5 वर्षीय पुत्र दिपांशु था। उज्जवला सुधीर की सोच थी की एक पुत्र के साथ-साथ एक पुत्री से ही किसी भी का परिवार परिपूर्ण होता है। उनकी सोच यह भी थी कि … Read more

उधार की रोटी – मुकेश कुमार (अनजान लेखक)

———– बिजु को पुलिस वैन से उतरते देख सभी रिपोर्टर और कैमरामैन बिजली की फुर्ती से दौड़ पड़े, कोई पुछ रहा था “निर्दयता से मारना तुम्हारा रोज़ का काम है ना?” कोई पुछ रहा था “पुलिस के हाथ लगने से पहले कितनों को मारा?” तो कोई पुछ रहा था “मासूम को मार कर क्या ख़ुशी … Read more

श्रीमती की…तारीफ – विनोद सिन्हा “सुदामा”

आज़ तो घर में मानों बवाल कटने से बची थी.. हुआ यूँ कि.. मैंने जैसे ही श्रीमतीजी के हाथों की बनी चाय की पहली चुस्की ले अखबार हाथ मे लिया.. मेरे मुँह से…..आहहहा व वाहहह दोनों स्वर एक साथ निकलें.. बता दूँ कि मेरी श्रीमती जी चाय बड़ी अच्छी बनाती थी… मानों कोई जादू हो … Read more

अपनी अपनी खुशी” – मीनाक्षी राय

केतकी एवं अपने रसोई घर में खाना बना रही होती है,,,,,,और  तभी फोन  उसके दीदी का आता है,,,,,,, वह उससे बात कर रही होती है,,,,,, तो उसकी दीदी उससे कहती है ,,,,,,,,,कि देख  तेरे देवर और देवरानी को तेरे दर्द का जरा भी एहसास नही ,,,,,,,कैसे अपनी बहन की  संगीत के समारोह में नाच रही … Read more

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