सुनीति अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी। बड़े लाड़ -प्यार से पाला था। माता -पिता की आँखों का तारा। कभी कोई दुख की छाया उस पर न पडे़, माँ की हर समय यही कोशिश रहती। पिता बैंक में अफ़सर थे। अतः स्थानान्तरण होते रहते थे। उन्हें समय ही नहीं मिलता। माँ काॅलेज में लेक्चरर , बड़े संघर्षों से माँ ने अकेले ही जिम्मेदारियाँ उठाकर उसे बड़ा किया—-
पढाई -लिखाई में होशियार, पढाई के तुरन्त बाद उसे नौकरी मिल गयी। हँसी -ठिठोली के माहौल में जीवन चल रहा था।
घर में पाने के सिवा कोई बड़ा दायित्व न था उस पर—
चन्द्रमा की कलाओं की तरह सुनीति भी बड़ी हो गयी। चौबीस साल की उम्र में सुयोग्य वर देखकर उसका विवाह कर दिया—।
तीन ननदों में बहन की प्रतिच्छवि देख माँ ने रिश्ता तय किया था। पर वहाँ सास के ताने उसे रात दिन कष्ट देते। सास बीमार रहती थीं, सेवा सुश्रूषा के साथ पूरी तीमारदारी–
जयपुर से बंगलौर की दूरी, चाहकर भी माँ के पास आना असम्भव। भाई बहन के अभाव में सारे दुख माँ को बताती।
माँ के पास धीरज बँधाना के सिवाय और कुछ न था–
सब अकेले सहना। पति भी माँ का अंधभक्त, कभी खुलकर कुछ नहीं बोलता ।ननदों का अतिरिक्त हस्तक्षेप उसे दो घड़ी सुकून से रहने न देता। माँ को कुछ बताती, वो भी परेशान रहती। समस्याओं का कहीं अंत नहीं।
एक दिन पता चला कि वह गर्भ से है। ससुराल में कोई अच्छा खान -पान नहीं मिलता।आसानी से प्रसव हो जाये, इसलिए घर का काम झाड़ू पोछा आदि—
छठे महीने में टाइल्स साफ करवाना, आदि समस्याओं का आदमकद रूप।
रोती, परेशान होती, पर सुनीति ने हिम्मत नहीं हारी।
साल में ही एक बेटी हो गयी, उसका पालन.- पोषण सास की सेवा सतत संघर्षरत।
नौकरी करने की कोशिश की, किंतु बच्चे की देखरेख के लिए सास ने बाई न रखने दी। हम देख लेंगे, पर जब शाम को सुनीति घर आती, बच्चे को फुटमैट पर बैठे देख दिल छलनी छलनी हो जाता। डायपर भी शू शू से भरा—
क्या करे, क्या न करे।
बोलने की हैसियत नहीं, ज़रा सा बोलने पर कुहराम हो जाता।
परेशान होकर आखिर में उसने नौकरी छोड़ने का विचार किया।
कॉरोना के समय सास को कॉरोना हो गया। शूगर पाँच सौ पहुँच गयी। अथक प्रयासों के बावजूद उन्हें नहीं बचा पाये मृत्यु के पश्चात कॉरोना जैसी छूत की बीमारी होने पर भी बहू के फर्ज़
निभाने में सुनीति ने कोई कमी नहीं की—
पति और ननद दोनों अस्पताल में भर्ती, बच्ची छोटी, उसे माँ के पास छोड़ तन -मन -धन से समर्पित।देखरेख में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी। दोनों को स्वास्थ्य लाभ हुआ।
आज माँ सेवानिवृत्त हो गयीं। तो
माँ -बाप की सेवा, आदि समस्याओं से जूझना। फिर दूसरी बेटी साढे छः महीने में हो गयी।उसकी पूरी देखभाल के साथ बड़ी बेटी को पढाना। पति को भी मधुमेह रोग, उनका अलग से ध्यान रखने के साथ स्वयं को तो भूल ही गयी सुनीति,
जिम्मेदारियों का कहीं कोई अंत नहीं। आज कहीं कोई अंग दुखता,कभी कोई दूसरा। कुल मिलाकर जीवन समस्याओं का केन्द्रीभूत रुप हो गया सुनीति का।
डाॅ कंचना सक्सेना
प्रोफेसर एवं पूर्व प्राचार्य,
राज वाणिज्य कन्या महाविद्यालय, कोटा (राज)