जीवन साथी के प्यार में ताक़त होती है – के कामेश्वरी

राघवेंद्र और अलवेलु साठ साल से अपना जीवन साथ गुज़ार रहे थे । कल रात अलवेलु की तबियत अचानक बिगड़ गई थी । राघवेंद्र ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया बच्चों को सूचित कर दिया ।सब आ गए पर अलवेलु आँखें नहीं खोल रही थी । बाहर बैठे राघवेंद्र सोच रहा था कि जब से … Read more

लिपस्टिक – सपना शिवाले सोलंकी

————- ड्रेसिंग टेबल की सारी दराजें, कई कई बार छान चुकी,कबर्ड देख डाला । टेबल के नीचे ,हाथ घूँसा घुँसाकर , झाड़ू से कबर्ड के नीचे घुमाकर देख लिया, पर दिखाई नहीं दी… आज ही नहीं मिलनी थी ! जिस दिन ज़रूरी हो, बस उसी दिन, बल्कि उसी समय,कभी न मिलती चीज़ें और जब काम … Read more

फ़ूल : गेंदा फूल – सपना शिवाले सोलंकी

——————— हमारे गाँव के घर में बहुत बड़ी बाड़ी हुआ करती थी। बाड़ी में एक कुँआ उससे लगकर एक छोटा सा मकान था जिसमें “फूल” रहा करती थी। ‘फूल’ कोई फूल पत्तियों वाला ‘फूल’ नहीं बल्कि जीती जागती “फ़ूल” थी।बचपन से हम सब उन्हें “फूल” कहकर ही पुकारा करते । दरअसल, गाँव मोहल्ले में लोग … Read more

 ” सौम्या” (मार्मिक रचना) – गीतांजलि गुप्ता

रश्मि की आँखें बार बार दरवाज़े की ओर कुछ ढूंढती हुई चली जाती। कब आएगी, आती क्यों नहीं, आएगी भी या नहीं प्रश्न उसे कचोट रहे थे। सौम्या को गए कई दिन हो गए वह बिना कुछ बोले चली गई तब से रश्मि बिस्तर पर ही है। उदास खोई खोई ठीक से ना तो खाती … Read more

” अटूट बँधन ” – सीमा वर्मा

 यह कहानी ‘चंदेरी’ गाँव की है । जहाँ गाँव के एक किनारे बने तालाब के बगल में बने मंदिर के प्रांगन में साल के सावन महीने में मेले का आयोजन होता है। वहाँ एक विशाल बाग है।  उस मेले की तैयारी बहुत पहले से की जाती है और जिसमें दूर-दूर से घूमने लोग आते हैं। … Read more

 ‘ वो भी तो लाडली है ‘ – विभा गुप्ता 

    ” तो आप क्या कहते हैं चाचाजी, नंदा को विदा करने की इजाज़त दे रहें हैं?” नरेश ने श्यामलाल से पूछा।      ” हर्गिज़ नहीं, इकलौते बेटे की शादी में मेरे कितने अरमान थें, तुमने सब मिट्टी में मिला दिया।रिश्तेदारों और दोस्तों में तुमने मेरी नाक कटा दी और अब एक मोटर साईकिल देने का वादा … Read more

 “सहारा” – राम मोहन गुप्त

भईया, मैं अंदर आ जाऊँ! हाँ आओ न, कहते हुए विनोद ने सुबोध की ओर देखा, जो बंशी को लगातार घूरे जा रहा था। कल ही की यो बात है कि उसने बंशी को घर से भगा दिया था। रोज रोज घर आकर कुछ न कुछ माँगना, दे दूँगा कह कर भी कभी वापस न … Read more

 बहुत दिन हो गये…- गुरविंदर टूटेजा

    अनामिका जी बहुत बड़े बंगलें में वो अकेली रहती थी…एक बेटा है जो विदेश में नौकरी करता है और वही अपनी पत्नी व दो बच्चों के वही का हो गया है…जब गया तो बोला जरूर था साथ चलने का पर अनामिका जी ने इंनकार कर दिया…उन्होनें कहा उनका जो है यही है मैं यही रहूंगी..!!!! … Read more

मेरी देवरानी बड़ी सयानी – रश्मि प्रकाश

मेरे और नेहा के बच्चे दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे।  धीरे-धीरे बच्चों की वजह से हम दोनों में भी दोस्ती हो गई दोस्ती वह भी इतनी गहरी अगर हम शाम को रोजाना आधा घंटा ना मिले तो ऐसा लगता था जैसे हमारा दिन पूरा नहीं हुआ है।  नेहा आज कुछ ज्यादा ही अपने … Read more

“जिम्मेदारी समझदार बना देती है” – अनिता गुप्ता

“दादी ! जल्दी से खाना दे दो। हमारे छत पर जाने का समय हो गया है।” विनीत और विनिता ने एक साथ कहा। ” हां बच्चों ! आ जाओ । खाना तैयार है।” दादी ने नम हुई आंखों को पोंछते हुए कहा। ” ये क्या दादी ? आप का खाना कहां है ?” दो प्लेट … Read more

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