बीत गई है स्याह विभावरी – अर्चना कोहली ‘अर्चि’

मूसलाधार बरसात में झरोखे के पास बैठी आकांक्षा का मन एक अबोध शिशु की भाँति खुशी से हिलोरें लेने लगा।आखिर हो भी क्यों न! तमस भरी रात्रि के अवसान पर सूर्योदय के समान उसके जीवन में भी तो सतरंगी प्रकाश फैल गया था। अभी कुछ दिन पहले की तो बात है, जब कैंसर के खिलाफ़ … Read more

बस नंबर पच्चीस ग्यारह  – अंकित शर्मा

वह एक अंधेरी रात थी । काले बादलों ने आसमान के ऊपर अपना घर बनाया हुआ था कि मानो बस अभी बरसने ही वाले हों । दूर – दूर तक कोई आवाज़ नहीं , सिवाय झींगुरों के । वह एक घना सुनसान जंगल था ,  जिसके बीचों-बीच से निकली एक कच्ची सड़क आसपास के गांवों … Read more

सफर – अनुपमा

मां का फोन आते ही शिवानी ने कुछ कपड़े  बैग मैं रखे और सीधे स्टेशन आ गई , मौसम बहुत खराब था , तेज बारिश हो रही थी , स्टेशन पर भी इक्का दुक्का लोग ही थे , और उसके शहर की ओर जाने वाली गाड़ी मैं तो वैसे भी कम ही सवारियां होती है … Read more

सावन की पहली बरसात – संगीता त्रिपाठी

आकाश में घने मेघ छाये थे, रह -रह कर बिजली कड़क रही थी। रंजना कॉलेज के गेट से बाहर निकली तभी जोर की गर्जना हुई बड़ी -बड़ी बूँदों के साथ बारिश शुरु हो गई। रंजना  ठिठक गई, ना पीछे जा सकती ना आगे जा सकती,दो राहे पर खड़ी थी सोच नहीं पा रही थी क्या … Read more

 वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी – लतिका श्रीवास्तव

वो सुनहरे बचपन के दिन बरबस ही सजीव हो उठते हैं… जब बारिश की झड़ी लगती है…जगह जगह पानी भर जाता है ..तब मेरा मन अपनी बचपन की उसी टीचर्स कॉलोनी में पहुंच जाता है और उन छोटी छोटी कागज़ की बनाई नावों को ढूंढता है जो मैं बचपन में अपने घर के आस पास … Read more

सांध्य बेला – वीणा

शाम की नीरवता वातावरण में छाई हुई थी। पक्षी दिन भर उड़ने के बाद वापस अपने घोंसलों में लौट रहे थे। सूर्य की लालिमा धीरे-धीरे अंधेरे के आगोश में समाती चली जा रही थी।    इसी शाम के झुरमुट में रागिनी न जाने कब से तन्मय का इंतजार कर रही थी। कलाई घड़ी देखते- देखते वह … Read more

हमकदम – बरखा शुक्ला

नेहा के ससुराल में आज उत्सव सा माहौल था । किचन से व्यंजन बनने की ख़ुशबू सारे घर में फैल रही थी ।और हो भी क्यों न उसकीननद सीमा को देखने लड़के वाले आ रहे थे । पढ़ी लिखी सीमा दिखने में भी खूबसूरत है , लड़का भी अच्छी नौकरी में है ।फ़ोटो देख उन्हेंसीमा … Read more

जरा सी परवाह – नीरजा कृष्णा

वो बेटी दामाद के बहुत बुलाने पर उनके घर आई हुई थीं। बहुत संकोच में रहती थीं…भला कोई कितने दिन बेटी के घर आसन जमा सकता है। दामाद विवेक को समय मिलने पर घर के कामों में वीनू की मदद करते देख बहुत अजीब सा लगता था। उस दिन  विवेकजी की छुट्टी थी। वीनू ने  … Read more

काली पन्नी – कंचन श्रीवास्तव

***”””””””****** एक टक घोंसले को  निहारते हुए बेटे ने रीमा से पूछा , अम्मा चिड़िया घोंसला क्यों बनाती है तो उसने कहा बेटा हर मौसम तो बाहर रह कर गुजार सकती है पर……..।इतने में राजू ने आवाज लगाई अम्मा देखो ना यहां भी आखिर हम कहां जाएं ,कुछ समझ नहीं आता। उसी में मिलती जुलती … Read more

बावड़ी की चुड़ैल – गरिमा जैन

सुधीर गाड़ी स्टार्ट नहीं होगी भीग भीग कर तबीयत खराब हो जाएगी ।इतनी रात में कोई मैकेनिक भी नहीं मिलेगा। सुधीर : लता तुम ही बताओ क्या कर सकते हैं? एक तो ऐसा इलाका ,ऊपर से शिमला की ठंड । लता : इलाका ओ कम ऑन सुधीर! तुम भी क्या उन बेकार की कहानियों पर … Read more

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