ये मेरा अधिकार है – मंजू ओमर 

बहू , बेटा हर्षिता सुबह-सुबह की सैर करके आ गया हूं।आज कुछ ज्यादा ही दूर चला गया था, बहुत थक गया हूं , मुझे एक कप चाय और नाश्ता दे  दो बेटा। बहुत जोर की भूख भी लग रही है। सन्तोष जी के आवाज़ देने पर भी कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने दोबारा आवाज दी, फिर भी कोई जवाब नहीं मिला।इतने में बहू हर्षिता बाथरूम जाती हुई दीखी तो सन्तोष जी ने फिर आवाज़ लगाई बेटा हर्षिता मुझे चाय नाश्ता दे दे बेटा।

इतना सुनना था कि हर्षिता बिफर पड़ी क्या है पापा जी आपको तो जरा भी चैन नहीं है। सुबह हुई नहीं कि नाश्ता, नाश्ता करने लगते हो। क्या सुबह पांच बजे से उठकर आपके लिए नाश्ता बनाने लगूं। सुबह-सुबह के नौ बजने वाले हैं बेटा इसको तुम सुबह-सुबह कह रही हो। जानती तो हो मैं सुबह टहलने जाता हूं

और शुगर का मरीज हूं ,टहल कर आओ तो बहुत जोर की भूख लगती है।और इस उम्र में जल्दी से कुछ न मिले खाने को तो दिल घबराने लगता है। अच्छा अच्छा ठीक है, अभी जब बिट्टू के लिए और उसके पापा के लिए नाश्ता बनाऊंगी तो आपको भी दे दूंगी, बैठे रहिए अभी।

सन्तोष जी के साथ इधर कुछ दिनों से अक्सर ही ऐसा होने लगा था। लेकिन जब टहलकर आते और नाश्ता बनाने में देर लगे तो भुने हुए चने खा लेते थे ।सो उठकर रसोई में गए कि चने ही खा लेता हूं तब तक। जाकर देखा तो डिब्बे में चने खत्म हो गए थे, बेचारे मन मारकर बैठ गए।

                 लेकिन फिर देखते देखते साढ़े दस बज गए और बहू कमरे से बाहर ही न निकली।आज शनिवार था तो बेटे के आफिस की छुट्टी होती है और शायद बिट्टू पोते को भी स्कूल न जाना हो तो नाश्ता बना ही नहीं रहा था।अब बेचारे संतोष जी परेशान हो रहे थे भूख से व्याकुल हो रहे थे बेचैनी बढ़ रही थी।

शुगर के मरीज हैं तो शायद शुगर कम हो रही थी। इतनी दूर घूमकर आए थे और फिर उम्र का तकाजा 70 के आसपास पहुंच रहे थे।अब झुंझला कर सन्तोष जी रसोई में गए और सोचा आज मैं ही खुद दो परांठे बना लेता हूं चाहे जैसे बने। उन्होंने थाली में थोड़ा आटा निकाला ही था

कि हर्षिता आ गई,ये क्या कर रहे हैं पापा जी ,ये रसोई मेरी है और यहां सिर्फ मेरा अधिकार चलता है। रसोई में कब और कितना बनना है ये मैं तय करूंगी। हर्षिता ने अमित को आवाज दिया अमित , अमित जरा इधर आओ और देखो तुम्हारे पापा क्या कर रहे हैं।आटा निकाला कर कितना सारा नीचे गिरा दिया है और प्लेटफ़ॉर्म भी पूरा गंदा कर दिया। सारी रसोई गंदी कर दी मुझे नहीं पसंद ये गंदगी मेरा काम बढ़ा दिया

अब मुझे ही सफाई करनी पड़ेगी।देखो अमित मुझे अपनी रसोई में दखलंदाजी नहीं पसंद। करती तो हूं मैं पापा जी का सब काम खाना नाश्ता सब तो देती हूं तो अब क्या कर रहे हैं रसोई में। इतना सुनना था कि अमित भी चिल्लाने लगा ये क्या कर रहे हैं पापा जी, आपसे हो जाएगा क्या जो करने को लगे हैं। चुपचाप बैठा नहीं जाता क्या आपसे। इतनी भी जल्दी क्या है नाश्ते की जब हर्षिता बनाएगी तो दे देगी ।अरे बेटा साढ़े दस बज गए हैं

इतनी दूर टहल कर आया हूं बुढ़ापा है ,शुगर का मरीज हूं । शुगर कम होने लगती है तो घबराहट होने लगती है ।दो तीन बार मांग चुका नाश्ता जब नहीं मिला तो मैंने सोचा मैं ही कुछ कर लूं अपने लिए जब मेरे लिए कोई कुछ नहीं करना चाहता।मैं तो भुने चने खा लेता हूं अक्सर लेकिन देखा तो आज वो भी नहीं है। सन्तोष जी बोले ।कम से कम जो सामान घर में खत्म हो रहा है उसको लाकर रखो तो।

              मैं देख रहा हूं इधर कुछ दिनों से मेरे प्रति बहुत लापरवाही हो रही है ।समय पर कुछ नहीं मिलता अगर मांगों तो दस बातें सुनाई जाती है। क्या करूं ये लो तुम्हारी रसोई   सब यही धरा है। संभाल लो अपनी रसोई।पर याद रखो ये घर हमारा है तुम्हारा नहीं है।

पर पापा जी आपका था पहले ,अब नहीं है अभी कुछ समय पहले आपने ही हम लोगों के नाम कर दिया है। अच्छा, इतना कहकर संतोष जी घर से बाहर निकल गए और मकान से थोड़ी दूर पर एक चाय का टपरा था वहीं जाकर बैठ गए ।चाय वाले से एक कप चाय और बिस्कुट लेकर खाने लगे।और सोचने लगे ये आज कल के बच्चों को क्या हो गया है।बहू तो बहू बेटे को भी ध्यान नहीं है मेरी उम का और अधिकार की बात करते हैं।वो भी बहू के साथ मिलकर बातें सुना रहा है 

              70 साल के  होने जा रहे हैं संतोष जी ।चार साल पहले पत्नी छोड़कर जा चुकी है ।एक बेटा अमित और एक बेटी सुहाना है ।बेटी बड़ी थी तो उसकी शादी पत्नी के सामने ही हो गई थी । बेटे की शादी अभी दो साल पहले हुई है। संतोष जी का कपड़े का बिजनेस था ।

अभी दो दो साल पहले संतोष जी को हार्ट अटैक आया था तो बिजनेस पूरी तरह से बेटा ही संभाल रहा था । संतोष जी पूरी तरह से रिटायर मेटं की जिंदगी जी रहे थे। अच्छा बड़ा अपना मकान है । जबतक पत्नी थी तब-तक संतोष जी का जीवन बहुत अच्छे से व्यतीत हो रहा था। उनके जाने के बाद वो नितांत अकेले हो गए थे। फिर दो साल पहले बेटे की शादी की तो निश्चित हो गए कि चलो घर गृहस्थी संभालने वाली आ गई है तो कम से कम घर की मेरी चिंता तो नहीं रहेगी।

           संतोष जी के पास दो मकान थे एक वो जिसमें वो रहते थे वो काफी बड़ा था और एक छोटा मकान था जो किराए से उठा था । कुछ समय पहले संतोष जी ने बंटवारे के तौर पर वो मकान बेटी सुहाना को दे दिया था । तभी से बहू हर्षिता संतोष जी से चिढ़ गई थी कि दीदी को तो ससुराल से जो प्रापर्टी मिलेगी

वो उनकी है मायके की क्यों ले रही है। तभी से हर्षिता संतोष जी को बात बात पर टोकने लगी थी उनका काम करने में आनाकानी करने लगी थी।अब हर्षिता ने अमित के कान भरने शुरू कर दिए कि ये मकान पापा जी से अपने नाम करवा लिजिए नहीं तो ये भी न हाथ से चला जाए।

        अमित एक दिन पापा जी से कहने लगा पापा जी अपने जीते-जी इस मकान की रजिस्ट्री मेरे नाम कर दिजिए नहीं तो बाद में बहुत प्राब्लम आती है। संतोष जी को बहुत बुरा लगा बेटा तू तो मुझे जीते जी ही मारे डाल रहा है। नहीं पापा जी आखिर इस मकान पर मेरा और हर्षिता का ही तो हक और अधिकार है न।

हां है तो लेकिन, फिर संतोष जी ने सोचा है तो मेरे बाद इन्हीं का चलो कर ही देता हूं इनके नाम।और उन्होंने कार्रवाई पूरी करके मकान अमित के नाम कर दिया।

बस फिर क्या था मकान बेटे के नाम होते ही बहू बेटे के तेवर बदल गए ।अब हर्षिता संतोष जी का कोई काम समय पर न करती । नाश्ता खाना मांगते तो झिड़क देती अभी बैठे रहिए जब बनेगा तो मिलेगा। संतोष जी कभी कपड़े धुलने को कहते तो बहाने बनाने लगती ।और बात बात में चिल्लाने लगती। संतोष जी परेशान हो गए थे ।

          आज टपरे पर बैठे चार पीते पीते संतोष जी सोचने लगे कि क्या बात हो गई है इधर कुछ दिनों से हर्षिता और अमित कुछ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं हमारे साथ।

कुछ समझ नहीं आ रहा है। दिमाग में जोर डाला तो समझ में आया कि जबसे रजिस्ट्री हुई है मकान की तब से ही ऐसा हो रहा है।वो चाय पीकर घर गए और एक बैग में कुछ कपड़े रखे दवाइयां रखी और मकान के रजिस्ट्री के पेपर भी रख लिए और किसी को बिना बताए निकल गए घर से।

           बेटी के घर पहुंच कर घटी बजाई सुहाना ने दरवाजा खोला ,अरे पापा जी आप। हां बेटा सोचा कुछ दिन तुम्हारे यहां रह लूं । हां हां पापा क्यों नहीं । अभी पापा को आए तीन दिन ही हुए थे कि दामाद आकाश सुहाना से बोलने लगा अरे यार कबतक पापा यहां रहेंगे वहीं तो समझ नहीं आ रहा सुहाना बोली ।

कुछ बहाना बनाकर भेजो उनको अमित के पास ।इधर घर में पापा को न देखकर अमित ने सुहाना को फोन किया तो पता चला कि पापा वहां है ।सुहाना पापा के पास आई वो पापा मैं और आकाश एक हफ्ते को घूमने जा रहे तो आप यहां अकेले कैसे रहेंगे ।मैं समझ गया बेटा मैं शाम को ही चला जाऊंगा।

    शाम को घर से निकल कर संतोष जी बोले चल संतोष न बेटे के यहां जगह है तुम्हारी न बेटी के यहां ।अब क्या करूं सोचते हुए चले जा रहे थे कि सामने एक पार्क दिखा तो वहीं बेंच पर बैठ गए । यहां अमित और हर्षिता पापा की आलमारी खोलकर रजिस्ट्री के पेपर ढूंढने लगे लेकिन नहीं मिला । दोनों का माथा ठनका कहीं पापा अपने साथ तो नहीं ले गए हैं । कुछ उल्टा सीधा न कर दे ।

सुहाना को फोन किया तो पता चला कि पापा यहां से चले गए ।अब तो अमित और हर्षिता को खलबली मच गई । गाड़ी उठाई और निकल पड़े ढूंढने । सुहाना के घर से थोड़ी ही दूर गए थे कि पार्क में बेंच पर पापा बैठे दिखाई दिए । अमित ने गाड़ी रोकी अरे पापा जी आप यहां ,

बिना बताए घर से चले आए दीदी के यहां और अब यहां बैठे हैं।क्यूं करूं बंता के जब तुम लोगों के घर में मेरे लिए कोई जगह ही नहीं है। मुझसे तुम दोनों को परेशानी है तो क्या करूं बता के।चलिए अच्छा घर चलिए। देखो अमित मैं एक ही शर्त पर घर जाऊंगा मुझको सब कुछ समय पर मिलेगा

खाना नाश्ता सब ।और मेरा ध्यान रखा जाएगा। नहीं तो मैं मकान के पेपर से तुम्हारा नाम हटवा दूंगा और ये मकान किसी संस्था के नाम कर दूंगा जो मेरा ख्याल रखेगा।ये मेरा अधिकार है इसको तुम लोग  मुझसे नहीं छीन सकते। आज कल के बच्चे मां बाप को खिलौना समझ ने लगे हैं जैसे चाहे वैसे घुमाते रहे।

अब मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा।मेरा मकान है मैंने बनवाया है और मेरा ही इस पर अधिकार है।मैं जब चाहूं तुम लोगों को निकाल सकता हूं घर से। अच्छा ठीक है पापा जी घर चलिए।

       और जब संतोष जी ने थोड़ी सख्ती दिखाई तो आज घर में ठीक से रह पा रहे हैं। सही किया संतोष जी ने ऐसा ही करना चाहिए ।अब तो की अच्छे कानून बुजुर्गों के लिए बन गए हैं । यदि बेटा बहू अपने मां बाप को ठीक से नहीं रख रहे हैं तो आप उनको घर से निकाल सकते हैं।आज बच्चे बहुत राह भटके गए हैं उनको राह सही दिखाना भी जरूरी है।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

1 दिसंबर 

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