ये बँधन सिर्फ़ कच्चे धागों के नहीं हैं – के कामेश्वरी

शारदा कमरे से अपना और प्रदीप का आवश्यक सामान निकालकर बाहर हाल में एक जगह रख रही थी ।

 प्रदीप ने कहा शारदा इतनी मेहनत क्यों कर रही है…….  इतना समझ लो कि तुम्हें कुछ हो गया तो तुम्हारी मदद करने कोई नहीं आएगा ।

वे हमारे ही बच्चे हैं जी ….. वे साल दो साल में एक बार आते हैं …… उनके लिए इतना भी नहीं करूँ ? आप कुछ भी बोलते हैं ?

उनके आते ही हमारा कमरा उन्हें देना पड़ता है और …….. हमें हॉल में सोना पड़ता है यह मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है शारदा !!!

कोई बात नहीं है …….. आप फिक्र क्यों करते हैं …. दस दिन की तो बात है मैं एडजस्ट कर लूँगी …. और हाँ एक बात मैं आपसे अभी ही कहे देती हूँ …….. आपने मेरे सामने यह कह दिया है ……. परंतु बच्चों के सामने मत कहना उन्हें बुरा लगेगा और वे यहाँ आना बंद कर देंगे। चलिए आप सो जाइए मुझे थोड़े से काम करने हैं …….. उनके लिए स्नेक्स बनाने हैं …… उसकी तैयारी करके मैं भी सोने की कोशिश करूँगी ।

शारदा काम निपटाकर …….. कमरे में पहुँच कर देखती है कि प्रदीप अभी तक जाग रहे हैं …… जब उनसे जागने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि शारदा जब हमने इस घर को बनाया था तब हमारे पास इतने पैसे नहीं थे …… बच्चों की पढ़ाई और ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाते हुए ……. सिर्फ़ एक अपने खुद के घर की लालच में हमने छोटा सा ही सही पर घर बना लिया था ।

आज बच्चे जब तक यहाँ नहीं है ……. सब कुछ ठीक है ….. लेकिन जब वो आते हैं तो हमें अपने कमरे से बाहर निकलना पड़ता है ।

प्रदीप ने हँसते हुए कहा ….. इस बार तो दोनों एक साथ आ रहे हैं …… शायद हमें हॉल में भी जगह नहीं मिलेगी ।

शारदा भी हँसकर जाने दीजिए …… दो हफ़्ते की बात है …… बाद में तो आप और मैं ही तो रहेंगे । इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुई और दोनों बच्चे अपने परिवार के साथ माता-पिता को देखने पहुँच गए …. मेल मिलाप हुआ…… चाय नाश्ता करने के बाद बेटे ने मल्टी विटामिन की दो बोतल लाकर …… माँ के हाथ में थमा दी और कहा माँ मुझे शॉपिंग करने का समय नहीं मिला ……. इसलिए लास्ट मिनट में यह खरीद कर ले आया ।

शारदा ने हँसते हुए उन्हें ले लिया परन्तु मन ही मन सोच रही थी …….. जब से टिकट बुक किया रोज ही फोन पर माँ यह बना देना …….. माँ यह खरीद लेना कहते हुए नहीं थकते थे ……… परंतु माँ के लिए शॉपिंग करने का समय नहीं मिला यह सुनने में अच्छा नहीं लग रहा था खैर!!

उसी समय पीछे से बिटिया आकर गले लगकर बोली ……. भैया माँ के लिए हमारा आना ही बहुत बड़ा गिफ़्ट है ……. वैसे मैं इन दोनों के लिए आई पेड खरीद कर लाई हूँ।

शारदा ने कहा हम लोगों को इन सब की क्या जरूरत है …….हम तो उपयोग करना भी नहीं जानते हैं । वैसे भी पिछले साल तुमने पिताजी को जो आई फोन दिया था वह अब भी ऐसे ही पड़ा है ।

उसी समय नाती ने कहा माँ यह तो हमारे पुराने आई पेड हैं और आप उन्हें नया है बताकर नानी को दे रही हैं ।

बिटिया का चेहरा उतर गया कि उसकी पोल सबके सामने खुल गई है । उसने अपने आपको सँभाल कर कहा ….. अरे ! तुम भी इस पर ये दोनों प्रैक्टिस करेंगे तो अगले साल नया दिला देंगे ।

बहू , बेटी दोनों को शॉपिंग से फुरसत नहीं मिल रही थी । शारदा ही समय पर उनके फ़रमाइशों के अनुसार सबको खाना बनाकर खिलाती जा रही थी।

एक दिन शारदा पूरा दिन काम करके थक गई थी रात को सोफे पर नींद नहीं आ रही थी लेकिन वह बिना रुके बिना थके काम करती जा रही थी । उस दिन कमरा खाली था बच्चे शापिंग करने गए थे सोचा अपनी पलंग पर लेट कर कमर सीधी कर लेती हूँ पर लेटते ही थकान से चूर शरीर की आँखें लग गईं ।

जब बहू बेटी शॉपिंग से घर पहुँची और शारदा को बिस्तर पर लेटा हुआ देख बहू ने कहा देखो सुजाता तुम्हारी माँ बिस्तर पर कैसी सो रही है …….. मेरा सारा सामान बिखरा पड़ा है मेरी ज्युलरी भी वहीं है …… कुछ मिस हो गया और मैं कुछ बोलूँ भी तो तुम्हारे पिताजी को मुझे कुछ कहने का मौका मिल जाता है…….  पिछली बार ऐसा ही हुआ था मैं जाते समय चिकचिक पसंद नहीं करती हूँ ।

सुजाता माँ को उठाने आए ……..उसके पहले ही शारदा उठकर सारी कहते हुए बाहर निकल गई ।

अब बच्चों के जाने का समय आ गया था ……..पंद्रह दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला हाँ यह बात अलग थी कि एक दिन भी……..वे शारदा या प्रदीप के पास दो मिनट बैठकर बातें नहीं की थीं …..उन्हें बाहर घूमने से फुरसत मिले तब ना!!!

शारदा रसोई में सबके लिए खाना बना रही थी कि प्रदीप पीछे से आ गए और कहने लगे ……. मेरे लायक़ कोई काम है तो बताओ मैं कर देता हूँ । इस बीच मैंने तुम्हारी मदद नहीं की है …… बच्चे हैं ना वे कुछ कह देंगे सोच दूर ही रहा ।

शारदा आरव कह रहा था कि यहाँ पर जो भी खेत थोड़ी सी जमीन है …….उसे और घर को बेच कर …… उसके साथ अमेरिका चलें….., मैंने कह दिया कि हमें यहीं रहने दो चैन से रह लेंगे ……दूर देश में हम नहीं रह सकेंगे मैंने ठीक किया है ना……

शारदा ने कहा अच्छा किया है …..हम यहाँ से कहीं नहीं जाएँगे । उसे थोड़ी देर पहले की बहू बेटी की बातें याद आ गई थीं ।

प्रदीप ने आगे कहा कि आरव कहने लगा कि ठीक है ……आप नहीं आना चाहते हैं तो कोई बात नहीं है ……हम इसी घर को डेवलपमेंट को देकर और कमरे बनवाकर अच्छा कर लेते हैं । मैं अपने दोस्त से बात कर लेता हूँ ……आप अपने रहने का इंतज़ाम कहीं और जब तक घर नहीं बन जाता है कर लीजिए ।

शारदा खुश हो गई कि बेटा उनके बारे में कितना सोचता है ……… दूसरे ही दिन आरव ने अपने मित्र से बात करके डील मंजूर करवा लिया और दोनों भाई बहन अमेरिका चले गए ।

शारदा को खुश देखकर प्रदीप मन में सोच रहे थे…..  तुम कितनी भोली हो शारदा ……अब तक अपने स्वार्थी बच्चों को पहचान नहीं पाई हो ……आरव ने एक दिन पिता से कहा था कि आप खेत , घर सब बेचकर तीन हिस्सों में बाँट दीजिए हम दोनों अपना हिस्सा ले लेते हैं माँ और आप अपना हिस्सा लेकर आराम से रहें ।

मैंने कहा बेटा …. ये बँधन सिर्फ़ कच्चे धागों का नहीं है कि बँटवारा कर लें और चले जाएँ ।

तुम्हें इन रिश्तों को निभाना है । तुम उस घर को रेनिवेट कराओगे तब ही तुम्हारा हिस्सा ……. तुम्हें मिलेगा वरना भूल जाओ कि हम तुम्हारे माता-पिता हैं ।

इतना कहने के बाद आरव मान गया और मेरे सामने ही मित्र को फोन करके सब कुछ सेटिल कर दिया था ।

शारदा यह सब तुम सुनती तो तुम्हारा दिल टूट सकता था । प्रदीप को नहीं मालूम था कि आरव जब सुजाता और अपनी पत्नी को बता रहा था तो उसने सब कुछ सुन लिया था । शारदा भी यही मानती है कि यह बँधन सिर्फ़ कच्चे धागों का नहीं है ……… इसे निभाने के लिए चुप रहने में ही समझदारी हैं ताकि अगले साल बच्चे फिर मिलने आ सकें ।

के कामेश्वरी

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