आप भी ग़ज़ब करती हैं भाभी, अंशी ने बचपन में राखी बाँधी थी एक बार नितिन को । ये बंधन सिर्फ़ कच्चे धागों का नहीं है । इससे विश्वास, संकल्प और मान- मर्यादा जुड़ी होती हैं ।
स्नेहा ! अंशी छह साल की थी जब उसके पापा का तबादला हो गया था । उसके बाद तो उन दोनों ने एक-दूसरे को कभी देखा तक नहीं…. अरे , पड़ोस में रहते थे वे लोग बस । उस दिन अंशी खेल रही थी । तभी नेहा को मैंने अंदर बुलाया था कि भाई को राखी बाँध दे । अंशी भी उसके साथ आ गई थी और मैंने उसे भी कह दिया था कि तू भी बाँध दे , बस …. ये हुआ था । उसकी मम्मी भी कितनी खुश हुई थी कि उनकी बेटी ने भी नितिन को राखी बाँधी है ।
हाँ भाभी ! जो भी हुआ पर अंशी ने नितिन की कलाई पर राखी तो बाँधी ही थी । उन्हें तो ये बात करनी ही नहीं चाहिए थी । भई , मेरा बेटा होता या बेटी , मैं तो दिमाग़ में भी ऐसी बात ना लाती कभी ।
तो बताओ … क्या जवाब दूँ?
जो सच्चाई है वहीं बताइए । वे ना मानते हो इन बातों को पर हम मानते हैं भाभी, चाहे एक बार राखी बाँधी चाहे दस बार और चाहे नादानी में बाँधी या सोच- समझकर ….. राखी एक पवित्र धागा है । हमें ही तो इन परंपराओं के बारे में बच्चों को सिखाना है ।
ठीक है स्नेहा …. सचमुच मैं तो ऊहापोह में पड़ गई थी कि क्या जवाब दूँ?
आभा उसी समय उठी और तुरंत अपनी पुरानी पड़ोसन को फ़ोन करके बोली —-
कृष्णा! मैंने तो तुम्हारी बातों को गंभीरता से ही नहीं लिया था । वो तो स्नेहा ने याद दिलाया कि अपनी अंशी ने तो नितिन की कलाई पर राखी बाँधी थी , ये तो पाप होगा ना … ईश्वर! माफ़ करें हम दोनों को ही….
उसे राखी बाँधना कहती हो तुम ? अरे दोनों बच्चे अबोध थे उस समय … खेल-खेल में बाँध दी तुम्हारे कहने पर । ना नितिन को याद है ना अंशी को । भूल जाओ… पुरानी बातों को । प्रैक्टिकल होकर सोचो ….आजकल कितना रिस्की हो गया है अनजान लोगों के साथ रिश्ता जोड़ना …कौन घुसता है अब इतनी गहराई में?
हम घुसते हैं….. कृष्णा ! हो सकता है कि तुम लोगों ने बहुत तरक़्क़ी कर ली हो पर मैं आज भी अपनी संस्कृति और परंपराओं के अनुसार ही चलने में विश्वास रखती हूँ । अँशी हमारी बेटी है और हमेशा रहेगी । हम दोनों उसके लिए अच्छा घर- वर तलाश करेंगे । नितिन से भी कहूँगी कि उसका कोई दोस्त हो तो बताएँ , बच्चे एक ही फिल्ड के हो जाएँगे तो ज़्यादा अच्छा रहेगा । चलो , फ़ोन रखती हूँ ।
शाम को पति , देवर और नितिन के आने पर आभा ने खाना परोसते हुए कहा—-
नितिन बेटा , कोई तुम्हारा अच्छा सा -दोस्त हो या जानकार तो बताना शादी के लिए….डॉक्टर लड़की है ।
आप भी कमाल करती हैं श्रीमती जी , यहाँ हम खुद अपने बेटे के लिए डॉक्टर लड़की ढूँढ रहे हैं और तुम दूसरा लड़का ढूँढ रही हो ।
हाँ…क्योंकि उस लड़की की शादी हमारे बेटे से नहीं हो सकती । आपको याद है, कई साल पहले जब बच्चे छोटे थे तो बराबर वाले घर में कश्यप जी रहते थे, जो बैंक मैनेजर थे । जिनकी एक ही बेटी थी …….
इतना याद दिलाते हुए आभा ने आज का पूरा वाक़या उन्हें सुनाया । देवर ने स्नेहा को छेड़ते हुए कहा —
तुम्हें तो सुबह का खाया नाश्ता याद नहीं रहता …. वो बच्ची याद रह गई कि उसने नितिन को राखी बाँधी थी …. प्राइज़ मिलना चाहिए, वेरी शार्प मेमोरी । पर आप दोनों ने ठीक फ़ैसला लिया । हमें अपने रीति – रिवाजों का कभी मज़ाक़ नहीं बनने देना चाहिए । इतिहास भी गवाह है कि राखी की मर्यादा तो बादशाह हुमायूँ ने भी निभाई थी ।
मम्मी! आप प्लीज़ अंशी की मम्मी से बात तो करवाना मेरी …. मैं कहूँगा तो सही कि अगर एक बार राखी बाँधी थी तो कम से कम इस रिश्ते को निभाना तो चाहिए था ।
दो- चार दिन बाद ही आभा ने कृष्णा और अंशी से खुद भी बात की और नितिन से भी करवाई । दोनों को बचपन की कुछ घटनाएँ याद थी जिनका ज़िक्र करके वे खूब हँसे ।
उसके बाद अक्सर दोनों परिवारों के बीच बातें होने लगी और घनिष्ठता बढ़ गई । एक दिन स्नेहा ने आभा से कहा —
भाभी! मेरी सहेली का बेटा है वो शादी के लिए डॉक्टर लड़की ढूँढ रहे हैं…. अंशी कैसी रहेगी?
आभा और स्नेहा दोनों ने लड़के की सारी जानकारी प्राप्त करने की ज़िम्मेदारी नितिन को सौंप दी और उसने हर कार्य को उतनी ही लगन से पूरा किया जैसे एक भाई अपनी बहन के लिए करता है ।
जिस दिन अंशी की विदाई हुई तो कृष्णा ने आभा और स्नेहा को गले लगाते हुए कहा—-
सचमुच तुम जैसे लोगों के बलबूते पर ही हमारी परंपराएँ और त्योहार जीवंत हैं ।
राखी की मर्यादा # येबंधन सिर्फ़ कच्चे धागों का नहीं है ।