जरूरत – लतिका श्रीवास्तव

रमिया क्या कर रही है कब से पुकार रही हूं जल्दी से बर्तन धोकर दे  साहब का लंच भी तो बनना है ।तू है तो सुन ही नहीं रही है मालिनी जी ने पीछे वाले आंगन में तेजी से घुसते हुए जोर से कहा तो देखा रमिया अपने जिद मचाते सुबकते तीन वर्ष के पुत्र को पुचकार रही थी जा राजू बाहर जाकर खेल ले थोड़ी देर भूख दब जाएगी।आज घर में कुछ राशन नहीं था क्या पकाती तेरे लिए।अभी काम कर लूं फिर मेम साब से उधार मांगूंगी कहते उसकी आँखें भर भर आ रहीं थीं जिन्हें वह मालिनी जी को आते देख फुर्ती से पोंछने लगी थी।

मालिनी जी कुछ कह ना सकीं चुपचाप रसोई घर में आ गईं।थोड़ी ही देर में रमिया बर्तन धोकर ले आई।

मालिनी जी ने फुर्ती से रोटियां बनाईं।पहले गाय के लिए बनाना बहू सासू जी की आवाज को अनसुना करती वह पुकार उठीं राजू जल्दी यहां आ इसको ले जा मां के साथ बैठकर खा ले उन्होंने खेलने के लिए बाहर जाते राजू को रोका और प्लेट बढ़ा दी जिसे देख राजू की आँखें चमक उठीं।

मां ये मेमसाब बहुत अच्छी हैं मै तो आज बहुत दिनों बाद पेट भर के खाया हूं तू भी खा ना मां राजू मां को खिला रहा था हंस रहा था साथ में रमिया भी ।हां बेटा मेमसाब बहुत अच्छी हैं कहती उसकी आँखें फिर भर आईं थीं।

मालिनी जी इन धीमी आवाजों को सुन रहीं थीं। आँखें भर आईं थी उनकी।सोच रहीं थीं अब से रोज गाय की रोटी से भी पहले रमिया और राजू के लिए रोटियां बनाऊंगी ज्यादा जरूरत उन्हें है।

आंख भर आना#मुहावरा आधारित लघुकथा

error: Content is protected !!