इंतजार ” – गोमती सिंह

–मार्च का महीना था। रात के लगभग 9 बज रहे थे । सर्दी विदा ले चुकी थी।  अत: धीमी गति से पंखा चल रहा था।         नीरजा औंधी लेटी हुई अपनें पति देव के आने की राह देख रही थी।  इस तरह कुछ बीते हुए बातों के बारे में सोचते हुए उसका मन अतीत में चला … Read more

गरीबी – मीना माहेश्वरी

   आज घर में बड़ी रौनक थी । गुप्ता जी के बड़े बेटे के सुपुत्र की प्रथम वर्ष गांठ थी। बड़ा अयोजन रखा गया था। सभी नाते रिश्तेदार आए थे। मानस का अखंड पाठ। चल रहा था।  गुप्ताजी की छोटी बेटी  कामिनी अपने दोनों बच्चों के साथ  आई थी।बड़ा बेटा हार्दिक 8साल का था और बेटी … Read more

ज़िंदगी मिलेगी दोबारा – रश्मि स्थापक

“कुछ भी कहो कर्नल…चमक रहे हो आजकल…भई बात क्या है?” कहते हुए नरेंद्र ने जोरदार ठहाका लगाया। ये दोनों सेवानिवृत्त दोस्तों की सुबह की सैर की बातचीत थी। “अरे यार ….तुम भी अच्छा मज़ाक करते हो …इस पचहत्तर की उम्र में अब क्या चमकेंगे और तुम्हारी भाभी के बाद तो जैसे सब चला गया।” “वो … Read more

हौसला एक पिता का – अनुपमा #लघुकथा

बहुत सुदूर प्रकृति की गोद मैं एक छोटा सा गांव था ,बहुत ही दुर्गम पहाड़ी इलाका था , वहां तक पहुंचने के लिए ही आठ दिन लगते थे वो भी पैदल पक्की सड़क से , हर वक्त बारिश और ठंड हो रही होती थी वहां। जब पूरे देश मैं लॉक डाउन हुआ तो वहां की … Read more

मासूम चीख…….. नीरजा नामदेव

मुनमुन बहुत ही शांत प्रकृति की बच्ची थी।वह नौवीं कक्षा में पढ़ती थी। उसके माता-पिता सुकेश और सुजाता नौकरी करते थे। जब मुनमुन का जन्म हुआ था तब तो दोनों बहुत ही खुश थे। जैसे-जैसे मुनमुन बड़ी होती गई उसे माता-पिता की बातें कुछ कुछ समझ आने लगी थी। सुकेश और सुजाता के बीच हमेशा … Read more

एक पिता ऐसे भी –  लतिका श्रीवास्तव #लघुकथा

……शादी की धूम धाम समाप्ति पर थी,मुझको  दो दिन हो गए थे ससुराल में आए हुए सुबह से लेकर शाम रात तक बहु देखने और मिलने वालों का तांता लगा हुआ था…अभी तक तो मैं अपने इस नए घर अपनी ससुराल के सभी कक्षों से ही परिचित नहीं हो पाई थी तो फिर घर के … Read more

बसेरा – वीणा

सुबह से ही हॉस्टल के दो चक्कर लगा चुका था वह,पर कमरे के दरवाजे पर लगा ताला मानो उसे मुँह चिढ़ा रहा था। चौकीदार से भी वह दो तीन बार पूछ चुका था। आखिर में कहाँ गई ज्योति? रह रह कर सूरज के मन में एक ही बात आ रही थी।कल शाम तक तो उसने … Read more

अब आप ही मेरे पिता हैं – नीरजा कृष्णा #लघुकथा

उसने धीरे से दरवाजा खोल कर देखा। रामेश्वर बाबू…. उसके ताऊ जी….गहरी नींद में थे। एकदम क्लांत चेहरा… घोर थकावट और दुख की गहरी छाया उनके चेहरे पर बिखरी हुई थी। एक बार तो उसे लगा…ना उठाया जाए…सो लेने दिया जाए पर घड़ी पर निगाहें गई तो….अरे शाम के चार बज गए थे,” ताऊ जी! … Read more

आपबीती , एक, पुरूष की – प्रीती सक्सेना

  कहानी के आरंभ के पहले ही बताना चाहूंगी,,   ये आपबीती है एक,, पुरूष की,, जिसने मैसेंजर के माध्यम से मुझ तक पहुंचाई है,,, मुझसे, न्याय की उम्मीद रखी है,,, उम्मीद है,, जस की तस लिख पाऊंगी। गरीब माता पिता की सन्तान,,, थोड़ी सी खेती, खाने वाले ढेर,, भर पेट खाना, और पेट भरना, किसे कहते … Read more

मैनेजर – भगवती सक्सेना गौड़ #लघुकथा

मैनेजर नाम का मजदूर दीवाली की सफाई बड़े मन से कर रहा था। रश्मि अकेली घर पर थी, दोनो बेटे दिल्ली में कार्यरत थे, दीवाली में सबके आने का कार्यक्रम था। थोड़ी थोड़ी देर में आकर काम का मुआयना कर लेती थी, अचानक उसकी नजर गयी,  मैनेजर बड़े ध्यान से टेबल पर रखी अश्विन संघी … Read more

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