कैसे जाहिल लोग हैं पढ़े लिखे हैं की गवांर है। अरे क्या हो गया आज फिर क्यों सवेरे सवेरे बड़बड़ किये जा रहे हो पुष्पा जी ने पति अरुण जी से पूछा। अरे क्या बताऊं देखो तो सब जगह पानी की कितनी त्राहि त्राहि मची है और लोग बिना मतलब की पानी बर्बाद करते रहते हैं ।
अरे तो आपको क्या परेशानी हो रही है पुष्पा जी बोली।अरे कैसी बात करती हो तुम भी, क्या जाहिल गंवार हो ।हवा पानी रोशनी पेड़ पौधे सब प्रकृति के दिए हुए वरदान है हम मनुष्य के लिए ।इनका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए ।
नहीं तो यह सब हमसे बदला लेती हैं। मुझे याद है मेरी दादी कहा करती थी बचपन में बेटा प्रकृति की दी हुई किसी भी नेमत को हमें बर्बाद, दुरुपयोग नहीं करना चाहिए ।नहीं हमें ये श्राप देती है । प्रकृति भी गुस्सा निकालती है कभी भूस्खलन,कभी सुनामी तो कभी आंधी तूफान के रूप में हम पर अपना गुस्सा निकालती है।फिर हम हम पैसा खर्च करके भी उन्हें खरीद नहीं सकते हैं ।
यह अनमोल होती है। निशुल्क होते हुए भी बहुत ही कीमती होती है । इनके बिना हमारा जीवन संभव नहीं है। अभी करोना समय पर तुमने देखा था ना ऑक्सीजन की कीमत ।तो देख लो अरुण जी ने पत्नी पुष्पा को समझाते हुए कहा। समझ रही हूं मैं आपकी बात लेकिन किसी को हम कैसे समझ सकते हैं यह बात। हां वह तो है लेकिन प्रयास तो कर सकते हैं ना।
65 साल के अरूण और 60 साल की पत्नी पुष्पा जी एक अच्छी कॉलोनी में अपना घर बनवा कर रहते थे। दो बच्चे थे दोनों बाहर थे यहां पति-पत्नी अकेले रहते थे। अरुण की नौकरी से रिटायर हो चुके थे ।नौकरी जब थी तब वह सुबह के सैर को नहीं जा पाते थे ।लेकिन जब से रिटायर हुए हैं सुबह-सुबह घूमने जाते हैं ।
अरुण जी प्रकृति द्वारा दी हुई नेमत को बहुत सत्कार करते हैं ।और चाहते हैं दूसरे लोग भी करें। और समझे इस बात को की किसी भी चीज को बर्बाद ना करें ।अरुण जी सुबह-सुबह जब सैर को निकलते हैं तो अक्सर देखते कि किसी के घर का नल खुला है जो बाहर है पानी बर्बाद हो रहा है ,या कोई जबरदस्ती पानी को फालतू में बहा रहा है।
उनको बहुत बुरा लगता था। वह अक्सर खड़े होकर नल को बंद करने लगते थे। या कहते थे बेटा फालतू पानी मत बढ़ाओ ।और कहीं-कहीं तो चौराहों पर जो सार्वजनिक नल लगे होते थे वह बंद ही नहीं होते थे। दिन रात पानी बहता रहता है तो वह विभाग को उसके लिए नोटिस लिखकर भेजते थे ।
अरुण जी की कॉलोनी में उनके घर के सामने एक परिवार रहता था। वह हर दूसरे दिन अपनी गाड़ी धोते रहते थे, और दो-दो घंटे तक पानी बहाया करते थे। एक दिन अरुण जी से देखा नहीं गया तो उन्होंने सामने रहने वाले सुनील दुबे को टोक दिया कि आप इतना पानी क्यों बहाते हैं ।तो कहने लगे आपको क्या परेशानी है, यह तो हम अपना पानी बहा रहे हैं आपको क्या परेशानी हो रही है। अब बताओ जाहिल गंवार है अपना पानी बहा रहे है ।अपना पानी कहां से लेकर आए हैं । यह तो सब प्रकृति की दी हुई चीज है उनका अपना पानी कहां से हुआ है ।
और उन्हीं के पड़ोस में एक और फैमिली रहती है वह मई जून की गर्मी में दोपहर 2:30 बजे पाइप लगाकर सड़क को भिगोने लगते हैं ।इतनी गर्मी में दोपहर में सड़क भिगोने का क्या मतलब है ।
अरुण जी ने उनको भी टोका, इतना पानी बहा देते हैं इतनी गर्मी में भी शाम तक पानी सूख नहीं पाता था। उनका तो चलो मानते हैं कि उनके घर में कोई पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन पढ़े-लिखे लोग ऐसा करते हैं तो अरुण जी को बहुत गुस्सा आता है। अरुण जी कहते हैं यह तो नई कॉलोनी विकसित हुई है इसलिए पानी की कोई दिक्कत नहीं है।
नहीं तो आप शहर के पुराने हिस्से में जाइए और देखें वहां क्या हाल है ।लोग एक-एक हैंडपंप पर कितनी कितनी लंबी लाइन लगाकर खड़े हैं ।एक ही हैंडपंप से 30 35 परिवार पानी भर रहा है ।और आखरी में एक दिन वह भी हांफने लगता है ।फिर टैंकर आने लगते हैं ।और जब एक दो दिन किसी कारण वश नलों में पानी की सप्लाई नहीं हो पाती तो लोग हाहाकार मचाने लगते हैं।
जाहिल पन तो है ही यह सब ।जाहिल पन नहीं तो और क्या है। लेकिन आप सबको कैसे समझा सकते हैं पानी को बर्बाद ना करें। इसकी भी शिक्षा देनी पड़ेगी एक-एक मनुष्य को ।अरुण जी गुस्सा होते हैं पत्नी से बार-बार कहते हैं ।
लेकिन किसी एक को बदलने से तो कुछ नहीं बदल जाएगा सब कुछ। यह तो सब मिलकर समझना पड़ेगा की प्रकृति का दोहन ना करें ।उसकी दी हुई नेमत को बर्बाद ना करें। नहीं तो यह तो तय है विश्व में तीसरा युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जाएगा ।इसलिए यह जाहिल पन न दिखाएं और समझदार बने ।यह आपका अपना पानी है ऐसा कुछ नहीं है। ऐ सब प्रकृति का दिया हुआ है उसकी कद्र करें ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश