जिम्मेदारी – सरोज देवेश्वर : Moral Stories in Hindi

       वह तेज कदमों से बसस्टॉप की ओर बढ़ रही थी. आज उसे ऑफिस में ज्यादा देर  तक रुकना पड़ा. अभी बसस्टॉप तक पहुंची  ही थी कि शहर कि बत्ती गुल हो गई. घुप्प अंधेरा छा गया सड़क सुनसान और डरावनी प्रतीत हो रही थी. कुछ देर में उसने गौर किया, सड़क  पर चहल पहल भी कम हो रही है बस भी नही  आ जा  रही. टैक्सियाँ भी भरी हुई आ रही हैँ.

                    शाम तक उसने सारी फाइलें समय पर निबटाने कि कोशिश कि परन्तु वक़्त ज्यादा लग गया. सुबह बॉस को सारी फाइलें लेकर टूर पर जाना अतः ताल भी नहीं सकी. बॉस ने उसे आश्वस्त किया था कि कर से उसे घर ड्राप कर देंगे. परन्तु किसी जरूरी काम से उन्हें देर तक रुकना पड़ा और वो लिहाजवश कुछ  कह भी न पाई.

                 उसे क्या पता था परिस्थियाँ कुछ और ही मोड़ ले रही हैँ. फिर शहर में वो नई हैँ. तय समय पर सबके साथ ऑफिस से निकल बस पकड़ लेती थी. आज अँधेरे में अकेली खड़ी हैँ समझ नहीं पता रही आखिर बस क्यों नहीं आ रही ना ही कोई  टैक्सी. इसी उधेड़बुन में थी कि हाथ में मोबाइल पकडे जिसकी लाइट जल रही थी दो लड़के चले आ रहे थे,  घबराकर ऐसक्यूज मी कहकर वो उनके सामने पहुंच गई. अपनी समस्या बताई लोकल ट्रेन के लिए स्टेशन का रास्ता पूछने लगी. पूछा tho लिया एकाएक उसके दिमाग में बुरा सा ख़याल आया कही ये लड़के गलत हुए तो?

                 चेहरा तो अंधेरे कि वजह से साफ नहीं देख पाई थी लड़के समझ गए कि लड़की शहर में नई हैँ और रास्तों से अनजान हैँ. एक बोला मैडम आपको पता नहीं आज ग्यारह बजे से ही बसों की स्ट्राइक हो गई हैँ. सुनते ही उसकी हालत ख़राब हो गई. लड़के शरीफ थे क्योकि दूसरे लड़के ने कहाँ आप इसके साथ जाये ये उसी तरफ जा रहा हैँ. ऐसा कह मित्र से अलविदा कह वो बाई ओर मुड़ कर एक गली में मुड़ गया. अब उसके पास विश्वास करने के अलावा कोई चारा नहीं था.

                  वह उसके पीछे पीछे चल पड़ी लाइट अभी तक नहीं आई थी. सामने से आते कुछ लोगों की बातचीत उसके कान में पड़ी उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई. पता चला कोई ट्रेन पटरी से उतर गई हैँ इसलिए ट्रेन बंद हैँ. मौसम में ठंडक होने के बावजूद उसके पसीने छूट रहे थे. अब क्या होगा? लड़के ने कहा आप हो सके तो घर से किसी को बुला लीजिये. सुनते ही उसकी आखों में आँसू आ गए. उसके घर माँ और छोटी बहन के अलावा कोई भी नहीं हैँ.

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               उत्तर न पाकर लड़के ने कहा अगर आपको ऐतराज न हो तो आप मेरे घर चल सकती हैँ अगर टैक्सी मिल जाती तो मै आपको घर छोड़ आता.

लड़की उधेड़बुन में ही धीमेधीमे    ..                क़दमों से उसके पीछे पीछे चल पड़ी. कैसे  किसी अजनबी पर विश्वास किया जा सकता हैँ. अब तो  कोई चारा  भी  न था , अब तो बॉस भी शायद जा चुके होंगे.

                        कुछ दूर जाकर एक नाला था जिसे अँधेरे की वजह से और साथ ही उस पर पार जाने के लिए जो पुलिया बनीं थी,  बेहद कमजोर थी, उसे पार करना मुश्किल लगा. लड़के ने मोबाइल की रोशनी की और अपना हाथ आगे  बढ़ाया उसने सिर नीचा किये ही झिझकते हुए हाथ पकड़ लिया जब वो लड़खड़ाने लगती  तो कसकर हाथ पकड़ लेती. लड़का बुदबुदाया पिकी भी गिरने लगती थी,  तो मुझे ऐसी ही कसकर पकड़ लेती थी.

                   अब वो नाला पार कर चुके थे. एकाएक वो बोली ‘भैया ‘. अब उसनेलड़के  की बाँह कसकर पकड़

लीं. मन में फैले प्रकाश की भांति अँधेरे को चीरकर बत्तियाँ जल चुकी थी. एक पल को लड़का फटी आँखों से उसे देख रहा था बोला पिंकी तुम ! उसने  लपककर भाई

के गले में बाहें डाल दीं. उसके सीने से लग सुबक सुबककर रोने लगी. भैया कहाँ चले गए थे. आपको क्या पता आपके  इस तरह नाराज़ होकर  चले जाने पर हम सब पर क्या बीती . पिताजी भी नहीं रहे.

                    वो अनवरत बोलती जा रही थी और अमित सिर झुकाये सब सुन रहा था. भैया माँ के बारे में सोचो जिसका जवान बेटा कहीं चला जाए और सिर से पति का साया भी उठ जाय. वो तो बुरी तरह टूट चुकी है.

मुझे ये नौकरी मिली तो शहर भी बदला. लेकिन माँ आज भी सूनी आँखों से बेटे की रह देख रही है.

             अमित ने प्यार से पिंकी के सिर पर हाथ फेरा और बोला पगली अब क्यों रो रही है. ईश्वर ने हमें संयोग से मिला दिया, वरना मुझे आज किसी काम से शहर से बाहर जाना था. दोनों  की आँखों में ख़ुशी के आँसू थे. अब मै नौकरी में अच्छा कमा रहा हूँ केवल सहारा नहीं पूरी जिम्मेदारी उठा सकता हूँ. चलो स्टेशन की तरफ चलते हैं शायद कोई टैक्सी  मिल जाए या ट्रेन चल पड़ी हो.

          आकाश में चाँद भी  पूरी चमक के साथ अपनी चांदनी बिखेर  रहा था, मानो प्रकृति भी उनके जीवन को प्रकाशित करने में पूरा साथ दे रही थी. दोनों नए उत्साह नये विश्वास के साथ तेज़ क़दमों से स्टेशन की ओर बढ़ रहे थे.

सरोज देवेश्वर

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