“तितलिया”-पूनम वर्मा

एक दिन रजनी अपनी चार साल की बेटी काव्या को डांट रही थी । मैंने कारण पूछा तो उसने कहा,  “काव्या अपने स्कूल में कुछ बोलती नहीं । और बोलेगी भी कैसे ? इसे तो सिर्फ भोजपुरी आती है । हिंदी तो बोलती ही नहीं ।” “तो क्या हुआ ? बच्चे को अपनी मातृभाषा का … Read more

जयंती -पुष्पा पाण्डेय

कभी जिन्दगी इस तरह एक इंसान से परीक्षा ले सकती है, विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है। जयंति न किसी चलचित्र की नायिका थी और न ही किसी नाटक का किरदार निभा रही थी। वो एक छोटे शहर के जमींदार घराने में जन्मी सीधी-सादी पति का हाथ पकड़कर सड़क पार करने वाली सामान्य सी खूबसूरत महिला … Read more

पश्चाताप – विनय कुमार मिश्रा

मैं लेटा हुआ था कि तभी आहट सुन आँख खुल गई। लेटे लेटे अधखुली आंखों से देखा तो घर की सहायिका राधा की पांच साल की बिटिया थी। राधा अक्सर इसे लेकर ही आती है। उसका कोई है नहीं, शायद इसलिए। ये चुपचाप अपनी माँ के ही इर्द गिर्द रहती है। इधर कुछ दिनों से … Read more

स्वाभिमान – विनय कुमार मिश्रा

“पापा! जरा जा कर देखिए, बाथरूम से लेकर हॉल तक का, क्या हाल हुआ है” ऑफिस से घर पहुंचा ही था कि बेटा लिफ्ट के पास ही मिल गया “क्यों.. क्या हो गया?” “आपने उन्हें यहां रुकने को ही क्यों बोल दिया पापा? आप उन्हें कल ही भेज दीजिए..प्लीज” “बेटे बस हफ्ते दस दिन की … Read more

“आत्मविश्वास ” -रंजना बरियार

आज तलाक़ की अर्ज़ी पर सम्मानित न्यायाधीश के व्यवहार न्यायालय इजलास में अंतिम जिरह होनी है । अवनीश और मृदुला आमने सामने खड़े हैं ।अवनीश के चेहरे से उसके ऊँचे पद का दम्भ टपक रहा है..मृदुला भी चुपचाप एक विश्वास के साथ खड़ी है। अब तो जो होना था वो हो चुका, अब पीछे मुड़कर … Read more

अंतरंग रिश्ता” -रंजना बरियार

हमारी अंतरंग सहेली सुनीता के घर में प्रकाश जी ने किराए पे एक कमरा ले रखा था।उन्होंने हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर किया हुआ था।यों तो कविता,ग़ज़ल, कहानी उनकी जान थी, पढ़ते भी, लिखते भी! पर ज़िन्दगी जीने के लिए तो पैसे कमाने होते हैं,सो उन्होंने व्यवहारिक कदम उठाते हुए भिन्न भिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी … Read more

नई माँ-रीटा मक्कड़

कितना खुश था रवि उस दिन जब उसको पता चला कि उसके पापा उसे लेने आ रहे हैं।उसकी दादी ने उसको बताया अब वो शहर में ही रहेगा। दो साल से उसको दादी दादू के साथ गांव में रहना पड़ रहा था। हालात ही कुछ ऐसे हो गए थे। दो साल पहले रवि की मम्मी … Read more

“परिचय” -ऋतु अग्रवाल

  मेरी कक्षा में एक लड़की थी। उसका नाम था- प्रतिष्ठा। पढ़ने में बहुत होशियार, समझदार और साथ में व्यवहार कुशल भी थी परंतु उसकी सब काबिलियत पर एक चीज भारी पड़ती। वह था उसका बहुत ही पक्का रंग। कक्षा में सदैव द्वितीय या तृतीय स्थान पर आती। सभी टीचर उससे बहुत खुश रहती थीं। सभी … Read more

राहजन ——— रवीन्द्र कान्त त्यागी

एक गाँव था। छोटा सा प्यारा सा। बैलों के गले में बजती घंटियाँ और हरवाहे की हुर्र हुर्र की ध्वनि से अरुणिम अंगड़ाई लेता गाँव। दिल के ऊपर कुर्ते की जेब से विपन्न और कुर्ते की जेब के नीचे दिल से सम्पन्न गाँव। फटी कमीज के दोनों कौने पकड़कर नंग धड़ंग खेतों में हगने जाते … Read more

मेरा प्यारा दोस्त – कुसुम पाण्डेय

आज फिर उसकी याद आ गई बचपन के दिन थे, मेरी उम्र रही होगी तकरीबन 14 साल, एक ही क्लास में पढ़ते थे हम दोनों ,बहुत ही होशियार था वह, क्या कहूं उसके बारे में बहुत ही होशियार और शरारती भी,गणित तो जैसे उसके बाएं हाथ का खेल था ,और ईश्वर की कृपा से मैं … Read more

error: Content is protected !!