स्नेह की गरिमा – रीमा महेंद्र ठाकुर

गरिमा सुनो  “ सोनम ने पीछे से आवाज, दी” गरिमा ने पलट कर देखा!  सोनम के पैर की एक चप्पल टूट गयी थी!  वो   लगडा कर  चल रही थी!  उसे शायद ठोकर लगी थी” उसका अंगूठा फट गया था!  अरे कैसे लग गयी ” गरिमा दौडकर उसके पास आयी!  गरिमा ने अपने बैग से … Read more

मसाला दोसा: – मुकेश कुमार (अनजान लेखक)

वो ठेले वाला भी ना अजीब है, सुबह-सुबह तो इडली बेचने साईकिल से आता है और शाम होते ही मोहल्ले में ठेला लगा कर इडली-दोसा दोनों बेचता है। पता नहीं ऐसा क्यों करता है, फ़ालतू में झगड़ा करवा दिया उसने। भुनभुनाते हुए योगेश सीढ़ियाँ चढ़ने लगा, शायद छत पर ही अब मन का चिड़चिड़ापन ख़त्म … Read more

दूर के ढोल सुहावने – डा. मधु आंधीवाल

आजकल शौर्य का व्यवहार बिलकुल उजड्ड होता जा रहा था । बात बात पर गुस्सा होना और मां रीना और पापा उमेश से उल्टा सीधा बोलना । रीना और उमेश का अकेला बेटा था शौर्य । एक मध्यम वर्गीय परिवार बस दोनों की तमन्ना थी कि शौर्य अच्छी तरह पढ़ ले किसी अच्छी लाइन में … Read more

*वो लम्हें* – सरला मेहता

धड़धड़ाती ट्रेन की आवाज़ नव्या की धड़कने बढ़ा देती है। वह इस नई जगह आकर अपना अतीत भूल जाना चाहती थी। आफ़िसवालों  को पहले ही ताक़ीद दी थी कि शहर के शोरगुल से दूर उसके लिए फ्लेट ढूंढे। यूँ तो यह कालोनी शांत इलाके में है। किंतु रात के आठ बजते ही ट्रेन के गुज़रने … Read more

छतरी – रश्मि स्थापक

“अम्माँ …तू दवा लेने जा रही है न अपनी…मैं भी आता हूँ।” “नौ बरस का हो रहा है…अब तो अम्माँ का पीछा छोड़…।” दौड़ते हुए आए गोपाला का हाथ पकड़ते हुए अम्माँ बोली। “अम्माँ मुझे …नयी वाली छतरी चाहिए।” अम्माँ के संग तेज-तेज चलता हुआ गोपाल बोला। “क्यों रे… अभी-अभी तो सुधरवाई तेरी छतरी… अब … Read more

बेबी  केसर – विजय शर्मा “विजयेश”

मेजर लक्ष्मण सिंह आज बहुत खुश थे।  दस दिनों की छुट्टियाँ जो मंजूर हो गई थी। कश्मीर की हरी भरी बर्फीली वादियों मे दो साल की कठोर ड्यूटी के बाद अपने घर सवाई माधोपुर  जा रहे  थे। कुछ देर  में  ड्राइवर ने उन्हें एयरपोर्ट  पर छोड़ दिया।  दिल्ली  की फ्लाइट रेडी थी। कुछ ही देर … Read more

मेंहदी तेरे कितने रंग – सुषमा यादव

 मुझे बचपन से ही हरी भरी मेंहदी बहुत आकर्षित करती थी, पर घर और स्कूल में सख्त मनाही थी,, हाथों को रंग बिरंगे कर के जाना,,जब बड़े हुए तो सहेलियों के संग मेहंदी के पौधे से हरे हरे पत्ते तोड़ कर लाते और मां उन पत्तियों को पीसकर अपने और हमारे हाथों में लगाती,,हम अपने … Read more

टैक्स वाली अंतिम यात्रा – संजय मृदुल

अर्थी उठने ही वाली थी कि एक गाड़ी दरवाजे पर आकर रुकी। चार कद्दावर आदमी सफारी पहने हुए उतरे और घर का गेट बंद कर दिया। “किसकी डेथ हुई है यहां।” एक ने कड़कती हुई आवाज में पूछा। जो रोना गाना मचा हुआ था वो तो उनके आते ही सन्नाटे में तब्दील हो चुका था। … Read more

ज़िंदगी का खूबसूरत सफर – के कामेश्वरी

मैं यादों में खो गई थी क्योंकि आज मेरी विकास के साथ शादी के पचास साल लंबे गुजर गए थे ।आज ही के दिन पचास साल पहले हम दोनों शादी के पवित्र बंधन में बंध गए थे । ऐसा लगता है किजैसे कल ही तो हम मिले थे ।हम दोनों ने एक-दूसरे को देखा और … Read more

दिल का रिश्ता – तृप्ति शर्मा

“सुरभि,, नाश्ता ले आओ ,मम्मी मेरे कपड़े,मेरा लंच कहाँ है” रोज  सुबह ऐसा ही शोर होता सुरभि के घर। पति रोहन और बेटा पार्थ रोज अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए ऐसे ही शोर मचाते। सुरभि कभी इधर कभी उधर घूमती हुई उनकी हर जरूरतों को पूरा करती रहती। खुशी के साथ-साथ उसे कभी कभी घमंड … Read more

error: Content is protected !!